१२२ पूंजीवादी उत्पादन अनुभाग २- परिचलन का माध्यम ) मालों का रूपान्तरण . हम पहले के एक अध्याय में यह देख चुके हैं कि मालों के विनिमय के लिये कुछ परस्पर विरोधी और एक दूसरे का अपवर्जन करने वाली परिस्थितियां प्रावश्यक होती है। जब मालों में माल और मुद्रा का भेद पैदा हो जाता है, तब उससे ये प्रसंगतियां दूर नहीं हो जाती, बल्कि उससे एक ऐसी modus vivendi (व्यवस्था) हो जाती है, या यूं कहिये कि एक ऐसा रूप निकल पाता है, जिसमें ये प्रसंगतियां साथ-साप कायम रह सकती है। माम तौर पर वास्तविक विरोषों का इसी तरह समाधान किया जाता है। मिसाल के लिये, वस्तु के बारे में यह कहना एक परस्पर विरोषी बात है कि वह लगातार किसी दूसरी वस्तु की पोर गिरती जाती है और साथ ही लगातार उससे दूर भी उड़ती जाती है। परन्तु वीर्घवृत्त गति का एक ऐसा रूप है, जो इस विरोष को बनाये भी रखता है और साथ ही उसका समाधान भी कर देता है। जहाँ तक विनिमय एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा माल उन हाथों से निकलकर, जिनके लिये वे और उपयोग मूल्य हैं, उन हाथों में पहुंच जाते हैं, जिनके पास के उपयोग मूल्य हो जाते हैं, वहां तक वह विनिमय पदार्थ का सामाजिक परिचलन है। उसके द्वारा एक ढंग के उपयोगी श्रम की पैदावार दूसरे उंग के उपयोगी श्रम की पैदावार का स्थान ले लेती है। जब एक बार कोई माल उस विश्राम स्थल पर पहुंच जाता है, जहां वह उपयोग-मूल्य का काम कर सकता है, तब वह विनिमय के क्षेत्र से निकलकर उपभोग के क्षेत्र में चला जाता है। लेकिन इस समय हमारी दिलचस्पी केवल विनिमय के क्षेत्र में ही है। इसलिये अब हमें विनिमय पर एक प्रौपचारिक दृष्टि से विचार करना होगा और मालों के उस स्प-परिवर्तन-प्रवा स्मान्तरण-की छानबीन करनी होगी, जिसके द्वारा पदार्थ का सामाजिक परिचालन कार्यान्वित होता है। साधारणतया इस रूप-परिवर्तन को बहुत अपूर्ण ढंग से समझा जाता है। इस प्रपूर्णता का कारण जुद मूल्य के बारे में लोगों में बहुत मस्पष्ट पारणाएं होने के अलावा यह है कि किसी भी माल के रूप में होने वाला प्रत्येक परिवर्तन दो मालों के विनिमय के फलस्वरूप होता है, जिनमें से एक तो साधारण माल होता है और दूसरा मुद्रा-माल होता है। यदि हम केवल इस भौतिक तन्य को अपने सामने रखते हैं कि किसी माल का सोने के साथ विनिमय किया गया है, तो हम उसी पीस को अनदेखा कर देते हैं, जिसे हमें देखना चाहिये पा-और वह यह कि माल के रूम को कया हो गया है। हम इन तथ्यों को अनदेखा कर देते हैं कि जब सोना महब माल होता है, तब वह मुद्रा नहीं होता, और बब दूसरे माल अपने नामों को सोने के रूप में व्यक्त करते हैं, तब यह सोना पुर इन मालों का मुद्रा-रूप भर होता है। शुरू में माल अपने स्वाभाविक बम से विनिमय की प्रकिया में प्रवेश करते हैं। फिर यह प्रपिया उनमें माल और मुद्रा का भेर पैरा कर देती है और इस प्रकार मालों के एक साप उपयोग मूल्य और मूल्य होने के नाते उनमें अन्तर्निहित विरोध के अनुरूप एक बाहरी विरोध भी पैदा कर देती है। माल उपयोग-मूल्यों के रूप में अब विनिमय-मूल्य के स में मुद्रा के मुकाबले मा बड़े होते हैं। दूसरी तरफ, दोनों विरोधी पक्ष माल ही होते है, यानी दोनों .
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