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[कायाकल्प
 

फाड़कर काम कर रहे थे, भूखों मरते थे। कोई उनकी खबर तक न लेता था। काम लेने को सब थे, पर भोजन पूछनेवाला कोई न था। चमार पहर रात रहे घास छीलने जाते, मेहतर पहर रात से सफाई करने लगते, कहार पहर रात से पानी खींचना शुरू करते, मगर कोई उनका पुरसाँहाल न था। चपरासी बात बात पर उन्हें गालियाँ सुनाते, क्योंकि उन्हें खुद बात-बात पर डाँट पड़ती थी। चपरासी सहते थे, क्योंकि उन्हें दूसरों पर अपना गुस्सा उतारने का मौका मिल जाता था। बेगारों से न सहा जाता था, इसी लिए कि उनकी आँतें जलती थी। दिन भर धूप में जलते, रात-भर क्षुधा की आग में। रानी के समय में बेगार इससे भी ज्यादा ली जाती थी, लेकिन रानी को स्वय उन्हें खिलाने पिलाने का खयाल रहता था। बेचारे अब उन दिनों को याद कर-करके रोते थे। क्या सोचते थे, क्या हुआ? असन्तोष बढ़ता जाता था। न-जाने कब सब के सब जान पर खेल जायँ, हड़ताल कर दें, न जाने कब बारूद में चिनगारी पड़ जाय। दशा ऐसी भयंकर हो गयी थी। राजा साहब को नरेशों ही की खातिरदारी से फुरसत न मिलती थी, यह सत्य है, किन्तु राजा के लिए ऐसे बहाने शोभा नहीं देते। उसकी निगाह चारों तरफ दौड़नी चाहिए। अगर उसमें इतनी योग्यता नहीं, तो उसे राज्य करने का कोई अधिकार नहीं।

सन्ध्या का समय था। चारों तरफ चहल-पहल मची हुई थी। तिलक का मुहूर्त निकट आ गया था। हवन की तैयारियाँ हो रही थी। सिपाहियों को वर्दी पहनकर खड़े हो जाने की आज्ञा दे दी गयी थी कि सहसा मजदूरों के बाड़े से रोने चिल्लाने की आवाजें आने लगीं। किसी कैम्प में घास न थी और ठाकुर हरिसेवक हंटर लिये हुए चमारों को पीट रहे थे। मुंशी वज्रधर की आँखें मारे क्रोध के लाल हो रही थीं। कितना अनर्थ है। सारा दिन गुजर गया और अभी तक किसी कैम्प में घास नहीं पहुँची! चमारों का यह हौसला! ऐसे बदमाशों को गोली मार देनी चाहिए।

एक चमार बोला—मालिक, आपको अख्तियार है। मार डालिए मुदा पेट बाँध कर काम नहीं होता।

चौधरी ने हाथ बाँधकर कहा—हुजूर, घास तो रात ही को पहुँचा दी गई थी, मैं आप जाकर रखवा आया था। हाँ, इस बेला अभी नहीं पहुँची। आधे आदमी तो माँदे पड़े हुए हैं। क्या करूँ?

मुंशी—बदमाश! झूठ बोलता है, सुअर, डैमफूल, ब्लाडी, रैस्केल, शैतान का बच्चा, अभी पोलो खेल होगा, घोड़े बिना खाये कैसे दौड़ेंगे?

एक युवक ने यहा—हम लोग तो बिना खाये आठ दिन से घास दे रहे हैं, घोड़े क्या बिना खाये एक दिन भी न दौड़ेंगे? क्या हम घोड़े से भी गये गुजरे हैं?

चौधरी डण्डा लेकर युवक को मारने दौड़ा, पर उसके पहले ही ठाकुर साहब ने झपटकर उसे चार पाँच हटर सड़ाप सड़ाप लगा दिये। नंगी देह, चमड़ा फट गया, खून निकल आया।