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कायाकल्प]
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चक्रधर—लल्लू को यही छोड़ सकती हो। वह रानी मनोरमा से खूब हिल गया है। तुम्हारी तो शायद उसे याद भी न आये।

अहल्या—अच्छा, तो समझ में आया। इसीलिए रानीजी उससे इतना प्रेम करती हैं। यह बात तुमने स्वयं सोची है, या रानीजी ने कुछ कहा है?

चक्रधर—भला, यह क्या कहेंगी? मैं खुद यहाँ रहना नहीं चाहता। ससुराल की रोटियाँ बहुत खा चुका। खाने में तो वह बहुत मीठी मालूम होती है; पर उनसे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। औरों को हजम होती होंगी; पर मुझे तो नहीं पचतीं, और शायद तुम्हें भी नहीं पचतीं। इतने ही दिनों में हम दोनों कुछ-के-कुछ हो गये। यहाँ कुछ दिन और रहा, तो कम से कम मैं तो कहीं का न रहूँगा। कल मैंने एक गरीब किसान को मारते मारते अधमुआ कर दिया। उसका कसूर केवल यह था कि वह मेरे साथ आने पर राजी न होता था।

अहल्या—यह कोई बात नहीं। गँवारों के उजड्डपन पर कभी-कभी क्रोध आ ही जाता हैं। मैं ही यहाँ दिन-भर लौंडियों पर झल्लाती रहती हूँ; मगर मुझे तो कभी यह खयाल ही नहीं आया कि घर छोड़कर भाग जाऊँ।

चक्रधर—तुम्हारा घर, है तुम रह सकती हो; लेकिन मैंने तो जाने का निश्चय कर लिया है।

अहल्या ने अभिमान से सिर उठाकर कहा—तुम न रहोगे, तो मुझे यहाँ रहकर क्या लेना है। मेरे राज-पाट तो तुम हो; जब तुम्हीं न रहोगे, तो अकेली पड़ी पड़ी मैं क्या करूँगी? जब चाहे, चलो। हाँ, पिताजी से पूछ लो। उनसे बिना पूछे तो जाना उचित नहीं; मगर एक बात अवश्य कहूँगी। हम लोगों के जाते ही यहा का सारा कारोबार चौपट हो जायगा। रानी मनोरमा का हाल देख ही रहे हो। रुपए को ठीकरा समझती हैं। दादाजी उनसे कुछ कह नहीं सकते। थोड़े दिनों में रियासत जेरबार हो जायगी और एक दिन बेचारे लल्लू को ये सब पापड़ बेलने पड़ेंगे।

अहल्या के मनोभाव इन शब्दों से साफ टपकते थे। कुछ पूछने की जरूरत न थी। चक्रधर समझ गये कि अगर मैं आग्रह करूँ, तो यह मेरे साथ जाने पर राजी हो जायगी। जब ऐश्वर्य और पति-प्रेम, दो में से एक को लेने और दूसरो की त्याग करने को समस्या पड़ जायगी, तो अहल्या किस ओर झुकेगी, इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं था; लेकिन वह उसे इस कठोर धर्म-संकट में डालना उचित न समझते थे। आग्रह से विवश होकर यह उनके साथ चली ही गयी तो क्या? जब उसे कोई कष्ट होगा, मनही मन झुँझलायेगी और बात-बात पर कुढ़ेगी, तब लल्लू को यहाँ छोड़ना ही पड़ेगा। मनोरमा उसे एक क्षण लिए भी नहीं छोड़ सकती। राजा साहब तो शायद उसके वियोग में प्राण ही त्याग दें। पुत्र को छोड़कर अहल्या कङी जाने पर तैयार न होगी और गयी भी, तो बहुत जल्द लौट आयेगी।

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