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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/५९

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[कायाकल्प
 

के लिए एक गीत गाने लगा। लेकिन न जाने का आँखें झपक गयीं। कह नहीं सकता, कितनी देर तक सोया, जब नींद खुली और चाहा कि उठूँ, तो ऐसा मालूम हुआ कि ऊपर मनों बोझ रखा हुआ है। सब अंग जकड़े हुए थे। कितना ही जोर मारता था, पर अपनी जगह से हिल न सकता था चेतना किसी डूबते हुए नक्षत्र की भाँति डूबती जाती थी। समझ गया कि जीवन से इतने दिनों तक का साथ था। पूर्व स्मृतियाँ चेतना की अन्तिम जागृति की भाँति जाग्रत हो गयीं। अपनी मूर्खता पर पछताने लगा। व्यर्थ प्राण खोये। इतना जानने ही से तो उद्धार न होगा कि मैं पूर्व जन्म में क्या था। यह ज्ञान न रखते हुए भी संसार में एक-से एक ज्ञानी, एक-से-एक प्रणवीर, एक से एक धर्मात्मा हो गये, क्या उनका जीवन सार्थक हुआ? यही सोचते-सोचते न जाने कब मेरी चेतना का अपहरण हो गया। जब आँख खुली, तो देखा कि एक छोटी-सी कुटी में मृगचर्म पर कम्बल ओढ़े पड़ा हुआ हूँ और एक पुरुष बैठा मेरे मुख की ओर वात्सल्य दृष्टि से देख रहा है। मैंने इन्हें पहचान लिया। यह वही महात्मा थे, जिनके दर्शनों के लिए मैं लालायित हो रहा था। मुझे आँखें खोलते देखकर वह सदय भाव से मुस्कराये और बोले—हिम-शय्या कितनी पी वस्तु है! पुष्प शय्या पर तुम्हें कभी इतना सुख मिला था?

मैं उठ बैठा और महात्मा के चरण पर सिर रखकर बोला—आपके दर्शनो से जीवन सफल हो गया। आपकी दया न होती, तो शायद वहीं मेरा अन्त हो जाता।

महात्मा—अन्त कभी किसी का नहीं होता। जीव अनन्त है। हाँ, अज्ञानवश हम ऐसा समझ लेते हैं।

मैं—मुझे आपके दर्शनों की बड़ी इच्छा थी। आपमें अमानुषीय शक्ति है।

महात्मा—इसी लिए ऐसा समझते हो कि तुमने मुझे शिलाओं पर चढते देखा है? यह तो अमानुषीय शक्ति नहीं है। यह तो साधारण मनुष्य भी अभ्यास से कर सकता है।

मैं—आपने योग द्वारा ही यह बल प्राप्त किया होगा?

महात्मा—नहीं, मैं योगी नहीं प्रयोगी हूँ। आपने डारविन का नाम सुना होगा? पूर्व जन्म में मेरा हो नाम डारविन था।

मैंने विस्मित होकर कहा—आप ही डारविन थे?

महात्मा—हाँ, उन दिनों मैं प्राणि शास्त्र का प्रेमी था। अब प्राण-शान का खोजी हूँ।

सहसा मुझे अपनी देह में एक अद्भुत शक्ति का सञ्चालन होता हुया मालूम हुआ। नाड़ी की गति तीव्र हो गयी, आँखों से ज्योति की रेखाएँ-सी निकलने लगी। वाणी में ऐसा विकास हुआ, मानो कोई क्ली खिल गयी हो। में फुर्ती से उठ बैठा और महात्माजी के चरणों पर झुकने लगा, किन्तु उन्होंने मुझे रोककर कहा—तुम मुझे शिलानों पर चलते देखकर विस्मित हो गये, पर वह समय आ रहा है, जब आनेवाली जाति जल, स्थल और आकाश में समान रीति से चल सकेगी। यह मेरा विश्वास है।