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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/२८

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का सहकारिता वाला रूप भी विकसित होने लगता है ; विज्ञान का सचेत रूप से प्राविधिक प्रयोग होता है, धरती में नियमपूर्वक खेती होने लगती है; श्रम-साधनों का ऐसे श्रम-साधनों में परिवर्तन हो जाता है जो सामूहिक रूप से ही प्रयुक्त हो सकें , साथ ही संयुक्त समाजगत श्रम के उत्पादन-साधनों के रूप में सभी उत्पादन-साधनों का उपयोग करके उनकी संख्या में कमी की जाती है; दुनिया के बाज़ार के जाल में सभी लोग फंस जाते हैं और इसके साथ पूंजीवादी शासन की अन्तर्राष्ट्रीयता बढ़ती जाती है। पूंजीशाहों की संख्या - जो इस परिवर्तन-क्रम के सभी लाभों को हथियाकर उनपर अपना एकाधिकार कर लेते हैं- जैसे-जैसे लगातार कम होती जाती है, वैसे-वैसे ही दैन्य, अत्याचार, दासता, पतन और शोषण में वृद्धि होती है। परन्तु इसके साथ उस मज़दूर वर्ग का विद्रोह भी बढ़ता जाता है जिसकी संख्या लगातार बढ़ती जाती है , और जिसमें स्वयं पूंजीवादी उत्पादनक्रम के यान्त्रिक स्वरूप से ही अनुशासन , एकता और संगठन उत्पन्न होता है। पूंजी का एकाधिकार उस उत्पादन-पद्धति के लिए शृंखल बन जाता है जो उसके साथ और उसकी अधीनता में पनपी और फली-फूली थी। उत्पादन के साधनों का केन्द्रीकरण और श्रम का समाजीकरण एक बिन्दु पर जा पहुंचता है जहां पूंजीवादी खोल में उनका रहना असम्भव हो जाता है। वह खोल फट जाती है। पूंजीवादी व्यक्तिगत सम्पत्ति की अन्तिम घड़ी आ पहुंचती है। अपहरण करनेवालों का अपहरण हो जाता है।' ( 'पूंजी', खंड १)

'पूंजी' के दूसरे खंड में मार्क्स का समूची सामाजिक पूंजी के पुनरुत्पादन का विश्लेषण अतिशय महत्व का है और बिल्कुल नया है। यहां भी मार्क्स ने किसी विलग घटना की चर्चा न करके एक सामूहिक घटना-क्रम पर विचार किया है। उन्होंने समाज की आर्थिक व्यवस्था के किसी अंश पर नहीं, वरन् इस सम्पूर्ण व्यवस्था पर ही विचार किया है। क्लासिकल अर्थशास्त्रियों की उपरोक्त भूल को सुधारते हुए मार्क्स ने समूचे सामाजिक उत्पादन को दो बड़े भागों में बांटा है : (१) उत्पादन-साधनों का उत्पादन और (२) उपभोगवस्तुओं का उत्पादन। अंकों द्वारा उदाहरण देते हुए उन्होंने समूची सामाजिक पूंजी के परिचालन की- जब अपने

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