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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/६५

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[कायाकल्प
 

हो रहा था कि मेरा यौवन पुष्य फिर खिलेगा, और सौन्दर्य दीपक फिर जलेगा।

राजकुमार—तो अब मैं जाता हूँ। कल संध्या-समय फिर आऊँगा। इसी बीच में तुम यात्रा की तैयारियाँ कर लेना।

देवप्रिया ने राजकुमार का हाथ पकड़कर कहा—मैं आपके साथ चलूँगी। मुझे न-जाने कैसी शकाएँ हो रही हैं। में अब एक क्षण के लिए भी आपको न छोड़ूँगी।

राजकुमार—यों चलने से लोगों के मन में भाँति-भाँति की शकाएँ होंगी। मेरे पुनर्जन्म का किसी को विश्वास न आयेगा, लोग समझेंगे कि ऐब को छिपाने के लिए यह कया गढ़ ली गयी है, केवल कुत्सित प्रेम को छिपाने के लिए यह कौशल किया गया है। इसलिए तुम किसी तीर्थ यात्रा

रानी ने बात काटकर कहा—मुझे अब लोक-निन्दा का भय नहीं है। मैं यह कहने को तैयार हूँ कि अपने प्राणपति के साथ जा रही हूँ।

राजकुमार ने मुस्कुराकर कहा—अगर मैं तुमसे दगा करूँ, तो?

रानी ने भयातुर होकर कहा—प्राणनाथ, ऐसी बातें न करो। मैं अपने को तुम्हारे चरणों पर अर्पण कर चुकी, लेकिन कुसंस्कारों से मुक्त नहीं हूँ। यदि कोई आदमी अभी आकर मुझसे कहे कि इन्द्रजाल का खेल कर रहे हैं, तो मैं नहीं कह सकती कि मेरी क्या दशा होगी। अलौकिक बातों को समझने के लिए अलौकिक बुद्धि चाहिए और मैं इससे वञ्चित हूँ। मैं निष्कपट भाव से अपने मन की दुर्बलताएँ, प्रकट कर रही हूँ। मुझे क्षमा कीजिएगा। अभी बहुत दिन गुजरेंगे, जब मैं इस स्वप्न को यथार्थ समझूँगी। उस स्वप्न को भंग न कीजिए। इस वक्त यहीं आराम कीजिए, रात बहुत बीत गयी है। मैं तब तक कुँवर विशालसिंह को सूचना दे दूँ कि वह आकर अपना राज्य सँभालें। कल मैं प्रातःकाल आपके साथ चलने को तैयार हो जाऊँगी।

यह कहकर रानी ने राजकुमार के लिए भोजन लाने की आज्ञा दी। जब वह भोजन करने लगे, तो आप ही खड़ी होकर उन्हें पंखा झलने लगी। ऐसा स्वर्गीय आनन्द उसे कभी प्राप्त न हुआ था। उसके मर्मस्थल में प्रेम और उल्लास की तरंगें उठ रही थीं, जी चाहता था कि इसी क्षण इनके चरणों पर गिरकर प्राण त्याग दूँ।

कुँवर साहब लेटने गये, तो रानी ने विशालसिंह के नाम पत्र लिखा—'कुँवर विशालसिंहजी',

इतने दिनों तक मायाजाल में फँसे रहने के बाद अब मेरा चित्त संसार से विरक्त हो गया है। मैं तीर्थयात्रा करने जा रही हूँ और शायद फिर न लोटूँगी। किसी तीर्थस्थान में ही अपने जीवन के शेष दिन काटूँगी। आपको उचित है कि आकर अपने राज्य का भार सँभालें। मुझे खेद है कि मेरे कारण आपको बड़े-बड़े कष्ट भोगने पड़े। आपने मेरे साथ जो अनीति की, उसे भी मैं क्षमा करती हूँ। मायान्ध होकर हम सभी ऐसा करते हैं। मेरी आपसे इतनी ही प्रार्थना है कि मेरी लौंडियों और सेवकों पर दया कीजिएगा। मैं अपने साथ कोई चीज नहीं ले जा रही हूँ। मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना