घर आयी है। वहाँ की सभी चीजें, सभी प्राणी उसके जाने-पहचाने थे, पर अब उनमें कितना अन्तर हो गया था। उसका विशाल नाच घर बिलकुल बेमरम्मत पड़ा हुआ था। मोर उड़ गये थे, हिरन भाग गये थे और फौवारे सूखे हुए पड़े थे। लताएँ और गमले कब के मिट चुके थे, केवल लम्बे-लम्बे स्तम्भ खड़े थे, पर कमला को नाच घर के विध्वंस होने का जरा भी दुःख न हुआ। उसकी यह दशा देखकर उसे एक प्रकार का सन्तोष हुआ, मानो उसके घृणित विलास की चिता हो। अगर वह नाच-घर आज वैसा ही हराभरा होता, जैसा उसके समय में था, तो क्या वह उसके अन्दर कदम रख सकती? कदाचित् वह वहीं गिर पड़ती। अब भी उसे ऐसा जान पड़ा कि यह उसके उसी जीवन का चित्र है। कितनी ही पुरानी बातें उसकी आँखों में फिर गयीं, कितनी ही स्मृतियाँ जागृत हो गयीं। भय और ग्लानि से उसके रोएँ खड़े हो गये। आह! यही वह स्थान है, जहाँ उस हतभागिनी ने स्वयं अपने पति को न पहिचानकर उसके लिए अपने कलुषित प्रेम का जाल बिछाया था! आह! काश वह पिछली बातें भूल जाती। उस विकास जीवन की याद उसके हृदय-पट से मिट जाती! उन बातों को याद रखते हुए क्या उस जीवन का आनन्द उठा सकती थी? मृत्यु का भयंकर हाथ न जाने कहाँ से निकलकर उसे डराने लगा। ईश्वरीय दण्ड के भय से वह काँप उठी। दीनता के साथ मन में ईश्वर से प्रार्थना की—भगवान् , पापिनी मैं हूँ, मेरे पापों के लिए महेन्द्र को दण्ड मत देना। मैं सहस्र जीवन तक प्रायश्चित्त करूँगी, मुझे वैधव्य की आग में न जलाना।
नाच-घर से निकलकर देवप्रिया ने रानी मनोरमा के कमरे में प्रवेश किया। वह अनुपम छवि अब मलिन पड़ गयी थी। जिस केश राशि को हाथ में लेकर एक दिन वह चकित हो गयी थी, उसका अब रूपान्तर हो गया था। जिन आँखों में मद-माधुर्य का प्रवाह था, अब वह सूखी पड़ी थीं। उत्कण्ठा की करुण-प्रतिमा थी, जिसे देखकर हृदय के टुकड़े हुए जाते थे। कौन कह सकता था, वह सरला विशालसिंह के गले पड़ेगी।
मनोरमा बोली—नाच घर देखने गयी थीं। आजकल तो बेमरम्मत पड़ा हुआ है। उसकी शोभा तो रानी देवप्रिया के साथ चलो गयी।
देवप्रिया ने धीरे से कहा—वहाँ आग क्यों न लग गयी—यही आश्चर्य है?
मनोरमा—क्या कुछ सुन चुकी हो!
देवप्रिया—हाँ, जितना जानती हूँ, उतना ही बहुत है। और ज्यादा नहीं जानना चाहती।
यहाँ से वह रानी रामप्रिया के पास गयी। उसे देखकर देवप्रिया की आँखें सजल हो गयीं। बड़ी मुश्किल से आँसुओं को रोक सकी। आह! जिस बालिका को उसने एक दिन गोद में खिलाया था, वही अब इस समय यौवन की स्मृति मात्र रह गयी थी।
देवप्रिया ने वीणा की ओर देखकर कहा—आपको संगीत से बहुत प्रेम है?
रामप्रिया अनिमेष नेत्रों से उसकी ओर ताक रही थी। शायद देवप्रिया की बात उसके कानों तक पहुँची ही नहीं।