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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२७४

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कायाकल्प]
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उन्होंने गद्गद कराठ से पहा--क्या कहूँ रोहिणी, अगर मैं जानता कि मेरे अनभल हो से तुम्हारा उद्धार होगा, तो इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करता।

अहल्या को आते देखकर रोहिणी ने कुछ उत्तर न दिया। जरा देर वहाँ खदी रहकर दूसरी तरफ चली गयी। राजा साहब के दिल पर ने एक बोझा-सा उठ गया। उन्हें अपनी निष्ठुरता पर पछतावा हो रहा था। आज उन्हें मालूम हुआ कि रोहिणी का चरित्र समझने मे उनसे कैसो भयकर भूल हुई। यहाँ उनसे न रहा गया। जी यही चाहता था कि चलकर रोहिणी से अपना अपराध क्षमा कराऊँ। बात क्या थी और मैं क्या समझे बैठा था? यही बातें अगर इसने और पहले कही होती, तो हम दोनों में क्यों इतना मनोमालिन्य रहता? उसके मन की बात तो नहीं जानता; पर मुझसे तो इसने एक बार भी हँसकर बात की होती, एक बार भी मेरा हाथ पकड़कर कहती कि मैं तुम्हें न छोडूंगी, तो मै कभी उसकी उपेक्षा न कर सकता; लेकिन ली मानिनी होती है, वह मेरी खुशामद क्यों करती? सारा अपराध मेरा है। मुझे उसके पास जाना चाहिये था।

सहसा उनके मन मे प्रश्न उठा-आज रोहिणी ने क्यों मुझसे ये बातें कीं? जो काम करने के लिये वह अपने को बीस वर्ष तक राजी न कर सकी, वह आज क्यों किया? इस प्रश्न के साथ ही राजा साहब के मन मे शंका होने लगी। आज उसके मुख पर कितनी दीनता थी! बातें करते करते उसकी आँखें भर-भर आती थी। उसका कंठ-स्वर भी काँप रहा था। उसके मुख पर इतनी दीनता कमी न दिखायी देती थी। उसके मुखमण्डल पर तो गर्व की आभा झलकती रहती थी। मुझे देखते ही वह अभिमान त गर्दन उठाकर मुँह फेर लिया करती थी। आज यह कायापलट क्यों हो गई।

राजा साहव ज्यों ज्यों इस विषय की, मीमासा करते थे, त्यो त्यो उनकी शका बढ़ना जाती थी। रात आधी से अधिक बीत गई थी। रनिवास में सन्नाटा छाया हुआ था। नोकर-चाकर भी सभी सो गये थे; पर उनकी आँखों में नींद न थी। यह शंका उन्हें उद्विग्न कर रही थी।

आखिर राजा साहब से लेटे न रहा गया। वह चारपाई से उठे और आहिस्ता आहिस्ता रोहिणी के कमरे की ओर चले। उसकी ड्योढ़ी पर चौकीदारिन से भेंट हुई। उन्हें इस समय यहाँ देखकर वह अवाक रह गई। जिस भवन में इन्होंने बीस वर्ष तक कदम नहीं रखा, उधर आज कैसे भूल पड़े? उसने राजा साहब के मुख की ओर देखा, मानो पूछ रही थी-आप क्या चाहते हैं?

राजा साहब ने पूछा-छोटी रानी क्या कर रही हैं?

चौकीदारन ने कहा-इस समय तो सरकार सो रही होगी। महाराज को कोई सन्देश हो, तो पहुचा दूँ।

राजा ने कदा-नहीं, मैं खुद जा रहा हूँ, तू यहीं रह।

राजा साहब ने कमरे के द्वार पर खड़े होकर भीतर की ओर झाँका। रोहिणी मसहरी के अन्दर चादर ओडे सो रही थी। वह अन्दर कदम रखते हुए झिझके। भय

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