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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/४८

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कायाकल्प]
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मेरे सौन्दर्य-दीपक पर युवक पतंगे की भाँति श्राकर गिरें । उनकी रसमयी कल्पना प्रेम के आघात-प्रत्याघात से एक विशेष स्फूर्ति का अनुभव करती थी।

एक दिन ठाकुर हरिसेवकसिंह मनोरमा को रानी साहब के पास ले गये । रानी उसे देखकर मोहित हो गयीं। तबसे दिन में एक बार उससे जरूर मिलती। वह किसी कारण से न पाती तो उसे बुला भेजती । उसका मधुर गाना सुनकर वह मुग्ध हो जाती थी। हरिसेवक सिह का उद्देश्य कदाचित् यही था कि वहाँ मनोरमा को रईसो और राज-कुमारों को श्राकर्षित करने का मौका मिलेगा।

भदों की अँधेरी रात थी । मूसलाधार वर्षा हो रही थी। रानी साहब को ग्रान कुछ ज्वर था, चेष्टा गिरी हुई थी, सिर उठाने को जी न चाहता था, पर पड़े रहने का अव-सर न था । हर्पपुर के राजकुमार को आज उन्होंने निमन्त्रित किया था। उनके आदर- सत्कार का काम करना जरूरी था। उनके सहवास के सुख से वह अग्ने को वचित न कर सकती थीं। उनके आने का समय भी निकट था। रानी ने बड़ी मुश्किल से उठकर पाइने में अपनी सूरत देखी। उनके हृदय पर आघात-सा हुआ । मुख प्रभात-चन्द्र की भॉति मन्द हो रहा था।

रानी ने सोचा-अभी राजकुमार आते होंगे । क्या मैं उनसे इसी दशा मे मिलूँगी ? ससार में क्या कोई ऐसी सञ्जीवनी नहीं है, जो काल के कुटिल चिह्न को मिटा दे ? ऐसी वस्तु कहीं मिल जाती, तो मे अपना सारा राज्य वेचकर उसे ले लेती। जब भोगने की सामर्थ्य ही न हो, तो राज्य से और सुख ही क्या ! हा निर्दयी काल ! तूने मेरा कोई प्रयत्न सफल न होने दिया।

राजकुमार अब अाते होंगे, मुझे तैयार हो जाना चाहिए । ज्वर है, कोई परवा नहीं। मालूम नहीं, जीवन में फिर ऐसा अवसर मिले या न मिले।

सामने मेज पर एक अलबम रखा था। रानी ने राजकुमार का चित्र निकालकर देखा । कितना सहास मुख था, कितना तपस्वी स्वरूप, कितनी सुधामयी छवि !

रानी एक अारामकुरसी पर लेटकर सोचने लगी-यह चित्र न जाने क्यों मेरे चित्त को इतने जोर से खींच रहा है। मेरा चित्त कभी इतना चंचल न हुआ था । इसी अल-चम में और भी कई चित्र हैं, जो इससे कहीं सुन्दर हैं, लेकिन उन नवयुवकों को मैंने कठपुतलियों की तरह नचाकर छोड़ा। यह एक ऐसा चित्र है, जो मेरे हृदय में भूली हुई बातों को याद दिला रहा है, जिसके सामने ताकते हुए मुझे लज्जा-मी अाती है !

रानी ने घड़ी की ओर अातुर नेत्रों से देखा । ६ वन रहे थे । अब वह लेटी न रह सको सँभलकर उठी; अालमारी में से एक शीशी निकाली। उसमें से कई वू दे एक प्याली में डाली और आँखें बन्द करके पी गयी । इसका चमत्कारिक अगर हुया, मानो कोई कुम्हलाया हुआ फूल ताजा हो जाय; कोई सूखी पत्ती हरी हो जाय । उनके मुख-मण्डल पर अामा दौड़ गयी। आँखों में चंचल सजीवता का विकास हो गया, शरीर में नये रक्त का प्रवाह-सा होने लगा। उन्होंने फिर आईने की ओर देखा और उनके