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[कायाकल्प
 

महीने मिलेंगे, यद्यपि मैं इसे भी आपकी योग्यता और परिश्रम को देखते बहुत कम समझता हूँ।

लौंगी देवी भी आ पहुँचीं। कही बदी बात थी। ठाकुर साहब का समर्थन करके बोलीं—देवता-रूप हैं, देवता-रूप! मेरी तो इन्हें देखकर भूख प्यास बन्द हो जाती है।

हरिसेवक—तो तुम इन्हीं को देख लिया करो, खाने का कष्ट न उठाना पड़े।

लौंगी—मेरे ऐसे भाग्य कहाँ। क्यों बेटा, तुम नौकरी क्यों नहीं कर लेते?

चक्रधर—जितना आप देती हैं, मेरे लिए उतना ही काफी है।

लौंगी—इसी से शादी-ब्याह नहीं करते? अब की लाला (वज्रधर) आते हैं, तो उनसे कहती हूँ, लड़के को कब तक छटा रखोगे।

हरिसेवक—शादी यह खुद ही नहीं करते, वह बेचारे क्या करें। यह स्वाधीन रहना चाहते हैं।

लौंगी—तो कोई रोजगार क्यों नही करते, बेटा?

चक्रधर—अभी इस चरखे में नहीं पहना चाहता।

हरिसेवक—यह और ही विचार के आदमी हैं। माया फाँस में नहीं पड़ना चाहते।

लौंगी—धन्य है, बेटा! धन्य है। तुम सच्चे साधु हो।

इस तरह की बातें करके ठाकुर साहब अन्दर चले गये लौंगी भी उनके पीछे पीछे चली गयी। मनोरमा सिर झुकाये दोनों प्राणियों की बातें सुन रही थी और किसी शंका से उसका दिल काँप रहा था। किसी आदमी में स्वभाव के विपरीत आचरण देखकर शंका होती ही है। आज दादाजी इतने उदार क्यों हो रहे हैं? आज तक इन्होंने किसीको पूरा वेतन भी नहीं दिया, तरक्की करने का जिक्र ही क्या। आज विनय और दया की मूर्ति क्यों बने जाते हैं, इसमें अवश्य कोई रहस्य है। बाबूजी से कोई कपट-लीला तो नहीं करना चाहते हैं? जरूर यही बात है। कैसे इन्हें सचेत कर दूँ?

वह यही सोच रही थी कि गुरुसेवकसिंह कन्धे पर बन्दूक रखे, शिकारी कपड़े पहने एक कमरे से निकल आये और बोले—कहिए महाशय, दादाजी तो आज आपसे बहुत प्रसन्न मालूम होते थे।

चक्रधर ने कहा—यह उनकी कृपा है।

गुरुसेवक—कृपा के धोखे में न रहिएगा। ऐसे कृपालु नहीं हैं। इनका मारा पानी भी नहीं माँगता। इस डाइन ने इन्हें पूरा राक्षस बना दिया है। शर्म भी नहीं आती। आपसे जरूर कोई मतलब गाँठना चाहते हैं।

चक्रधर ने मुस्कराकर कहा—लौंगी अम्मा से आपका मेल नहीं हुआ?

गुरुसेवक—मेल? मैं उससे मेल करूँगा! मर जाय, तो कन्धा तक न दें। डाइन है, लंका की डाइन, उसके हथकण्डों से बचते रहिएगा। वेतन कभी बाकी न रखिएगा। दादाजी को तो इसने बुद्धू बना छोड़ा है। दादाजी जब किसी पर सख्ती करते हैं तो तुरन्त घाव पर मरहम रखने पहुँच जाती हैं। आदमी धोखे में आकर समझता है, यह