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कायाकल्प]
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अभागिनी अहल्या के लिए ससार सूना हो गया। पति को पहले ही खो चुकी थी। जीवन का एक मात्र आधार पुत्र रह गया था। उसे भी खो बैठी। अब वह किसका मुँह-देखकर जियेगी ? वह राज्य उसके लिये किसी ऋषि का अभिशाप हो गया । पति और पुत्र को पाकर अब वह टूटे-फूटे झोपड़े में कितने सुख से रहेगी। तृष्णा का उसे बहुत दण्ड मिल चुका । भगवान्, इस अनाथिनी पर दया करो!

अहिल्या को अब वह रान भवन फाढ़े खाता था । वह अब उसे छोड़कर कहीं चली जाना चाहती थी । कोई सड़ा-गला झोपड़ा, किसी वृक्ष की छाँह पर्वत की गुफा, किसी नदी का तट उसके लिए इस भवन से सैंकड़ों गुना अच्छा था। वे दिन क्तिने अच्छे थे , जब वह अपने स्वामी के साथ पुत्र को हृदय से लगाये एक छोटे-से मकान में रहती थी। वे दिन फिर न पायेंगे । वह मनहूस घड़ी थी, जब उसने इस भवन में कदम रखा था। वह क्या जानती थी कि इसके लिए उसे अपने पति और पुत्र से हाथ धोना पड़ेगा? ग्राह ! जब उसका पति जाने लगा, तो वह भी उसके साथ ही क्यों न चली गयी ? रह-रहकर उसको अपनी भोग-लिप्सा पर क्रोध श्राता था, जिसने उसका सर्व-नाश कर दिया था । क्या उस पाप का कोई प्रायश्चित्त नहीं है। क्या इस जीवन में स्वामी के दर्शन न होंगे ? अपने प्रिय पुत्र को मोहिनी मूर्ति फिर वह न देख सकेगी! कोई ऐसी युक्ति नहीं है।

राज-भवन अब भूतों का ढेरा हो गया है। उसका अब कोई स्वामि नहीं रहा । राजा साहब अब महीनों नहीं पाते । वह अधिकतर इलाके ही में घूमते रहते हैं। उनके अत्याचार की कथाएँ सुनकर लोगों के रोये खड़े हो जाते हैं। सारी रियासत में हाहा कार मचा हुया है । कही किसी गाँव मे बाग लगायी जायी है, किसी गाँव में कुएँ भ्रष्ट किये जाते हैं । राना साहब को किसी पर दया नहीं। उनके सारे समाव शंखधर के साथ चले गये। विधाता ने अकारण ही उनपर इतना कठोर श्राघात किया है । वद उस आघात का बदला दूसरो से ले रहे हैं। जब उनके ऊपर किसी को दया नहीं आती, तो वह किसी पर क्यों दया करें। अगर ईश्वर ने उनके घर में आग लगायी है, तो वह भी दूसरों के घर मे आग लगायेंगे । रेश्वर ने उन्हे लाया है, तो वर भी दूम को रुलायेंगे । लोगों को ईश्वर की याद आती है, तो उनकी धर्म-बुद्धि जाग्रत हो जाती है; लेकिन किन लोगों की ? जिनके सर्वनाश में कुच कसर रह गयी हो, जिनके पास रक्षा करने के योग्य कोई वस्तु रह गयी हो, लेकिन जिसका सर्वनाश हो चुका है उसे किस बात का डर?

अब राजा साहब के पास जाने का किसी को साहस नहीं होता । मनोरमा को देख कर तो वह जाने से बाहर हो जाते हैं । अहल्या भी उनसे कुछ बदले हुए थर-थर कांपती है। अपने प्यारों को खोजने के लिए वह तरह-तरह के मनसूवे बनाया करती है लेकिन दिराले उसे ऐसा विदित पता है कि ईश्वर ने उसकी भोग-लिप्सा का यह दंड दिया है।