पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१२४

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मुद्रा, या मालों का परिचलन १२१ . . प्रॉस सोने का) लोहे के साथ सीधा विनिमय हो सकता है। लेकिन बाम इसकी उल्टी बात कि मोहे का सोने के साथ सीमा विनिमय हो सकता है, कदापि व्यक्त नहीं करता। इसलिये, यदि किसी माल को व्यवहार में कारगर उंग से विनिमय-मूल्य की तरह काम करना है, तो उसके लिये बरी है कि वह अपना शारीरिक म त्याग दे और केवल काल्पनिक सोना न रहकर पास्तविक सोना बन जाये, हालांकि माल के लिये यह पदान्तिरण हेगेल की "धारणा" के "प्रावश्यकता" से स्वतंत्रता" तक पहुंच पाने, मींगा मछली के अपना सोल उतारकर फेंक बेने प्रथवा सन्त बेरोम के बाबा भावन से मुक्ति पा जाने की अपेक्षा अधिक कठिन सिद्ध हो सकता है। कोई माल (जैसे, मिसाल के लिये, लोहा) अपने वास्तविक रूम के साथ-साथ हमारी कल्पना में सोने का रूप तो ले सकता है, पर वह एक ही समय में सचमुच सोना और लोहा बोनों नहीं हो सकता। उसका नाम से करने के लिये यह काफी होता है कि कल्पना में उसका सोने के साथ समीकरण कर दिया जाये। पर यदि उसे एक सार्वत्रिक सम-मूल्य के रूप में अपने मालिक के काम पाना है, तो इसके लिये खबरी है कि उसके स्थान पर सचमुच सोना मा जाये। यदि लोहे का मालिक विनिमय के लिये पेश किये गये किसी अन्य माल के मालिक के पास जाकर लोहे के नाम का हवाला दे और उसकी बिना पर यह दावा करे कि लोहा अभी से मुद्रा बन गया है, तो उसको वही जवाब मिलेगा, जो स्वर्ग में सन्त पीटर ने वान्ते को दिया पा, अब उसने यह लोक पढ़ा था कि "Assal bene è trascorsa D'esta moneta già la lega e'l peso, Ma dimmi se tu l'hai nella tua borsa." ("इस सिक्के के पातु-मिश्रण और तौल की तो काफी चर्चा हो चुकी है, पर अब मुझे यह बता कि क्या यह सिक्का तेरी जेब में है।") प्रतएव नाम का अर्थ जहां यह होता है कि किसी माल का मुद्रा के साथ विनिमय हो सकता है, वहां उसका पर्व यह भी होता है कि उसका मुद्रा के साथ विनिमय होना जरूरी है। दूसरी ओर , सोना मूल्य की भावगत माप के रूप में केवल इसीलिये काम में प्राता है कि उसने विनिमय की क्रिया के दौरान में पहले से अपने पाप को मुद्रा-माल केस में जमा लिया है। मूल्यों की भावगत माप के पीछे, वास्तव में, नवी छिपी रहती है। . जेरोम को न केवल अपनी युवावस्था में शारीरिक देह से कठिन संघर्ष करना पड़ा था, जो इस बात से स्पष्ट है कि मरुस्थल में उनकी अपने कल्पना-लोक की सुन्दर नारियों से लड़ाई हुई थी, बल्कि उनको अपनी वृद्धावस्था में प्राध्यात्मिक देह से भी कठिन संघर्ष करना पड़ा था। जेरोम ने कहा है : "मैने समझा कि मैं विश्व के न्यायाधीश के दरबार में मात्मा के रूप में पेश हूं। तभी एक भावाज ने प्रश्न किया : 'तू कौन है ? ' 'मैं एक ईसाई हूं।' 'तू झूठ बोलता है,'-वह महान न्यायाधीश गरजकर बोला, - 'तू सिसेरोनवादी है, और कुछ नहीं।"