माल ६७ मालों में वो बह-पूजा निहित है या श्रम के सामाजिक गुण जिस भौतिक रूप में प्रकट होते है, उसने कुछ पर्वशास्त्रियों को किस पुरी तरह भटका दिया है, इसका कुछ अनुमान अन्य बातों के अलावा उस नीरस और थका देने वाली बहस से लग सकता है, जो इस विषय को लेकर ईश्वर से उद्भूत हुमा है।- मतलब यह कि अभी तक तो इतिहास का क्रम चल रहा था, पर हमारे साथ वह सम्पूर्ण हो गया है।"] (Karl Marx: "Misere de la Philosophie. R& ponse a la Philosophie de la Misere par M. Proudhon" [कार्ल मार्क्स, 'दर्शन की दरिद्रता। मि० भ्रूधों की पुस्तक 'दरिद्रता का दर्शन' का जवाब'], 1847, पृ० ११३। ) मि. बास्तियात के हाल पर सचमुच हंसी पाती है। उनका खयाल है कि प्राचीन काल में यूनानी और रोमन लोग केवल लूट-मार के सहारे ही जीवन बसर करते थे। लेकिन जब लोग सदियों तक लूट-मार करते हैं, तो कोई ऐसी चीज हमेशा उनके नजदीक रहनी चाहिये , जिसे वे लूट सकें ; लूट-मार की चीजों का लगातार पुनरुत्पादन होते रहना चाहिए । परिणामतः इससे ऐसा लगेगा कि यूनानियों और रोमनों के यहां भी उत्पादन की कोई क्रिया थी। चुनांचे उनके यहां कोई अर्थ-व्यवस्था भी रही होगी, और जिस प्रकार पूंजीवादी अर्थ-व्यवस्था हमारी आधुनिक दुनिया का भौतिक प्राधार है, उसी प्रकार वह अर्थ-व्यवस्था यूनानियों और रोमनों की दुनिया का भौतिक प्राधार रही होगी। या शायद बास्तियात के कथन का अर्थ यह है कि दास-प्रथा पर आधारित उत्पादन-प्रणाली लूट-मार की प्रणाली पर पाधारित होती है ? यदि यह बात है, तो बास्तियात खतरनाक जमीन पर पांव रख रहे हैं। यदि अरस्तू जैसा महान विचारक दासों के श्रम को समझने में गलती कर गया, तो फिर बास्तियात जैसा बौना अर्थशास्त्री मजदूरी लेकर काम करने वाले मजदूरों के श्रम को कैसे सही तौर पर समझ सकता है ? - मैं इस अवसर से लाभ उठाकर अमरीका में प्रकाशित एक जर्मन पत्र के उस ऐतराज का संक्षेप में जवाब दे देना चाहता हूं, जो उसने मेरी रचना "Zur Kritik der Pol. Oekonomie, 1859" ('अर्थशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास') पर किया है। मत है कि प्रत्येक विशिष्ट उत्पादन-प्रणाली और उसके अनुरूप सामाजिक सम्बंध , या संक्षेप में कहिये , तो समाज की मार्थिक गठन ही वह वास्तविक पाधार होती है, जिसपर कानूनी एवं राजनीतिक ऊपरी ढांचा खड़ा किया जाता है और जिसके अनुरूप चिन्तन के भी कुछ निश्चित सामाजिक रूप होते हैं ; मेरा मत है कि उत्पादन की प्रणाली आम तौर पर सामाजिक, राजनीतिक एवं बौद्धिक जीवन को निर्धारित करती है। इस पत्र की राय में , मेरा यह मत हमारे अपने जमाने के लिये तो बहुत सही है, क्योंकि उसमें भौतिक स्वार्थों का बोलबाला है, लेकिन वह मध्य युग के लिये सही नहीं है, जिसमें कैथोलिक धर्म का बोलबोला था, और वह एथेंस और रोम के लिये भी सही नहीं है, जहां राजनीति का ही डंका बजता था। अब सबसे पहले तो किसी का यह सोचना सचमुच बड़ा अजीब लगता है कि मध्य युग और प्राचीन संसार के बारे में ये पिटी-पिटायी बातें किसी दूसरे को मालूम नहीं है। बहरहाल इतनी बात तो स्पष्ट है कि मध्य युग के लोग केवल कैथोलिक धर्म के सहारे या प्राचीन संसार के लोग केवल राजनीति के सहारे जिन्दा नहीं रह सकते थे। इसके विपरीत, उनके जीविका कमाने के ढंग से ही यह बात साफ़ होती है कि क्यों एक काल में राजनीति की और दूसरे काल में कैथोलिक धर्म की भूमिका प्रधान थी। जहां तक बाक़ी बातों का सम्बंध है, तो, उदाहरण के लिए, रोमन प्रजातंत्र के इतिहास की मामूली जानकारी यह जानने के लिये काफ़ी है कि रोमन प्रजातंत्र का गुप्त इतिहास वास्तव में उसकी भू-सम्पत्ति का . - 7-45
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