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कायाकल्प]
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वह पहला उत्साह लुप्त हो गया। उसी सुन्दर युवक की सूरत आँखों में नाचती रहती। उसी की बातें कानों में गूँजा करतीं। भोजन करने बैठते, तो उसकी जगह खाली देखकर उनके मुँह में कौर न धँसता। हरदम कुछ खोये-खोये-से रहते। बार बार यही जी चाहता था कि उसके पास चला जाऊँ। बार-बार चलने का इरादा करते; पर रुक जाते। साईंगञ्ज से जाने का अब उनका जी नहीं चाहता था। इतने दिनों तक वह एक जगह कभी नहीं रहे। शंखधर जिस कम्बल पर सोता था, उसे वह रोज झाड़-पोछकर तह करते हैं। शंखधर अपनी खँजरी यहीं छोड़ गया है। चक्रधर के लिए संसार में इससे बहूमूल्य कोई वस्तु नहीं है। शंखधर की पुरानी धोती और फटे हुए कुरते सिरहाने रखकर सोते हैं। रमणी अपने सुहाग के जोड़े की भी इतनी देख रेख न करती होगी।

सन्ध्या हो गयी है। चक्रधर मन्दिर के दालान बैठे हुए चलने की तैयारी कर रहे हैं। अब यहाँ नहीं रहा जा सकता। उस देवकुमार को देखने के लिए आज वह बहुत विकल हो रहे हैं।

गाँव के चौधरी ने आकर कहा—महाराज, आप व्यर्थ गठरी बाँध रहे हैं। हम लोगों का प्रेम आपको फिर आधे रास्ते से खींच लायेगा। आप हमारी विनती न सुनें पर प्रेम की रस्सी को कैसे तोड़ डालिएगा?

चक्रधर—नहीं भाई, अब जाने दो। बहुत दिन हो गये।

चौधरी का लड़का नीचे रखी हुई खँजरी उठाकर बजाने लगा। चक्रधर ने उसके हाथ से खँजरी छोन ली और बोले—खँजरी हमें दे दो बेटा, टूट जायगी।

लड़के ने रोकर कहा—हम खँजरी लेंगे। चौधरी ने चक्रधर की ओर देखकर कहा—बाबाजी के चरण छुओ, तो दिला दूँ।

चक्रधर बोले—नहीं भाई, खँजरी न दूँगा। यह खँजरी उस युवक की है, जो कई दिनों तक मेरे पास रहा था। दूसरे की चीज कैसे दे दूँ?

गाँव के बहुत-से आदमी जमा हो गये। चक्रधर विदा हुए। कई आदमी मील भर तक उनके साथ आये।

लेकिन प्रातःकाल लोग मन्दिर पर पूजा करने आये, तो देखा कि बाबा भगवान दास चबूतरे पर झाड़ लगा रहे हैं।

एक आदमी बोला—हम कहते थे, महाराज न जाइए, लेकिन आपने न माना। आखिर हमारी भक्ति खींच लायी न। अब इसी गाँव में आपकी कुटी बनानी पड़ेगी।

चक्रधर ने सकुचाते हुए कहा—अभी यहाँ कुछ दिन और अन्न-जल है भाई, सचमुच इस गाँव की मुहब्बत नहीं छोड़ती।

चक्रधर ने मन में निश्चय किया, अब शंखधर को देखने का इरादा कभी न करूँगा। वह अपने घर पहुँच गया। सम्भव है, उसका तिलक भी हो गया हो। मेरी याद भी उसे न आती होगी। मैं व्यर्थ ही उसके लिए इतना चिन्तित हूँ। पुत्र सभी के