१७४ पूंजीवादी उत्पादन को प्रारम्भ करने के लिए उसी स्थिति में और उसी प्रकार उपयुक्त होता है, जैसे कि शुरू के १०० पॉर थे। मुद्रा गति को समाप्त करती है, तो केवल इसी उद्देश्य से कि उसे फिर से प्रारम्भ करके। इसलिये, प्रत्येक अलग-अलग परिपथ का, जिसमें कि एक य और उसके बाद होने वाला एक विश्य पूरा हो जाता है, अन्तिम परिणाम खुब एक नये परिपत्र का प्रस्थान-बिन्दु बन जाता है। मालों का साधारण परिवलन-खरीदने के लिए बेचना- एक ऐसे उद्देश्य को कार्यन्वित करने का साधन है, जिसका परिचलन से कोई सम्बंध नहीं होता; अर्थात् वह उपयोग-मूल्यों को हस्तगत करने-या पावश्यकताओं को तुष्ट करने-का साधन है। इसके विपरीत, पूंजी के रूप में मुद्रा का परिचलन स्वयं अपने में ही एक लक्य होता है; कारण कि मूल्य का विस्तार केवल बारम्बार नये सिरे से होने वाली इस गति के भीतर ही होता है। इसलिए पूंजी के परिचलन की कोई सीमाएं नहीं होती।' 1 11 'पूंजी को... मूल पूंजी और मुनाफ़े-प्रर्थात् पूंजी की वृद्धि-में बांटा जा सकता है... हालांकि व्यवहार में यह मुनाफ़ा तुरन्त ही पूंजी में बदल दिया जाता है और मूल पूंजी के Elu TT CITATI" (F. Engels, "Umrisse zu einer Kritik der Nationalô- konomie”; “Deutsch Französische Jahrbücher, herausgegeben von Arnold Ruge und Karl Marx” * ; Paris, 1844, TO BE I) अरस्तू ने अर्थतन्त्र का क्रेमाटिस्टिक (मुद्रा बढ़ाने की प्रवृत्ति ) से मुकाबला किया है। वह अर्थतन्त्र से प्रारम्भ करते हैं। जहां तक अर्थतन्त्र जीविका कमाने की कला है, वहां तक बह उन वस्तुओं को प्राप्त करने तक सीमित होता है, जो जीवन-निर्वाह के लिए प्रावश्यक होती हैं और जो या तो गृहस्थी और या राज्य के लिए उपयोगी होती है। "सच्चा धन (a aanuvis xAobros) इस प्रकार के उपयोग-मूल्य ही होते हैं, क्योंकि इस तरह की सम्पत्ति का परिमाण, जो जीवन को सुखद बना सकती है, असीमित नहीं होता। लेकिन, चीजें हासिल करने का एक दूसरा ढंग भी होता है, जिसको हम क्रमाटिस्टिक का नाम देना बेहतर समझते हैं और जिसके लिए यही नाम उचित है। और जहां तक उसका सम्बंध है, धन और सम्पत्ति की कोई सीमा प्रतीत नहीं होती। व्यापार (अरस्तु ने जिस शब्द का प्रयोग किया है, वह namkunt है ; उसका शाब्दिक अर्थ फुटकर व्यापार है, और अरस्तू ने इस ढंग के व्यापार को इसलिए लिया है कि उसमें उपयोग-मूल्यों की प्रधानता होती है ) खुद अपने स्वभाव से क्रेमाटिस्टिक में शामिल नहीं है, क्योंकि यहां विनिमय केवल उन्हीं चीजों का होता है, जो खुद उनके लिए (ग्राहक या विक्रेता के लिये ) प्रावश्यक होती है।" इसलिए, जैसा कि अरस्तू इसके मागे बताते है,-व्यापार का मूल रूप अदला-बदली का था, लेकिन अदला-बदली का विस्तार बढ़ने पर मुद्रा की जरूरत महसूस हुई। मुंद्रा का माविष्कार हो जाने पर अदला-बदली लाजिमी तौर पर marriauxn में, या मालों के व्यापार में, बदल गयी, और मालों का व्यापार अपनी मूल प्रवृति के विपरीत क्रेमाटिस्टिक-प्रर्थात् मुद्रा बनाने की कला-में बदल गया। अब क्रमाटिस्टिक तथा अर्थतन्त्र में यह भेद किया जा सकता है कि "क्रेमाटिस्टिक में परिचलन धन का स्रोत होता है (sornrurt xprudrav.. Bua xempirav Staporner और लगता है कि वह मुद्रा के इर्द-गिर्द घूमता रहता है, क्योंकि इस प्रकार के विनिमय का प्रारम्भ और अन्त भी मुद्रा पर ही होता है (rb rip vinopa rougatov culatpas ris aanaris toriv) इसीलिये क्रेमाटिस्टिक जिस धन को प्राप्त करने की कोशिश करती है, वह असीमित होता है। प्रत्येक . . .
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