पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३००
[कायाकल्प
 


वृद्धा—अच्छा दाहिनी ओर माथे पर किसी चोट का दाग है?

शंखधर—हो सकता है, माताजी, मैंने तो केवल उनका चित्र देखा है। मुझे तो वह दो वर्ष का छोड़कर घर से निकल गये थे।

वृद्धा—बेटा, जिन महात्मा की मैंने तुमसे चर्चा की है, उनकी सूरत तुमसे बहुत मिलती है।

शंखधर—माता, कुछ बता सकती हो, वह यहाँ से किधर गये?

वृद्धा—यह तो कुछ नहीं कह सकती, पर वह उत्तर ही की ओर गये हैं। तुमसे क्या कहूँ बेटा, मुझे तो उन्होंने प्राण दान दिया है, नहीं तो अब तक मेरा न जाने क्या हाल होता। नदी में स्नान करने गयी थी। पैर फिसल गया। महात्माजी तट पर बैठे ध्यान कर रहे थे। डुबकियाँ खाते देखा तो चट पानी में तैर गये और मुझे निकाल लाये। वह न निकालते, तो प्राण जाने में कोई सन्देह न था। महीने भर यहाँ रहे। इस बीच में कई जानें बचायीं। कई रोगियों को तो मौत के मुँह से निकाल लिया।

शंखधर ने काँपते हुए हृदय से पूछा—उनका नाम क्या था, माताजी?

वृद्धा—नाम तो उनका था भगवानदास, पर यह उनका असली नाम नहीं मालूम होता था, असली नाम कुछ और ही था।

एक युवती ने कहा—यहाँ उनकी एक तसवीर भी तो रखी हुई है।

वृद्धा—हाँ बेटा, इसकी तो हमें याद ही नहीं रही थी। इस गाँव का एक आदमी बम्बई में तसवीर बनाने का काम करता है। वह यहाँ उन दिनों आया हुआ था। महात्मा जी तो 'नहीं-नहीं' करते रहे, पर उसने झट से अपनी डिबिया खोलकर उनकी तसवीर उतार ही ली। न-जाने उस डिबिया में क्या जादू है कि जिसके सामने खोल दो, उसकी तसवीर उसके भीतर खिंच जाती है।

शंखधर का हृदय शतगुण वेग से धड़क रहा था। बोले—जरा वह तसवीर मुझे दिखा दीजिए, आपकी बड़ी कृपा होगी।

युवती लपकी हुई घर गयी, और एक क्षण में तसवीर लिये हुए लौटो। आह! शंखधर की इस समय विचित्र ही दशा थी! उसकी हिम्मत न पड़ती थी कि तसवीर देखे। कहीं यह चक्रधर की तसवीर न हो। अगर उन्हीं की तसवीर हुई, तो शंखधर क्या करेगा? वह अपने पैरों पर खड़ा रह सकेगा? उसे मूर्छा तो न आ जायगी? अगर यह वास्तव में चक्रधर ही का चित्र, तो शङ्खधर के सामने एक नयी समस्या खड़ी हो जायगी। उसे अब क्या करना होगा? अब तक वह एक निश्चित मार्ग पर चलता आया था, लेकिन अब उसे एक ऐसे मार्ग पर चलना पड़ेगा, जिससे वह बिलकुल परिचित न था। क्या वह चक्रधर के पास जायगा? जाकर क्या कहेगा? उसे देखकर वह प्रसन्न होंगे, या सामने से दुत्कार देंगे? उसे वह पहचान भी सकेंगे? कहीं पहचान लिया और उससे अपना पीछा छुड़ाने के लिए कहीं और चले गये तो?

सहसा वृद्धा ने कहा—देखो, बेटा! यह तसवीर है।