१२० पूंजीवादी उत्पादन 7 अब यदि कुछ परिस्थितियों के कारण इस राम को बढ़ाकर ३ पार कर देना सम्भव हो जाये या उसे घटाकर १ पार कर देना बरी हो जाये, तब ३ पार या १ पार ही उसके बाम हो जायेंगे, हालांकि सच पूछिये, तो ३ पार और १ पार १ स्वार्टर गेहूं का मूल्य व्यक्त करने के लिये या तो बहुत स्यावा होंगे और या बहुत कम। इसका कारण यह है कि एक तो ३ पौर और १ पारम्प है, जिनमें गेहूं का मूल्य प्रकट होता है, यानी ये मुद्रा है, और, दूसरे, के मुद्रा के साथ गेहूं के विनिमय-अनुपात के व्याख्याता है। यदि उत्पादन की परिस्थितियां स्थिर रहती है। दूसरे शब्दों में, यदि मन की उत्पादन-शक्ति एक सी रहती है, तो दाम में परिवर्तन होने के पहले भी और बार में भी एक क्वार्टर गेहूं के पुनरूत्पादन में पहले जितना ही सामाजिक भम-काल वर्ष करना पड़ेगा। यह बात न तो गेहूं पैदा करने वाले की इच्छा पर निर्भर करती है और न ही अन्य मालों के मालिकों की इच्छा पर। मूल्य का परिमाण सामाजिक उत्पादन के एक सम्बंध को व्यक्त करता है। यह परिमाण किसी वस्तु विशेष और उसके उत्पादन के लिये समाज के कुल पम-काल के प्रावश्यक भाग के बीच अनिवार्य रूप से रहने वाले सम्बन्ध को व्यक्त करता है। जैसे ही मूल्य का परिमाण वाम में बदल दिया जाता है, वैसे ही उपर्युक्त अनिवार्य सम्बंध किसी एक माल तवा मुद्रा-माल नामक एक अन्य माल के बीच कमोवेश पाकस्मिक ढंग से स्थापित हो जाने वाले विनिमय-अनुपात का रूप धारण कर लेता है। लेकिन यह विनिमय अनुपात या तो माल के मूल्य के वास्तविक परिमाण को व्यक्त कर सकता है और या उस मूल्य से कम या ज्यादा सोने की उस मात्रा को व्यक्त कर सकता है, जिसके एवज में परिस्थितियों के अनुसार यह माल हस्तांतरित किया जाना सम्भव है। इसलिये, बाम तवा मूल्य के परिमाण के बीच परिमाणात्मक प्रसंगति पैदा हो जाने, या नाम के मूल्य के परिमाण से भिन्न हो जाने की सम्भावना तो खूब वाम-रूस में ही निहित है। यह उसका कोई दोष नहीं है, बल्कि, इसके विपरीत, यह सम्भावना तो बाम-रूप को बड़े सुन्दर ढंग से उत्पादन की उस प्रणाली के अनुरूप हाल देती है, जिसके अन्तर्निहित नियम केवल ऐसी अनियमिततामों के मध्यमान के म में ही लागू होते हैं, वो ऊपर से देखने में किसी नियम के प्राचीन नहीं होती, पर वो एक दूसरे के असर को बराबर कर देती है। किन्तु, बाम-रूप न केवल मूल्य के परिमाण और नाम की -मानी मूल्य के परिमाण और उसकी मुद्रा-अभिव्यंजना की-प्रसंगति की सम्भावना के अनुरूप है, बल्कि उसमें गुणात्मक प्रसंगति भी छिपी हो सकती है। यह प्रसंगति इस हद तक जा सकती है कि यपि मुद्रा मालों के के सिवा और कुछ नहीं होती, फिर भी यह सम्भव है कि वाम मूल्य को कतई तौर पर व्यक्त करना बन कर है। कुछ वस्तुएं हैं, जो बुब माल नहीं हैं, जैसे अन्तःकरण, मात्म-सम्मान पादि, पर जिनके मालिक उनको बेच सकते हैं और वो इस तरह अपने दामों के माध्यम से मालों का सवारण कर सकती हैं। प्रतएव, किसी वस्तु में मूल्य न होते हुए भी उसका नाम हो सकता है। ऐसी सूरत में वाम गणित की कुछ राशियों की भांति काल्पनिक होता है। दूसरी पोर, यह भी सम्भव है कि काल्पनिक नाम-म कभी-कभार किसी प्रत्यक्ष या अप्रत्यन वास्तविक मूल्य-सम्बंध पर पर्वा गत है। उपाहरण के लिये, परती बमीन का कोई मूल्य नहीं होता, क्योंकि उसमें किसी प्रकार का मानव-मन नहीं लग होता, पर उसका नाम हो सकता है। माम तौर पर सापेक्ष मूल्य की भांति नाम भी किसी मान का (जैसे मनोहे का) मूल्य इस प्रकार मात करता कि सम-मूल्य की अमुक मात्रा का (से 1
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