पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८
[कायाकल्प
 

था । डरते थे कि कहीं ठाकुर साहब को सबर मिल जाय-~सरला मनोरमा ही कह दे--तो वह समझेगे, मै इसके सामाजिक विचारो मे क्राति पैदा करना चाहता हूँ, श्रत्र तक उन्हें शात न था कि ठाकुर साहब किन विचारों के यादमी है। हाँ, उनके गङ्गा-स्नान से यह अाभास होता था कि वह सनातन धर्म के भक्त हैं। सिर झुकाकर बोले--मनोरमा, हमारे यहाँ विवाह का अाधार प्रेम यार इच्छा पर नहीं, धर्म और कर्तव्य पर रखा गया है । इच्छा चश्वल है, क्षण-क्षण में बदलती रहती है । कर्तव्य स्थायो है, उसमें कभी परिवर्तन नहीं होता।

मनोरमा-अगर यह बात है, तो पुराने जमाने में स्वयम्बर क्यों होते थे ?

चक्रधर--स्वयम्बर मे कन्या की इच्छा ही सर्व प्रधान नहीं है तो थी । वह वीर-युग था, और वीरता ही मनुष्य का सबसे उज्ज्वल गुण समझा जाता था । लोग अाजकन वैवाहिक प्रथा सुधारने का प्रयत्न तो कर रहे है।

मनोरमा-जानती हूँ, लेकिन कहीं सुधार हो रहा है ? माता पिता धन देखकर लट्ट हो जाते हैं | इच्छा अस्थायी है, मानती हूँ, लेकिन एक बार अनुमति देने के बाद फिर लड़की को पछताने के लिए कोई हीला नही रहता।

चक्रधर-~अपने मन को समझाने के लिए तों की कभी कमी नहीं रहती, मनोरमा कर्तव्य ही ऐसा श्रादर्श है, जो कभी धोसा नहीं दे सकता ।

मनोरमा--हाँ, लेकिन प्रादर्श अादर्श ही रहता है, यथार्थ नहीं हो सकता । (मुस्कराकर ) यदि आप ही का विवाह किसी कानी, काली-कलूटी स्त्री से हो जाय, तो क्या श्रापको दु ख न होगा? वोलिए । क्या आप समझते हैं कि लड़की का विवाह किसी खूसट से हो जाता है, तो उसे दु ख नही होता। उसका बम च ते तो वह पति का मुँह तक न देखे । लेकिन इन बातों को जाने दीजिए । वधूजी बहुत सुन्दर हैं ?

चक्रवर ने बात टालने के लिए कहा-सुन्दरता मनोभावों पर निर्भर होती है। माता अपने कुरूप बालक को भी सुन्दर समझती है ।

मनोरमा--श्राप तो ऐसी बातें कर रहे हैं, जैसे भागना चाहते हो । क्या माता किसी सुन्दर बालक को देखकर यह नहीं सोचती कि मेरा भी बालक ऐसा ही होता।

चक्रधर ने लजित होकर कहा- मेरा श्राशय यह न था। मै यही कहना चाहता था कि सुन्दरता के विषय में सब की राय एक-सी नहीं हो सकती

मनोरमा--श्राप फिर भागने लगे। मै जब आपसे यह प्रश्न करती हूँ, तो उसका साफ मतलब यह है कि आप उन्हें सुन्दर समझते हैं या नहीं?

चक्रवर लजा से सिर झुकाकर बोले--ऐसी बुरी तो नहीं है।

मनोरमा--तब तो श्राम उन्हें खूब प्यार करेंगे ?

चक्रधर-प्रेम केवल रूप का भक्त नहीं होता ।

सहसा घर के अन्दर से किसी के कर्कश शब्द कान में आये, फिर लौंगो का रोना सुनायी दिया । चक्रधर ने पूछा- यह तो लौंगी रो रही है ?