पूंजीवादी उत्पादन . . . चालू माध्यम की मात्रा में परिवर्तन होता है। परन्तु यह परिवर्तन परिचलन के माध्यम के रूप में मुद्रा बो काम करती है, उसके कारण नहीं होता, बल्कि यह मूल्य की माप के रूप में वो काम करती है, उसके कारण यह परिवर्तन होता है। मालों का दाम पहले मुद्रा के मूल्य के प्रतिलोम अनुपात में घटता-बढ़ता है, और फिर परिचलन के माध्यम की मात्रा मालों के नामों के प्रत्यन अनुपात में घटती-बढ़ती है। जैक यही बात उस सूरत में भी होगी, यदि मिसाल के लिये सोने का मूल्य गिरने के बजाय मूल्य की माप के रूप में उसका स्थान चांदी ले ले, या यदि चांदी का मूल्य पढ़ने के बजाय सोना चांदी को मूल्य की माप के पद से हटा है। एक सूरत में यह होगा कि पहले जितना सोना चालू था, उससे ज्यादा चांदी चालू हो बायेगी। दूसरी सूरत में यह होगा कि पहले जितनी चांदी चालू थी, उससे कम सोना चालू हो जायेगा। हर सूरत में मुद्रा के पदार्थ का मूल्य, मानी उस माल का मूल्य, जो मूल्य माप का काम करता है, थोड़ा-बहुत बदल जायेगा, और चुनाचे मालों के मूल्यों को मुद्रा के रूप में व्यक्त करने वाले उनके राम भी बदल जायेंगे, और इसलिये इन नामों को मूर्त रूप देना जिसका काम है, उस बालू मुद्रा की मात्रा में भी परिवर्तन हो जायेगा। हम यह पहले ही देख चुके हैं कि परिचलन के क्षेत्र में एक सूराण होता है, जिसके परिये सोना (या ग्राम तौर पर मुद्रा का पार्ष) एक निश्चित मूल्य के माल के रूप में इस क्षेत्र में घुस पाता है। प्रतएव, अब मुद्रा मूल्य की माप के रूप में अपने कामों को पूरा करना शुरू करती है, यानी बब बह नामों को व्यक्त करना शुरू करती है, तब उसका मूल्य पहले से ही निश्चित होता है। अब यदि उसका मूल्य गिर जाये, तो इसका प्रभाव सब से पहले तो बहुमूल्य पातुमों के उत्पादन स्थल पर उनके साथ बिन मालों का प्रत्यक्ष विनिमय होता है, उन मालों के बालों के परिवर्तन के रूप में दिखाई देता है। बाकी सभी मालों के अधिकांश के मूल्य का अनुमान प्रब भी बहुत दिनों तक मूल्य की माप के भूतपूर्व, पुराने और काल्पनिक मूल्य के द्वारा ही लगाया जाता रहेगा। अविकसित पूंजीवादी समानों में तो जास तौर पर ऐसा होता रहेगा। फिर भी मालों के सामूहिक मूल्य-सम्बंध के द्वारा एक माल से दूसरे माल को छूत लगती जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उनके बाम, चाहे सोने के रूप में अभिव्यक्त होते हों और चाहे चांदी के रूप में, धीरे-धीरे उनके तुलनात्मक मूल्यों द्वारा निर्धारित अनुपातों के स्तर पर मा गाते हैं। यहां तक कि सभी मालों के मूल्यों का मुद्रा का काम करने वाली पातु के नये मूल्य केस में अनुमान लगाया जाने लगता है। इस क्रिया के साथ-साथ बहुमूल्य धातुओं की मात्रा में लगातार वृद्धि होती जाती है। यह वृद्धि इस कारण होती है कि बहुमूल्य धातुओं के उत्पावन स्थल पर उनके साप बिन वस्तुओं की सीपी अबला-बरली होती है, उनका स्थान लेने के लिये बहुमूल्य पातुएं पारा-प्रवाह की तरह पाती जाती है। प्रतएव, जिस अनुपात में माल माम तौर पर अपने सच्चे दाम प्राप्त कर लेते हैं, यानी जिस अनुपात में उनके मूल्यों का बहुमूल्य धातु के गिरे हुए मूल्य के द्वारा अनुमान लगाया जाने लगता है, उसी अनुपात में इन नये नामों को मूर्त सोने के लिये पावश्यक बहुमूल्य धातु की भी पहले से ही व्यवस्था कर वो बाती है। सोने और चांदी के नये भारों का पता लगने पर नो परिणाम देखने में पाये, उनको.. एकांगी रंग से देखने के कारण १७ और बास. तौर पर १० वीं सदी: साल्वी इस अनत नतीजे पर पहुंच गये किमानों के नाम इसलिये बढ़ गये हैं कि सब सोने और चांदी की पहले से मार मात्रा परिवलन के माध्यम का काम करने लगी है। प्राने हम .
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