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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२३९

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[कायाकल्प
 

महेन्द्र के साथ चली गयी।

गुफा के बाहर स्वर्ण की वर्षा हो रहो।

आकाश, पर्वत और उनपर विहार करने वाले पक्षी और पशु सोने में रँगे थे। विश्व स्वर्ण-मय हो रहा था। शान्ति का साम्राज्य छाया हुया था। पृथ्वी विश्राम करने जा रही थी।

यान एक पल में दोनों आरोहियों को लेकर अनन्त आकाश में विचरने लगा। वह सीधा चन्द्रमा की ओर चला जाता था, ऊपर ऊपर और भी ऊपर, यहाँ तक कि चन्द्रमा का दिव्य प्रकाश देखकर देवप्रिया भयभीत हो गयी।

सहसा देवप्रिया संगीत की मधुर ध्वनि सुनकर चौंक पड़ी और बोली—यहाँ कौन गा रहा है?

महेन्द्र ने मुस्कराकर कहा—हमारे स्वामीजी ईश्वर की स्तुति कर रहे हैं। मैं अभी उनसे बातें करता हूँ। सुनो—स्वामीजी, क्या हो रहा है?

'बच्चा, भगवान की स्तुति कर रहा हूँ। अच्छा तुम्हारे साथ तो देवप्रियाजी भी हैं। उन्हें जापानी सिनेमा की सैर नहीं करायी?'

सहसा देवप्रिया को एक जापानी नौका डूबती हुई दिखायी दी। एक क्षण में एक जापानी युवक कगार पर से समुद्र में कूद पड़ा और लहरों को चीरता हुआ नौका की ओर चला।

देवप्रिया ने काँपते हुए कहा—कहीं यह बेचारा भी न डूब जाय!

महेन्द्र ने कहा—यह किसी प्रेम कथा का अन्तिम दृश्य है।

यान और भी ऊपर उड़ता चला जाता था, पृथ्वी पर से जो तारे टिमटिमाते हुए हो नजर आते थे, अब चन्द्रमा को भाँति ज्योतिर्मय हो गये थे और चन्द्रमा अपने आकार से दसगुना बड़ा दिखायी देता था। विश्व पर अखंड शान्ति छाई हुई थी। केवल देवप्रिया का हृदय धड़क रहा था। वह किसी अज्ञात शंका से विकल हो रही थी। जापानी सिनेमा का अन्तिम दृश्य उसकी आँखों में नाच रहा था।

तब महेन्द्र ने वीणा उठा ली और देवप्रिया से बोले—प्रिये, तुम्हारा मधुर गान सुने बहुत दिन बीत गये। याद है, तुमने पहले जो गीत गाया था, वही गीत आज फिर गाओ। देखो, तारागण कान लगाये बैठे हैं।

देवप्रिया स्वामी की बात न टाल सकी। उसे ऐसा भाषित हुआ कि वह स्वामी का अन्तिम आदेश है, मैं इन कानों से स्वामी की बातें फिर न सुनूँगी। उसने काँपते हुए हाथों में वीणा ले ली और काँपते हुए स्वरों में गाने लगी—

'प्रिया मिलन है कठिन बावरी!'

प्रेम, करुणा और नैराश्य में डूबी हुई यह ध्वनि सुनते ही महेन्द्र की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। आह! वियोग-व्यथा से पीड़ित यह हृदय स्वर उनके अन्तस्तल पर शर जैमी चोटें करने लगा। बारबार हृदय थामकर रह जाते थे। सहसा उनका मन एक अत्यन्त प्रबल आवेग से आन्दोलित हो उठा। लालसा विह्वल मन ने कहा—यह