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कायाकल्प]
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कमला ने शिला पर बैठकर कातर स्वर में पूछा—प्राणनाथ, तब मुझे ये बातें याद रहेंगी?

शंखधर ने मुस्कराकर कहा—सब याद रहेंगी प्रिये, इससे निश्चिन्त रहो।

कमला—मुझे यह राज-पाट त्याग करना पड़ेगा?

शंखधर ने देखा, अभी तक कमला मोह में पड़ी हुई है। अनन्त सुख की आशा भी उसके मोह बन्धन को नहीं तोड़ सकी। दुखी होकर बोले—हाँ, कमला, तुम इससे बड़े राज्य की स्वामिनी बन जाओगी। राज्य सुख में बाधक नहीं होता, यदि विलास की ओर न ले जाय।

पर कमला ने ये शब्द न सुने। शिला में प्रवाहित विद्युत-शक्ति ने उसे अचेत कर दिया था। केवल उसकी आँखें खुली थीं। उसमें अब भी तृष्णा चमक रही थी।


५०

राजा विशालसिह की हिंसा-वृत्ति किसी प्रकार शान्त न होती थी। ज्यों-ज्यों अपनी दशा पर उन्हें दुःख होता था, उनके अत्याचार और भी बढ़ते थे। उनके हृदय में अब सहानुभूति, प्रेम और धैर्य के लिए जरा भी स्थान न था। उनकी सम्पूर्ण वृत्तियाँ 'हिंसा-हिंसा!' पुकार रही थीं। जब उनपर चारों ओर से दैवी आघात हो रहे थे, उनकी दशा पर दैव को लेशमात्र भी दया न आती थी, तो वह क्यों किसी पर दया करें? अगर उनका वश चलता, तो इन्द्रलोक को भी विध्वंस कर देते। देवताओं पर ऐसा आक्रमण करते कि वृत्रासुर की याद भूल जाती। स्वर्ग का रास्ता बन्द पाकर वह अपनी रियासत को ही खून के आँसू रुलाना चाहते थे। इधर कुछ दिनों से उन्होंने प्रतीकार का एक और ही शस्त्र खोज निकाला था। उन्हें निस्सन्तान रखकर मिली हुई सन्तान उनकी गोद से छीनकर, दैव ने उनके साथ सबसे बड़ा अन्याय किया था। देव के शस्त्रालय में उनका दमन करने के लिए यही सबसे कठोर शस्त्र था। इसे राजा साहब उनके हाथों से छीन लेना चाहते थे। उन्होंने सातवाँ विवाह करने का निश्चय कर लिया था। राजाओं के लिए कन्याओं की क्या कमी? ब्राह्मणों ने राशि, वर्ग और विधि मिला दी थी। बड़े-बड़े पण्डित इस काम के लिए बुलाये गये थे। उन्होने व्यवस्था दे दी थी कि यह विवाह कभी निष्फल नहीं जा सकता; अतएव कई महीने से इस सातवें विवाह की तैयारियाँ बड़े जोरों से हो रही थीं। कई राजवैद्य रात-दिन बैठे भाँति-भाँति के रस बनाते रहते। पौष्टिक औषधियाँ चारों ओर से मँगायी जा रही थी। राजा साहब यह विवाह इतनी धूम-धाम से करना चाहते थे कि देवताओँ के कलेजे पर साँप लोटने लगे।

रानी मनोरमा ने इधर बहुत दिनों से घर या रियासन के किसी मामले में बोलना छोड़ दिया था। वह बोलती भी, तो सुनता कौन? कहाँ तो यह हाल था कि राजा साहब को उसके बगैर एक क्षण भी चैन न आता था, उसे पाकर मानो वह सब कुछ पा गये थे। रियासत का सियाह-सुफेद सब कुछ उसी के हाथों में था; यहाँ तक कि उसके प्रेम-