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[कायाकल्प
 

एक युग कटवा दिया, लेकिन आपको कभी मुझपर दया न पायी। आपको कुछ खबर है, यह सोलह वर्ष के दिन मैंने कैसे काटे हैं? किसी को संगीत में आनन्द मिलता हो, मुझे नहीं मिलता। किसी को पूजा-भक्ति में सन्तोष होता हो, मुझे नहीं होता। मे नैराश्य की उस सीमा तक नहीं पहुंची। मे पुरुष के रहते वैधव्य की कल्पना नहीं कर सकती। मन की गति तो विचित्र है। वही पीड़ा, जो बाल-विधवा सहती है और सहने मे अपना गौरव समझती है, परित्यक्ता के लिए असह्य हो जाती है। मैं राजपूत की वेटी है, मरना भी जानती हूँ। कितनी बार मैंने आत्मघात करने का निश्चय किया, वह आप न जानेगे। लेकिन हर दफे यही सोचकर रुक गयी थी कि मेरे मर जाने से तो आप और भी सुखी होंगे। अगर यह विश्वास होता कि आप मेरी लाश पर आकर आँसू की चार बूंदे गिरा देंगे, तो शायद मै कभी की प्रस्थान कर चुकी होती। मै इतनी उदार नहीं। मने हिंसात्मक भावों को मन से निकालने की कितनी चेष्टा की है, यह भी आप न जानेंगे, लेकिन अपनी सीतात्रों की दुर्दशा ही ने मुझे धैर्य दिया है, नहीं तो अब तक में न जाने क्या कर बैठती। ईर्ष्या से उन्मत्त स्त्री जो कुछ कर सकती है, उसकी अभी आप शायद कल्पना नहीं कर सकते, अगर सीता भी अपनी आँख से वह सब देखती, जो मैं आज १६ वर्ष से देख रही हूँ, तो सीता न रहती। सीता बनाने के लिए राम जैसा पुरुष चाहिए।

राजा साहब ने अनुताप से कम्पित स्वर में कहा-रोहिणी, क्या सारा अपराध मेरा ही है।

रोहिणी नहीं, आपका कोई अपराध नहीं है, सारा अपराध मेरे ही कर्मों का है। वह स्त्री सचमुच पिशाचिनी है, जो अपने पुरुष का अनमल सोचे। मुझे आपका अनभल सोचते हुए १६ वर्ष हो गये। मेरी हार्दिक इच्छा यही रही कि आपका बुरा हो और मैं देखूँ लेकिन इसलिए नहीं कि आपको दुखी देखकर मुझे आनन्द होता। नहीं, अभी मेरा इतना अधःपतन नहीं हुआ। मैं आपका अनभल केवल इसलिये चाहती थी कि आपकी आखोँ खुलें, आप खोटे और खरे को पहचाने। शायद तब आपको मेरी याद आती, शायद तब मुझे अपना खोया हुआ स्थान पाने का अवसर मिलता। तब मै सिद्ध कर देती कि आप मुझे जितनी नीच समझ रहे हैं, उतनी नीच नहीं हूँ। मैं आपको अपनी सेवा से लजित करना चाहती थी, लेकिन वह अवसर भी न मिला।

राना साहब को नारी-हृदय की तह तक पहुँचने का ऐसा अवसर कभी न मिला था। उन्हें विश्वास था कि अगर मैं मर जाऊँ, तो रोहिणी की आँखों में आँसू न आयेंगे। वह अपने हृदय से उसके हृदय को परखते थे। उनका हृदय रोहिणी की ओर से वज्र हो गया था। वह अगर मर जाती, तो निस्सन्देह उनकी आँखों में आँसू न पाते, पर आन रोहिणी की बातें सुनकर उनका पत्थर-सा हृदय नरम पड़ गया। आह। इस हिंसा में कितनी कोमलता है? मुझे परास्त भी करना चाहती है, तो सेवा के अस्त्र से। इससे तीक्ष्ण उसके पास कोई अस्त्र नहीं!