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कायाकल्प]
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ध्यान हमें उनके मरने के बाद ही आता है—हाय! हमने इसके साथ कुछ न किया। हमने इसे उम्र भर जलाया, रुलाया, बेधा। हाय! यह मेरी रानी, जिस पर एक दिन से अपने प्राण न्यौछावर करता था, इस दीन दशा में पड़ी हुई है, न कोई आगे, न पीछे! कोई एक घूँट पानी देनेवाला भी न था। कोई मरते समय परितोष देनेवाला भी न था। राजा साहब को ज्ञात हुआ कि रोहिणी आज क्यों उनके पास गयी थी। वह मुझे सूचना दे रही थी, लेकिन बुद्धि पर पत्थर पड़ गया था। उस समय भी मैं कुछ न समझा। आह! अगर उस वक्त उसका आशय समझ जाता, तो यह नौबत क्यों आती? उस वक्त भी यदि मैंने एक बार शुद्ध दृदय से कहा होता—प्रिये, मेरा अपराध क्षमा करो, तो इसके प्राण बच जाते। अन्तिम समय वह मेरे पास क्षमा का सन्देश ले गयी थी और मैं कुछ न समझा। आशा का अन्तिम आदेश उसे मेरे पास ले गया; पर शोक!

सहसा राजा साहब को खयाल आया—शायद अभी प्राण बच जायँ। उन्होंने चौकीदारिन को पुकारा और बोले—जरा जाकर दरबान से कह दे, डाक्टर साहब को बुला लाये। इनकी दशा अच्छी नहीं है। चौकीदारिन रानी देवप्रिया के समय की तो थी। रोहिणी के मुख की ओर देखकर बोली—डाक्टर को बुलाकर क्या कीजिएगा? अगर अभी कुछ कसर रह गयी हो, तो वह भी पूरी कर दीजिए। अभागिनी मरजाद ढोती रह गयी! उसके ऊपर क्या बीती, तुम क्या जानोगे? तुम तो बुढ़ापे में विवाह करके बुद्धि और लज्जा दोनों ही खो बैठे। उसके ऊपर जो बीती, वह मैं जानती हूँ। हाय! रक्त के आँसू रो रोकर बेचारी मर गयी और तुम्हें दया न आयी? क्या समझते हो, इसने विष खा लिया? इस ढाँचे से प्राण को निकालने के लिए विष का क्या काम था! उसके मरने का आश्चर्य नहीं, आश्चर्य यह है कि वह इतने दिन जीती कैसे रही! खैर, जीते जी जो अभिलाषा न पूरी की, वह मरने पर तो पूरी कर दी। इतनी ही दया अगर पहले की होती, तो इसके लिए वह अमृत हो जाती!

दम के दम में रनिवास में शोर मच गया और रानियाँ बाँदियाँ सब आकर जमा हो गयीं।

मगर मनोरमा न आयी।


४०

रोहिणी के बाद राजा साहब जगदीशपुर न रह सके। मनोरमा का भी जी वहाँ घबराने लगा। उसी के कारण मनोरमा को वहाँ रहना पड़ा था। जब वही न रही; तो किस पर रीस करती? उसे अब दुःख होता था कि मैं नाहक यहाँ आयी। रोहिगी के कटु-वाक्य सह लेती, तो आज उस बेचारी की जान पर क्या बनती? मनोरमा इस ग्लानि को मन से न निकाल सकी थी कि मैं ही रोहिणी की अकाल-मृत्यु का हेतु हुई। राजा साहब की निगाह भी अब उसकी ओर से फिरी हुई मालूम होती थी। अब खंजाची उतनी तत्परता से उसकी फरमाइशें नहीं पूरी करता। राजा साहब भी अब उसके पास बहुत कम जाते हैं। यहाँ तक कि गुरुसेवकगिंह को भी जवाब दे दिया है, और उन्हें