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[ कायाकल्प
 


मुशीजी ने तिरस्कार के भाव से कहा-दो चार दिन पहले न आते बना कि लड़के का मुँह तो देख लेते । अब आये हो, जब कि सर्वनाश हो गया ! क्या बैठे यही मना रहे थे ?

चक्रधर रोये नहीं, गम्भीर एव, सुदृढ भाव से बोले-ईश्वर की इच्छा । मुझे किसी ने एक पत्र तक न लिखा । बीमारी क्या थी ?

मुन्शी-अजी, सिर तक नहीं दुखा, बीमारी होना किसे कहते हैं ? बस, होनहार । तकदीर | रात को भोजन करके बैठे एक पुस्तक पढ रहे थे । बहू से बात करते हुए स्वर्ग की राह ली। किसी हकोमचैद्य की अक्ल नहीं काम करती कि क्या हो गया था। जो सुनता है, दाँतोंत्तले अँगुली दबाकर रह जाता है। वेचारे राजा साहब भी इस शोक मे चल बसे । तुमने उसे भुला ही दिया था, पर उसे तुम्हारे नाम की रट लगी हुई थी। वेचारे के दिल में कैसे कैसे अरमान थे ! हम और तुम क्या रोयेंगे, रोती है प्रजा इतने ही दिनों मे सारी रियासत उसपर जान देने लगी थी। इस दुनिया में क्या कोई रहे ! जी भर गया । अब तो जब तक जीना है, तब तक रोना है । ईश्वर बड़ा ही निर्दयी है।

चक्रधर ने लम्बी साँस खींचकर कहा-मेरे कर्मों का फल है। ईश्वर को दोप न दीनिए ।

मुन्शी-तुमने ऐसे कर्म किये होंगे, मैंने नहीं किये । मुझे क्यों इतनी बड़ी चोट लगायी ? मैं भी अब तक ईश्वर को दयालु समझता था, लेकिन अब वह श्रद्धा नहीं रही । गुणानुवाद करते सारी उम्र बीत गयी । उसका यह फल | उसपर कहते हो, ईश्वर को दोष न दीजिए। अपने कल्याण ही के लिए तो ईश्वर का भजन किया है, या किसी को जीभ खुजलाती है ? कसम ले लो, जो आज से कभी एक पद भी गाऊँ। तोड़ आया सितार, सारगी, सरोद, पखावज; सब पटककर तोड़ डाले। ऐसे निर्दयी की महिमा कौन गाये और क्यों गाये ? मरदे आदमी, तुम्हारी आँखों से आँसू भी नहीं निकलते ' खड़े ताक रहे हो। मैं कहता हूँ-रो लो, नहीं तो कलेजे में नासूर पड़ जायगा । बड़े बड़े त्यागी देखे हैं, लेकिन जो पेट भरकर रोया नहीं, उसे फिर हँसते नहीं देखा । आओ , अन्दर चलो। बहू ने दीवार से सिर पटक दिया, पट्टी बाँधे पड़ी हुई है । तुम्हें देखकर उसे धीरज हो जायगा। मैं डरता हूँ कि वहाँ जाकर कहीं तुम भी रो न पड़ो, नहीं तो उसके प्राण ही निकल जायेंगे ।

यह कहकर मुन्शीजी ने उनका हाथ पकड़ लिया और अन्तःपुर में ले गये । अहल्या को उनके आने की खबर मिल गयी थी। उठना चाहती थी, पर उठने की शक्ति न थी।

चक्रधर ने सामने आकर कहा--अहल्या ! अहल्या ने फिर चेष्टा की । वरसों की चिन्ता, कई दिनों के शोक और उपवास एव बहुत-सा रक्त निकल जाने के कारण शरीर जीर्ण हो गया था। करवट घूमकर दोनों