थी कि कहीं कोई बुरी खबर न हो । क्षमा कीजिएगा, मैं उस समय वहाँ होती, तो श्रापको पकडकर खींच लाती । आपको अपनी जान का जरा भो मोह नहीं है।
चक्रधर-( हँसकर ) जान और हई किस लिए १ पेट पालने ही के लिए तो हम आदमी नही बनाये गये हैं। हमारे जीवन का अादर्श कुछ तो ऊँचा होना चाहिए, विशेषकर उन लोगों का, जो सभ्य कहलाते हैं । ठाट से रहना हो सभ्यता नहीं।
मनोरमा-(मुस्कराकर ) अच्छा, अगर इस वक्त आपको पाँच लाख रुपए मिल जायँ, तो श्राप लें या न लें।
चक्रधर-कह नहीं सकता, मनोरमा उस वक्त दिल की क्या हालत हो । दान तो न लूँगा, पड़ा हुआ धन भी न लॅगा; लेकिन अगर किसी ऐसी विधि से मिले कि उसे लेने मे आत्मा की हत्या न होती हो, तो शायद मैं प्रलोभन को रोक न सकूँ पर इतना अवश्य कह सकता हूँ कि उसे भोग-विलास मे न उड़ाऊँगा। धन की में निन्दा नहीं करता, उससे मुझे डर लगता है। दूसरों का आश्रित बनना तो लज्जा की बात है, लेकिन जीवन को इतना सरल रखना चाहता हूँ कि सारी शक्ति धन कमाने और अपनी जरूरतों को पूरा करने ही मे न लगानी पड़े।
मनोरमा--धन के बिना परोपकार भी तो नही हो सकता ?
चक्रधर-परोपकार में करना नहीं चाहता, मुझमे इतनी सामर्थ्य ही नहीं। यह तो वे ही लोग कर सकते हैं, जिन पर ईश्वर की कृपा दृष्टि हो । मै परोपकार के लिए अपने जीवन को सरल नहीं बनाना चाहता; बल्कि अपने उपकार के लिए, अपनी आत्मा के सुधार के लिए । मुझे अपने ऊपर इतना भरोसा नहीं है कि धन पाकर भी भाग में न पड़ जाऊँ । इसलिए मैं उससे दूर ही रहना चाहता हूँ।
मनोरमा--अच्छा, अब यह तो बतलाइए कि आपसे वधूजी ने क्या बातें की ? (मुस्कराकर ) मैं तो जानती हूँ, आपने कई बात-चीत न को होगी, चुपचाप लजाये बैठे रहे होंगे । उसी तरह वह भी आपके सामने आकर खड़ी हो गयी होगी और खड़ी-खड़ी चली गयी होंगी।
चक्रधर शरम से सिर मुकाकर बोले- हाँ, मनोरमा, हुआ तो ऐसा ही । मेरी समझ ही मे न पाता था कि क्या बातें करूँ। उसने दो एक बार कुछ बोलने का साहस भी किया।
मनोरमा-ग्रापको देखकर खुश तो बहुत हुई होगी।
चक्रधर--(शरमाकर ) किसी के मन का हाल मै क्या जानू ?
मनोरमा ने अत्यन्त सरल भाव से कहा- सब मालूम हो जाता है। पाप मुझसे बता नहीं रहे हैं । कम-से-कम उनकी इच्छा तो मालूम ही हो गयी होगी । मे तो सम-झती हूँ, जो विवाह लड़की की इच्छा के विरुद्ध किया जाता है वह विवाह ही नहीं है । आपका क्या विचार है ?
चक्रधर बड़े असमञ्जस में पड़े । मनोरमा से ऐसी बातें करते उन्हें सकोच होता