१२४ पूंजीवादी उत्पादन पास उतने ही मूल्य का, लेकिन एक भिन्न उपयोग का एक नया माल मा नाता है। वह अपने बीवन-निर्वाह के अन्य साधन तथा उत्पादन के सापन भी इसी उंग से प्राप्त करता है। उसके दृष्टिकोण से इस पूरी जिया के द्वारा इससे अधिक और कुछ नहीं सम्पन्न होता कि उसके मम की पैदावार का किसी और के मन की पैदावार से विनिमय हो जाता है। उसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विनिमय से अधिक और कुछ नहीं होता। प्रतएव, मालों के विनिमय के साथ-साथ उनके प में निम्नलिखित परिवर्तन हो जाता है। माल-मा-माल मा- -मु. वहाँ तक खूब वस्तुओं का सम्बंध है, पूरी किया का फल होता है मा-मा, यानी एक माल के साथ दूसरे माल का विनिमय, अर्थात् भौतिक मप्राप्त सामाणिक भम का परिचलन । बब यह फल प्राप्त हो जाता है, तब किया समाप्त हो जाती है। -मा मा-म। पहला पान्तरण, प्रववा विकी . मूल्य माल के शरीर से छलांग मारकर जिस प्रकार सोने के शरीर में पहुंच जाता है, बह, जैसा कि मैंने अन्यत्र कहा है, माल की Salto mortale (निराशोन्मत्त छलांग) होती है। यदि छलांग में पूरी सफलता नहीं मिलती, तो खुद माल का तो कोई नुकसान नहीं होता, पर उसके मालिक का निश्चय ही नुकसान होता है। उसके मालिक की आवश्यकताएं जितनी बहुमुखी है, सामाजिक मम-विभाजन उसके श्रम को उतना ही एकांगी बना देता है। ओक यही कारण है कि उसके मन की पैदावार केवल विनिमय-मूल्य के रूप में ही उसके काम पाती है। लेकिन यह सामाजिक दृष्टि से मान्य सार्वत्रिक सम-मूल्य का गुण केवल तमी प्राप्त कर सकती है, जब कि उसे मुद्रा में बदल गला जाये। किन्तु यह मुद्रा किसी और की व में है। उस बेब से मुद्रा को बाहर निकालने के लिये सबसे ज्यादा परी बात यह है कि हमारे मित्र का माल मुद्रा के मालिक के लिये उपयोग मूल्य हो। इसके लिये यह प्रावश्यक है कि माल पर खर्च किया गया भम सामानिक दृष्टि से उपयोगी हो, अर्थात् वह श्रम सामाजिक मम-विभाजन की एक शाला हो। लेकिन मम-विमानन उत्पादन की एक ऐसी प्रणाली है, जिसका स्वयंस्फूर्त रंग से विकास हुमा है और जिसका विकास उत्पादकों के पीठ पीछे अब भी जारी है। जिस माल का विनिमय होता है, वह, सम्भव है, किसी नये प्रकार के मम की पैदावार हो, जो किन्हीं नवी मावश्यकताओं को पूरा करने का या हो सकता है कि वो पर ही किन्हीं नयी मावश्यकतामों को पैदा कर देने तक का दावा करता हो। कल तक को पिया विशेष सम्भवतः किसी एक माल को तैयार करने के लिये किसी एक उत्पादक द्वारा की जाने वाली अनेक पियानों में से एक ही हो, वह हो सकता है कि पाप अपने को इस सम्बंध से अलग कर ले, अपने को मन की एक स्वतंत्र शाखा के प में बनाने और अपनी अपूर्ण पैदावार को एक स्वतंत्र मान केस में मजी में मेवरे। इस प्रकार के सम्बंध-विच्छेद के लिये परिस्थितियां परिपक्व भी हो सकती है और अपरिपाय भी। पाच कोई पैदावार एक सामाधिक पावश्यकता पूरी करती है। फल को मुमकिन है कि कोई और अधिक उपयोगी पैदावार पूर्णतया अपवा प्राक्षिकम से उस वस्तु का स्थान है। इसके अलावा, हमारे । . . .
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