मुद्रा, या मालों का परिचलन ११५ . प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए इन मालों के मूल्य हमारी कल्पना में सोने की भिन्न-भिन्न मात्रामों में बदल जाते हैं। और इसलिए विमान को उलझन में उलने वाले तरह-तरह के माल होने के बावजूद उनके मूल्य एक ही अभियान की मात्रामों में, यानी सोने की मात्रामों में बदल जाते हैं। अब उनका एक दूसरे के साथ मुकाबला किया जा सकता है और उनको मापा जा सकता है, और इस बात की प्राविधिक पावश्यकता महसूस होती है कि माप की इकाई केस में सोने की किसी एक निश्चित मात्रा से उनकी तुलना की जाये। यह इकाई बाब में पूर्ण भाजकों में बंट जाने के फलस्वरूप खुब मापदण्ड, अमवा पैमाना, बन जाती है। सोने, चांदी और तांबे के पास मुद्रा बनने के पहले से ही अपने तौल के मापदणके बस में इस प्रकार के मापदण्ड मौजूद होते हैं। चुनांचे, मिसाल के लिए, यदि एक पॉर का तौल इकाई का काम करता है, तो उसको एक तरफ तो माँसों में बांटा जा सकता है और दूसरी तरफ़ अनेक पाँगे का बोड़ कर हंडेग्नेट तैयार किये जा सकते हैं। यही कारण है कि पातु की जितनी भी मुद्राएं प्रचलित है, उनमें मुद्रा के, अपवा दाम के, मापदण्डों को जो नाम दिये गये हैं, वे शुरू में पहले से मौजूर तौल के मापदण्डों के नामों से लिए गये थे। मूल्य की माप के रूप में और बाम के मापदण के रूप में मुद्रा को दो बिल्कुल अलग- अलग ढंग के काम करने पड़ते हैं। वह चूंकि मानव-श्रम का सामाजिक दृष्टि से मान्य अवतार होती है, इसलिए वह मूल्य की माप का काम करती है, और चूंकि वह एक निश्चित तौल की पातु होती है, इसलिए वह बाम के मापदण का काम करती है। मूल्य की माप के रूप में वह नाना प्रकार के मालों के मूल्यों को दामों में-यानी सोने की काल्पनिक मात्रामों में-बदलने का काम करती है, और दाम के मापन के स्म में वह सोने की इन मात्रामों को मापने का काम करती है। मूल्यों की माप से मालों को मूल्यों के रूप में मापा जाता है। इसके विपरीत, बाम के मापदण से सोने की मात्रामों को इकाई के रूप में मान ली गयी सोने की एक खास मात्रा से मापा जाता है, और ऐसा नहीं होता कि सोने की एक मात्रा का मूल्य दूसरी मात्रा के तौल से मापा जाये। सोने को बाम का मापदण्ड बनाने के लिए एक निश्चित तौल को इकाई मानना बहरी होता है। यहां पर, और यहां पर ही क्यों, जहां पर भी एक ही अभियान की मात्रामों को मापना पावश्यक होता है, वहीं यह बात सर्वाधिक महत्त्व प्राप्त कर लेती है कि माप की कोई ऐसी इकाई स्थापित की जाये, जिसमें कोई हेर-फेर न हो। इसलिए, इस इकाई में जितना कम हेर-फेर होता है, बाम का मापदण उतनी ही अच्छी तरह अपना काम करता है। लेकिन सोना मूल्य की माप का काम केवल उसी हद तक कर सकता है, जिस हब . - - 1 . इंगलैण्ड में एक प्रॉस सोना तो मुद्रा के मापदण्ड की इकाई का काम करता है, पर पौंड स्टलिंग सिक्का उसका प्रशेष भाजक नहीं होता। इस विचित्र परिस्थिति का यह कारण बताया गया है कि "हमारी सिक्कों की प्रणाली पहले केवल चांदी के प्रयोग के माधार पर ही डाली गयी थी, इसलिए एक प्रॉस चांदी हमेशा ही सिक्कों की एक निश्चित संख्या में बांटी जा सकती है, लेकिन सिक्कों की इस प्रणाली में सोने का इस्तेमाल बाद में जारी किया गया, इसलिए एक प्रॉस सोने के प्रशेष भाजक संख्या में सिक्के नहीं बनाये जा सकते ।" (Maclaren, "A Sketch of the History of the Currency" [मैक्लरेन , 'मुद्रा के इतिहास की एक रूपरेखा'], London, 1858, पृ० १६।) 80
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