पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/२६

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मज़दूर आंदोलन का इतिहास इस चित्र को भरने के लिए काफ़ी नयी सामग्री देता है।

सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य के उत्पादन का विश्लेषण करते हुए मार्क्स ने उस क्रम की तीन प्रधान और ऐतिहासिक मंजिलों की खोज की जिससे पूंजीवाद ने श्रम की उत्पादकता को बढ़ाया है,- (१) साधारण सहयोग ; (२) श्रम-विभाजन और कारखानों में उत्पादन ; ( ३ ) मशीनें और बड़े पैमाने पर उद्योग-धन्धे। मार्क्स ने किस गंभीरता से पूंजीवादी विकास के आधारभूत और विशेष लक्षणों को प्रकट कर दिया है, वह संयोगवश इस बात से मालूम हो जाता है कि रूस के तथाकथित "घरेलू” उद्योग-धंधों की जांच से पहली दो मंज़िलों का निदर्शन करने के लिए ढेर सारी सामग्री मिल जाती है। १८६७ में मार्क्स ने बड़े पैमाने के मशीन वाले उद्योग-धंधों के जिस क्रान्तिकारी प्रभाव का वर्णन किया था, वह कई “नये" देशों में, जैसे रूस, जापान आदि में, पिछले पचास साल में स्पष्ट हो गया है।

लेकिन आगे चलिये। मार्क्स ने पूंजी के संचय का जो विश्लेषण किया है - अर्थात् अतिरिक्त मूल्य के एक भाग का पूंजी में परिवर्तन और इस भाग का पूंजीपति की अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं या इच्छाओं की पूर्ति के लिए उपयोग न करके उसे अधिक उत्पादन में लगाना - वह अत्यन्त महत्वपूर्ण और मौलिक है। मार्क्स ने पहले के क्लासिकल राजनीतिक अर्थशास्त्र की (ऐडम स्मिथ से लेकर) धारणाओं को भ्रमपूर्ण बताया था जिनके अनुसार सभी अतिरिक्त मूल्य, जो पूंजी में परिवर्तित होता था, अस्थिर पूंजी बन जाता था। वास्तव में वह अस्थिर पूंजी तथा उत्पादन के साधनों में बंट जाता है। पूंजी के संपूर्ण भण्डार में अस्थिर पूंजी की अपेक्षा स्थिर पूंजी का ज्यादा तेज़ी से बढ़ना पूंजीवाद के विकास-क्रम में और पूंजीवाद से समाजवाद के परिवर्तन-क्रम में अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

पूंजी के संचय से मशीनों का मज़दूरों की जगह लेने का काम तेज़ी से बढ़ चलता है ; एक सिरे पर सम्पत्ति इकट्ठी होती है तो दूसरी ओर निर्धनता का राज होता है। इस प्रकार पूंजी के संचय से तथाकथित " मजदूरों की रिज़र्व फ़ौज" पैदा होती है, मजदूरों का "अपेक्षाकृत

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