१५० पूंजीवादी उत्पादन - रुक जाता है, जैसे ही विक्रय बाद में होने वाले क्यों से अनुपूरित नहीं होते, वैसे ही मुद्रा गतिमान नहीं रहती, वैसे ही वह, बाबग्विलेवेर्ट के शब्दों में, "meuble" ("चल सम्पत्ति") से "Immeuble" ("अचल सम्पत्ति") में, चल से प्रचल में, सिक्के से मुद्रा में बदल जाती है। मालों के परिचलन का अत्यन्त प्रारम्भिक विकास होते ही पहले स्पान्तरण की पैदावार को पकड़ रखने की प्रावश्यकता एवं जोरदार इच्छा का भी विकास हो जाता है। यह पैदावार माल की बदली हुई शकल-या उसका सुवर्ग-कोषशायी रूप होती है। इस प्रकार, मालों को दूसरे माल खरीदने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि उनके माल-रूप को उनके मुद्रा-रूप में बदलने के उद्देश्य से बेचा जाता है। यह स्प-परिवर्तन मालों का परिचलन सम्पन्न करने का साधन मात्र नरहकर लक्ष्य और ध्येय बन जाता है। इस प्रकार, माल के बदले हुए रूपको उसके पूर्णतया हस्तांतरणीय रूप की तरह-या उसके केवल लगिक मुद्रा-रूप की तरह काम करने से रोक दिया जाता है। मुद्रा अपसंचित धन में बदल जाती है, और माल बेचने वाला मुद्रा का अपसंचय करने वाला बन जाता है। मालों के परिचलन की प्रारम्भिक अवस्थाओं में केवल अतिरिक्त उपयोग-मूल्य ही मुद्रा में बदले जाते हैं। सोना और चांदी इस तरह खुद-ब-खुद प्रतिरेक अथवा धन की सामाजिक अभिव्यंजनाएं बन जाते हैं। अपसंचय का यह भोला स्वरूप उन समाजों में एक स्थायी चोच बन जाता है, जिनमें कुछ निश्चित एवं सीमित ढंग की घरेलू पावश्यकताओं की पूर्ति के लिए परम्परागत पद्धति का उत्पादन होता है। एशिया के और खास कर भारत के लोगों में हम यही चीख पाते हैं। बैंग्रलिन्ट, जिसको यह भ्रम है कि किसी भी देश में मालों के दाम वहां पाये जाने वाले सोने और चांदी की मात्रा से निर्धारित होते हैं, अपने से प्रश्न करता है कि हिन्दुस्तानी माल इतने सस्ते क्यों होते हैं। और फिर अपने प्रश्न का बुद जवाब देता है कि इसका कारण यह है कि हिन्दू लोग अपनी मुद्रा जमीन में गाड़कर रखते हैं। बैंडरलिन्ट ने बताया है कि १६०२ से १७३४ तक हिन्दुओं ने १५ करोड़ पौण स्टर्लिंग की कीमत की चांदी गाड़ दी थी, जो मूलतः अमरीका से योरप में पायी थी । १८५६ से १८६६ तक, बस साल में, इंगलस ने हिन्दुस्तान और चीन को १२ करोड़ पौण की कीमत की चांदी भेनी, जो कि उसे प्रास्ट्रेलिया के सोने के एवज में मिली थी। चीन को जो चांदी जाती है, उसका अधिकांश हिन्दुस्तान पहुंच जाता है। मालों के उत्पादन का जैसे-जैसे मागे विकास होता है, वैसे-वैसे मालों के प्रत्येक उत्पादक के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह उसका पक्का इन्तजाम करे, जो उत्पादकों के बीच नाता . 1 "Une richesse en argent n'est que... richesse en productions, converties en argent." ["मुद्रा के रूप में धन... मुद्रा में रूपान्तरित हुई पैदावर के रूप में धन के सिवा और कुछ नहीं होता।"] (Mercier de la Riviere, उप० पु०।) "Une valeur en pro- ductions n'a fait que changer de forme." ["पैदावार के रूप में एक मूल्य ने केवल अपना रूप बदल डाला है।"] (उप० पु०, पृ. ४८६ ।) ३"ये लोग इसी पादत की वजह से अपने तमाम सामान और बनाये हुए माल के दाम सदा इतने सस्ते बनाये रखते हैं" (Vanderlint, उप० पु०, पृ. ९५, ९६)।
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