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[कायाकल्प
 

बीस वर्ष पहले थीं। नहीं, तुम्हारा आत्मस्वरूप उससे कहीं सुन्दर, कहीं मनोहर हो गया है, लेकिन तुम्हें सन्तुष्ट करने के लिए मैं तुम्हारी कायाकल्प कर दूँगा। विज्ञान में इतनी विभूति है कि वह काल के चिह्नों को भी मिटा दे।

कमला ने कातर स्वर में कहा—प्राणनाथ, क्या यह सम्भव है?

शङ्खधर—हाँ प्रिये, प्रकृति जो कुछ कर सकती है, वह सब विज्ञान के लिए सम्भव है। यह ब्रह्माण्ड एक विराट प्रयोगशाला के सिवा और क्या है?

कमला के मनोल्लास का अनुमान कौन कर सकता है? आज बीस वर्ष के बाद उसके ओठों पर मधुर हास्य क्रीड़ा करता हुआ दिखायी दिया। दान, व्रत और तप के प्रभाव का उसे आज अनुभव हुआ। इसके साथ ही उसे अपने सौभाग्य पर भी गर्व हो उठा। यह मेरी तपस्या का फल है। मैं अपनी तपस्या से प्राणनाथ को देवलोक से खींच लायी हूँ! दूसरा कौन इतना तप कर सकता है? कौन इन्द्रिय-सुखों को त्याग सकता है?

यह भाव मन में आया ही था कि कमला चौंक पड़ी। हाय! यह क्या हुआ? उसे ऐसा मालूम हुआ कि उसकी आँखों की ज्योति क्षीण हो गयी है। शङ्खधर का तेजमय स्वरूप उसे मिटा-मिटा-सा दिखायी दिया। और सभी वस्तुएँ साफ नजर न आती थीं; केवल शंखधर दूर-दूर होते जा रहे थे।

कमला ने घबहाकर कहा—प्राणनाथ, क्या आप मुझे छोड़कर चले जा रहे हैं! हाय! इतनी जल्द?

शंखधर ने गम्भीर स्वर में कहा—नहीं प्रिये, प्रेम का बन्धन इतना निर्बल नहीं होता।

कमला—तो आप मुझे जाते हुए क्यों दीखते हैं?

शंखधर—इसका कारण अपने मन में देखो।

प्रातःकाल शंखधर ने कहा—प्रिये, मेरी प्रयोगशाला की क्या दशा है?

कमला—चलिए, आपको दिखाऊँ।

शंखधर—उस कठिन परीक्षा के लिए तैयार हो?

कमला—आपके रहते मुझे क्या भय है?

लेकिन प्रयोगशाला में पहुँचकर सहसा कमला का दिल बैठ गया। जिस सुख की लालसा उसे माया के अन्धकार में लिये जाती है, क्या वह सुख स्थायी होगा? पहले ही की भाँति क्या फिर दुर्भाग्य की एक कुटिल क्रीड़ा उसे इस सुख से वंचित न कर देगी? उसे ऐसा आभास हुआ कि अनन्त-काल से वह सुख-लालसा के इसी चक्र में पड़ी हुई यातनाएँ झेल रही है। हाय रे ईश्वर! तूने ऐसा देव तुल्य पुरुष देकर भी मेरी सुख-लालसा को तृप्त न होने दिया।

इतने में शंखधर ने कहा—प्रिये, तुम इस शिला पर लेट जाओ और आँखें बन्द कर लो।