मुद्रा, या मालों का परिचलन १४५ हुमा पाता है। बलन के दौरान सिक्के घिस जाते है,-कुछ स्यावा, कुछ कम । नाम और पदार्य के प्रलगाव, नामचार के वचन और वास्तविक बचन के अलगाव की क्रिया शुरू हो जाती है। एक ही अभियान के सिक्कों का मूल्य भिन्न हो जाता है, क्योंकि उनके वजन में फर्क पड़ जाता है। सोने का जो बबन नामों का मापदण मान लिया गया था, वह उस बचन से भिन्न हो जाता है, जो चालू माध्यम का काम कर रहा है, और इसलिए चालू माध्यम जिन मालों के दामों को मूर्त रूप देता है, वह अब उनका वास्तविक सम-मूल्य नहीं रहता। मध्य युग और यहां तक कि प्रारहवीं सदी तक का सिक्का-सलाई का इतिहास उपर्युक्त कारण से पैरा होने वाली नित नयी गड़बड़ी का इतिहास है। परिचलन की स्वाभाविक प्रवृति सिक्के जो कुछ होने का दावा करते हैं, उनको उसका प्राभास मात्र बना देती है, सरकारी तौर पर उनमें जितना वजन होना चाहिए, उनको उसका केवल प्रतीक मात्र बना देती है। प्राधुनिक कानूनों ने इस प्रवृति को मान्यता दी है। वे यह निश्चित कर देते हैं कि कितना वजन कम हो जाने पर सोने के सिक्के का निर्मुद्रीकरण हो जायेगा, या वह वैष मुद्रा नहीं रहेगा। सिक्कों का चलन जुद उनके नामचार के वजन और असली बबन के बीच अलगाव पैदा कर देता है, एक मोर केवल पातु के टुकड़ों के रूप में और दूसरी मोर कुछ निश्चित ढंग के काम करने वाले सिक्कों के रूप में उनमें भेद पैदा कर देता है, -इस तम्य में यह सम्भावना भी छिपी हुई है कि पातु के सिक्कों की जगह पर किसी और पदार्थ के बने हुए संकेतों से, सिक्कों का कार्य करने वाले प्रतीकों से काम लिया जाये। सोने या चांदी की बहुत ही सूक्म मात्राओं के सिक्के डालने के रास्ते में जो व्यावहारिक कठिनाइयां सामने प्राती है, यह बात कि शुरू में अधिक मूल्यवान धातु के बबले कम मूल्यवान धातु-चांदी के बदले तांबा और सोने के बदले चांबी- मूल्य की माप के रूप में इस्तेमाल की जाती है, तथा यह कम मूल्यवान धातु उस वक्त तक चालू रहती है, जब तक कि अधिक मूल्यवान धातु उसे इस प्रासन से नहीं उतार देती,- यही सभी बातें ऐतिहासिक क्रम में चांदी और तांबे के बने प्रतीकों द्वारा की जाने वाली सोने के सिक्कों के प्रतिस्थापकों की भूमिका को स्पष्ट करती हैं। चांदी और तांबे के बने प्रतीक परिचलन के उन प्रदेशों में सोने का स्थान ले लेते हैं, जहां सिक्के सबसे ज्यादा तेजी के साथ एक हाथ से दूसरे हाथ में घूमते हैं और जहां उनकी सबसे ज्यादा घिसाई होती है। यह वहां होता है, जहां पर बहुत ही छोटे पैमाने का क्रय-विषय लगातार होता रहता है। ये उपग्रह कहीं स्थायी रूप से सोने के स्थान पर न जम जायें, इसके लिए कानून बनाकर यह निश्चित कर दिया जाता है कि भुगतान के समय सोने के बदले में उनको किस हद तक स्वीकार करना अनिवार्य है। विभिन्न प्रकार के चालू सिक्के जिन विशिष्ट पत्रों का अनुसरण करते हैं ये, बाहिर है, अक्सर एक दूसरे से जा मिलते हैं। सोने के सबसे छोटे सिक्के के मिन्नात्मक भागों का भुगतान करने के लिए ये प्रतीक सोने के साथ रहते हैं। सोना एक तरफ तो लगातार फुटकर परिचलन में प्राता रहता है, और दूसरी तरफ वह इसी निरन्तरता के साथ प्रतीकों में बदला जाकर फिर परिचलन के बाहर फेंक दिया जाता है।' . - 1"अपेक्षाकृत छोटे भुगतानों के लिए जितनी चांदी की आवश्यकता होती है, यदि चांदी कभी उससे ज्यादा नहीं होती, तो अपेक्षाकृत बड़े भुगतान करने के लिए पर्याप्त मात्रा में चांदी को इकट्ठा करना असम्भव हो जाता है... खास-खास भुगतानों में सोना इस्तेमाल करने का लाजिमी तौर पर यह मतलब भी होता है कि उसे फुटकर व्यापार में भी इस्तेमाल किया जाये। 10-45
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