पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१४७

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१४४ पूंजीवादी उत्पादन . या सोने के टुकड़ों के रूप में मालों के मुकाबले में बड़ा होना पड़ता है। नामों का मापदण निर्धारित करने की तरह सिक्के डालना भी राज्य का काम है। सोना और चांदी सिक्कों के रूप में स्वदेश में बो भिन्न-भिन्न प्रकार की राष्ट्रीय पोशाकें पहने रहते हैं और जिनको के दुनिया की मण्डी में पहुंचते ही फिर उतारकर फेंक देते हैं, वे मालों के परिचालन के अन्दरूनी प्रववा राष्ट्रीय क्षेत्रों तथा उनके सार्वत्रिक क्षेत्र के अलगाव की सूचक होती है। प्रतएव, सिक्कों तथा फलपोत में एकमात्र शकल का अन्तर होता है, और सोना किसी भी समय एक शकल छोड़कर दूसरी धारण कर सकता है। लेकिन जैसे ही सिक्का टकसाल से बाहर निकलता है, वैसे ही वह अपने को पातु गलाने के बर्तन के राजमार्ग पर रवाना होता . . . हम इस प्रादमी की सरलता की ज्यादा प्रशंसा करें या उस जनता की सरलता की, जिसने सद्भाव के साथ उसके इस दावे पर विश्वास कर लिया था कि वह सचमुच ऐडम स्मिय है,- हालांकि उसमें और ऐडम स्मिथ में लगभग उतनी ही समानता है, जितनी कार्स के जनरल विलियम्स और वेलिंगटन के ड्यूक में है। मि० जा० एस० मिल ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र में जितनी नयी खोजें की है, जो न तो बहुत व्यापक और न ही गम्भीर हैं, वे सब की सब 91497 3997 Stat 1991 "Some Unsettled Questions of Political Economy" ['अर्थशास्त्र के कुछ अनिर्णीत प्रश्न'] में, जो कि १८४४ में प्रकाशित हुई थी, संग्रहीत मिल जायेंगी। लॉक ने बिना किसी लाग-लपेट के इस बात पर जोर दिया है कि सोने और चांदी में मूल्य के प्रभाव का इस बात से सम्बंध है कि उनका मूल्य केवल मात्रा से निर्धारित होता है। उन्होंने लिखा है : “मनुष्य-जाति ने चूंकि सोने और चांदी को एक काल्पनिक मूल्य दे देने का निश्चय कर लिया है ... इसलिए इन धातुओं का स्वाभाविक मूल्य मात्रा के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता।" ("Some Considerations on the Consequences of the Lo- wering of Interest" [' सूद की दर कम करने के परिणामों के सम्बन्ध में कुछ विचार, इत्यादि'], १६६१, संग्रहीत रचनामों का १७७७ वाला संस्करण, खण्ड २, पृ० १५।) सिक्कों की ढलाई और उसपर लगाये जाने वाले कर जैसे विषयों पर विचार करना, जाहिर है, इस पुस्तक के क्षेत्र के बिल्कुल बाहर है। किन्तु रोमानी चाटुकार ऐडम मुलर के हितार्थ, जो अंग्रेज सरकार की इस उदारता " के बड़े प्रशंसक है कि वह मुफ्त में सिक्के ढालती है, मैं सर उडली नर्थ का निम्नलिखित मत अवश्य उद्धृत करूंगा: “दूसरे मालों की तरह चांदी और सोने की भी वृद्धि और कमी होती है। जब स्पेन से धातु मा जाती है, तो... वह टीवर में ले जायी जाती है और वहां उसके सिक्के ढाले जाते हैं। उसके कुछ ही समय बाद फिर से सोने-चांदी का विदेशों में निर्यात करने की मांग सामने पाती है। परन्तु यदि देश में कलधौत न हो और सब सिक्कों की शकल में हो, तब क्या हो? उसे फिर गला वो; उसमें नुकसान नहीं होगा, क्योंकि सिक्के ढालने में धातु के मालिक का कुछ भी तो खर्च नहीं होता। तो इस तरह राष्ट्र के गले यह बला डाली जाती है और गधों के पास चरने के लिए पास जुटाने का खर्च उसके मत्ये मढ़ दिया जाता है। यदि सौदागर से सिक्के ढालने के दाम लिये जाते, तो वह बिना कुछ सोचे-विचारे अपनी चांदी ढलवाने के लिए टीवर में न भेजता, और सिक्कों के रूप में मुद्रा का बगैर ढली हुई चांदी की अपेक्षा हमेशा अधिक मूल्य होता।" (North, उप० पु०, पृ० १८1) चार्ल्स वितीय के राज्यकाल में नर्व पद एक सबसे प्रमुख सौदागर था। t . - -