११८ पूंजीवादी उत्पादन भाजका . जिन्हें कानूनी तौर पर कुछ खास नाम, पैसे पार, गलर मावि, दे दिये जाते हैं। प्रशेष जो इसके बाद से मुद्रा की इकाइयों का काम करने लगते हैं, मागे पौर प्रशेष भाषकों में बांट दिये जाते हैं और इनको भी शिलिंग, पेनी मावि जैसे कुछ कानूनी नाम से दिये जाते हैं। लेकिन इस तरह का बंटवारा होने के पहले भी और बाद में भी धातु का एक निश्चित बबन ही पातु मुद्रा का मापदण रहता है। अन्तर केवल यह पड़ता है कि अनुभाग हो जाते है और नये नाम दे दिये जाते हैं। प्रतएव, मालों के मूल्यों को जिन दामों में, अपवा सोने की जिन मात्रामों में, भावगत डंग से बदल दिया गया है, उन्हें अब सिक्कों के नामों द्वारा, या यूं कहिये कि सोने के मापदण्ड के उपभागों के कानूनी तौर पर मान्य नामों द्वारा, व्यक्त किया जाने लगता है। चुनांचे, यह कहने के बजाय कि एक क्वार्टर गेहूं की कीमत एक प्रॉस सोना है, अब हम यह कहते हैं कि उसकी कीमत ३ पार १७ शिलिंग और साढ़े १० पेंस है। इस तरह, दामों के बरिये माल यह बताते हैं कि उनकी कितनी कीमत है, और जब कभी किसी वस्तु के मूल्य को उसके मुद्रा-रूप में निश्चित करने का सवाल होता है, तब मुद्रा हिसाब की मुद्रा, या लेखा-मुद्रा, का कार्य सम्पन्न करती है। किसी भी वस्तु का नाम उसके गुणों से भिन्न चीन होता है। यह जानकर कि फलां भावमी का नाम बैकब है, मुझे उसके बारे में कुछ भी जानकारी नहीं होती। इसी प्रकार मुद्रा के सम्बंध में भी पौर, गलर, फांक, मुकाट मादि नामों में मूल्य-सम्बंध का प्रत्येक चिन्ह गायब हो जाता है। इन रहस्यमय प्रतीकों को एक गुप्त पर्व पहना देने के फलस्वरूप को गड़बड़ी पैदा होती है, वह इसलिए और भी बढ़ जाती है कि मुद्रा के इन नामों द्वारा मालों के मूल्यों को और उसके साथ-साथ पातु का बो बखन मुद्रा का मापदण है, उसके मशेष भावकों को भी व्यक्त किया जाता है। दूसरी पोर, मालों के तरह-तरह के शारीरिक पों से मूल्य को अलग देख पाने के . - 2 डेविड उ'हार्ट ने अपनी रचना "Familiar words" ('सुपरिचित शब्द') में इस भयानक ज्यादती (!) का जिक्र किया है कि पाजकल पॉड (स्टलिंग), जो मुद्रा के अंग्रेजी मापदण्ड की इकाई है, लगभग चौथाई प्रॉस सोने के बराबर रह गया है। उन्होंने लिखा है कि "यह मापदण्ड कायम करना नहीं, माप को झूठा बना देना है।" दूसरी हर चीज की तरह सोने के तौल की इस "झूठी संज्ञा" में भी उकुँहार्ट सभ्यता का हाथ देखते हैं, जो उनकी राय में हर चीज को झूठा बना देती है। जब अनाकार्सिस से यह पूछा गया कि यूनानी लोग मुद्रा से क्या काम लेते थे, तो उसने जवाब दिया : “हिसाब रखने का।" (Athenaeus, "Deipnosophistarum libri quindecim", खण्ड ४, भाग ४६, Schweighāuser का दूसरा संस्करण, 1802 [पृ० १२०]1) "मुद्रा जब दाम के मापदण्ड का काम करती है, तब वह हिसाब रखने के उन्हीं नामों में सामने माती है, जिन नामों में मालों के दाम सामने पाते हैं, और इसलिए ३ पौण्ड १७ शिलिंग और साढ़े १० पेंस की रकम का मतलब एक तरफ़ तो एक मॉस वजन का सोना हो सकता है और दूसरी तरफ़ उसका मतलब एक टन लोहे का मूल्य हो सकता है। इसलिए मुद्रा के इस हिसाब रखने के नाम को उसका टकसाली दाम कहा गया है। इसी से यह असाधारण धारणा पैदा हुई कि सोने के मूल्य का बुर उसी के पदार्थ के रूप में अनुमान लगाया जाता है और दूसरे तमाम मालों के विपरीत उसका दाम राज्य निश्चित करता है। यह प्रांति 34
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