बाहर सुनायी दे रहा था। तुम यहाँ से चली गयीं मालकिन, तो एक नोकर भी न रहेगा। सबों ने यह सोच लिया है कि जिस दिन मालकिन यहाँ से चली जायगी, हम सब भी भाग खड़े होंगे। अन्याय हम लोगों से नहीं देखा नाता।
लौंगी ने दीन भाव से कहा-नसीब ही खोटा है, नहीं तो क्यों किसी को झिलकियाँ सुननी पड़ती?
महरी-नही मालकिन, नसीबे को न खोटा कहो। नसीबा तो जैसा तुम्हारा है वैसा किसी का क्या होगा? ठाकुर साहब मरते दम तक तुम्हारा नाम रटा किये। तुम क्यों जाती हो, किसी का मजाल क्या है कि तुमसे कुछ कह सके? यह सारी सम्पदा तो तुम्हारी जोड़ी हुई है। इसे कौन ले सकता है? ठाकुर साहब को जो तुमसे सुख मिला, वह क्या किसी व्याहता से मिल सकता था?
सहसा मनोरमा ने कमरे में प्रवेश किया और लौगी को सिर में तेल डलवाते देखकर बोली-कैसा जी है अम्मा? सिर में दर्द है क्या?
लौगी-नहीं बेटा, जी तो अच्छा है। आओ, बैठो।
मनोरमा ने महरी से कहा-तुम जानो, मैं दबाये देती हूँ। दरवाजे पर खड़ी होकर कुछ सुनना नही, दूर चली जाना।
महरी इस समय यहाँ की बातें सुनने के लिए अपना सर्वस्व दे सकती थी, यह हुक्म सुनकर मन मे मनोरमा को कोसती हुई चली गयी।
मनोरमा सिर दबाने बैठी, तो लौंगी ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली-नहीं बेटा, तुम रहने दो। दर्द नहीं था, यो ही बुला लिया था। नहीं, मैं न दबवाऊँगी। यह उचित नहीं है। कोई देखे तो कहे कि बुढ़िया पगला गयी है, रानी से सिर दरबाती है।
मनोरमा ने सिर दबाते हुए कहा-रानी जहाँ हूँ, वहाँ हूँ; यहाँ तो तुम्हारी गोद की खेलायी नोरा हूँ। आज तो भैयाजी यहाँ से जाकर तुम्हारे ऊपर बहुत बिगड़ते रहे। मैं उसकी टाँग तोड़ दूंगा, गर्दन काट लूँगा। कितना पूछा-कुछ बतायो तो, बात क्या है? पर गुस्से में कुछ सुने ही न। भाई हैं तो क्या; पर उनका अन्याय मुझसे भी नहीं देखा जाता। वह समझते होगे कि इस घर का मालिक मै हूँ, दादाजी मेरे नाम सब छोड़ गये हैं। मैं जिसे चाहूँ, रखूँ; जिसे चाहूँ, निकलूँ। मगर दादाजी उनको नीयत को पहले ताड़ गये थे। मैंने अब तक तुमसे नहीं कहा अम्मांजी, कुछ तो मौका न मिला और कुछ भैया का लिहाज था; पर आज उनकी बातें सुनकर कहती हूँ कि पिताजी ने अपनी सारी जायदाद तुम्हारे नाम लिख दी है।
लोँगी पर इस सूचना का जरा भी असर नहीं हुआ। किसी प्रकार का उल्लास, उत्सुक्ता या गर्व उसने चेहरे पर न दिखायी दिया। वह उदासीन भाव से चारपाई पर पड़ी रही।
मनोरमा ने फिर कहा-मेरे पास उनको लिखायी हुई वसीयत रखी हुई है और मुनी को उन्होंने उसका साक्षी बनाया है। जब यह महाशय वसीयत देखेंगे तो आँखें खुलेंगी।