मोरना-हाँ कुछ रात जाते-जाते पहुँच गयेंगे ।
हरिवगडे देज मोटर हो, तो में शाम तक पहुंच बाऊँ।
नरना-इस दशा में इतना लन्ग पर आप ने कर सम्ने हैं?
हरिका-दा, दीक न्ती हो. केटी मगर मेरी दवा लोगी के पास है। उस चीन वा प्रतार या । तर बह रही, नेरे सिर में कमी दर्द भी न छा। मेरी मूर्तब देखो कि वन उसने तीर्थयात्रा न बात कही, तो मेरे मुंह से एक बार भी न निकता-तुम नुने ति पर छोड़कर बाती हो ? अगर ने यह कह तक्ता, तो वह क्मी नमानी । एक बार मी नहीं रोका । नै उने निप्पुरता का टरड देना चाहता था । म उस वक्ष व्हन दुक पड़ा कि
यह कहते कहते दीवान साहब फिर चौक पड़े ओर द्वार की बोर अाशग्नि नेत्रो से देखते -यह कौन अन्दर जाना. नोरा ये लोग क्यों नुले घेरे हुए है ? मुझे दुछ नहीं हुआ है । तेवा हुत्रा बातें कर रहा हूँ।
मनोरमा ने घड़ते हुए इदय से उमड़नेवाले प्राँसुत्रों को दबाकर पृछा-या प्राग्नीकिर घबरा रहा है?
हरितेवर-वह कुछ नहीं था, नोरा ! नेने अपने जीवन में अच्छे काम कम किये, बुरे कन बहुत किये। अच्छे नाम जितने किये, वे लोंगी ने किये। बुरे काम जितने किये, के नेरे है । उनले व्ड न भागी ने हूँ। लोगी के कहने पर चलता, तो प्राज मेरी श्रात्ना शान्त होती। एक बात तुमते पूछ, नोरा, बतायोगी ?
मनोरना-खुशी ते पूछिए।
हरितेवक-तुन अपने मान्य से सन्तुष्ट हो ?
मनोरमा-यह श्राप क्यों पूछते है ? क्या मैंने बापते कभी कोई शिकायत की है ?
हरितेवन-नहीं नोरा, तुमने कभी शिकायत नहीं की और न करोगो, लेकिन मेने तुम्हारे साय तो घोर अत्याचार किया है, उसकी व्यथा से आज मेरा अन्तःकरण पीड़ित हो रहा है। मैंने तुम्हें अपनी तृष्णा की भेंट चढ़ा दिया, तुम्हारे जीवन का र्वनाश कर दिया । ईश्वर! तुम मुझे इसका कठिन से कठिन दण्ड देना! लोंगी ने कितना विरोध क्यिा, तेक्नि मैने एक न सुनी। तुम निर्घन होकर सुखी रहतीं। मुझ तृष्णा ने अन्या बना दिया था। फिर जो हवा जाता है ! शायद उस देवी के दर्शन न होगे । तुम उसत्ते कह देना नोरा, कि यह त्वार्थी, नीच, पापी लीव नन्त समय तक उसकी याद में तड़पता रहा.. ...।
मनोरमा ने रोकर कहा-दादानी, श्राप ऐसी बातें क्यों करते हैं ? लौंगी अम्मा न्ल शाम तक श्रा जायँगी ।
हरितेवक हते, वह विलक्षण हँसी, जिसमें तमत्त जीवन की श्राशाओं और भिलाषात्रों का प्रविवाद होता है। फिर सन्दिग्ध माव से बोले-कल शाम तक? शायद।