पूंजी के सामान्य सूत्र के विरोध १८१ . . , - गल देने और विक्रय और भय को दो अलग-अलग कार्य बना देने से भी नतीचे में कोई तबदीली नहीं होती। किसी भी माल का मूल्य उसके परिचलन में पाने के पहले गाम के म में व्यक्त किया जाता है, और उसके मूल्य का नाम के रूप में व्यक्त होना परिचलन का परिणाम नहीं होता, बल्कि उसकी पूर्ववर्ती शर्त होता है।' यदि इस विषय पर प्रमूर्त रंग से विचार किया जाये, यानी यदि विनिमय को उन. परिस्थितियों से अलग करके देखा जाये, जो मालों के साधारण परिचलन के नियमों से तत्काल ही उत्पन्न नहीं होती है, तो विनिमय में (अगर हम एक उपयोग-मूल्य के स्थान पर दूसरे उपयोग- मूल्य के पाने की पोर ध्यान न ) एक रूपान्तरण के सिवा, माल के रूप में महज एक परिवर्तन के सिवा और कुछ नहीं होता। माल के मालिक के हाथों में बराबर बही विनिमय- मूल्य, अर्थात् मूर्त बने सामाजिक बम की यही माना रहती है,-पहले उसके अपने माल के म में, फिर उस मुद्रा के रूप में, जिसके साथ वह अपने माल का विनिमय कर गलता है, और अन्त में उस माल के रूप में, नो वह उस मुद्रा से खरीद लेता है। इस स्प-परिवर्तन का यह मतलब नहीं है कि मूल्य के परिमाण में भी परिवर्तन हो जाता है। बल्कि इस प्रक्रिया में माल के मूल्य में होने वाला परिवर्तन केवल उसके मुद्राम के परिवर्तन तक ही सीमित होता है। यह मुद्रा-म पहले विक्री के लिए पेश किये गये माल के राम की शकल में होता है, फिर वह मुद्रा की एक वास्तविक रकम की शकल प्रस्तियार करता है, जो पहले से ही नाम की शकल में अभिव्यक्त हो मुफती है, और अन्त में वह एक सम-मूल्य माल के नाम के रूप में सामने प्राता है। जिस प्रकार ५ पौस के नोट को गिन्नियों, अब-गिन्नियों और शिलिंगों में बदल गलने से उनके मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता, उसी प्रकार इस कप-परिवर्तन में भी, यदि अकेले इसे लिया जाये, तो मूल्य की मात्रा में कोई तबदीली नहीं होती। इसलिये, जहां तक मालों के परिचालन का केवल उनके मूल्यों के रूप पर ही प्रभाव पड़ता है और यहां तक वह गड़बड़ पैदा करने वाले दूसरे प्रभावों से मुक्त होता है, वहां तक वह अनिवार्य रूप से केवल सम-मूल्यों का विनिमय ही होता है। पटिया किस्म का अर्थशास्त्र मूल्य के स्वभाव के बारे में बहुत कम जानकारी रखता है, पर वह भी अब कमी परिचालन की मिया के शुद्ध रूप पर विचार करना चाहता है, तब सदा यह मानकर चलता है कि पूर्ति और मांग बराबर है, जिसका मतलब यह होता है कि पूर्ति और मांग का असर कुछ नहीं है। इसलिये, नहां तक उपयोग-मूल्यों का विनिमय होता है, यहां तक अगर यह सम्भव है कि प्राहक और विता दोनों का कुछ नाम हो जाये, तो विनिमय-मूल्यों के लिए यह बात सच नहीं है। यहां तो बल्कि हमें यह कहना पड़ेगा कि "यहाँ समानता होती है, यहां लाभ नहीं हो सकता।" यह सच है कि "Que l'une de ces deux valeurs soit argent, ou qu'elles soient toutes deux marchandises usuelles, rien de plus indifférent en soi." L"#47 afara of महत्व नहीं होता कि इन दो मूल्यों में एक मुद्रा है या दोनों साधारण वाणिज्य-वस्तुएं हैं।"] (Mercier de la Riviere, उप. पु., पृ. ५४३।)
- Ce ne sont pas les contractants qui prononcent sur la valeur; elle est dé-
cidée avant la convention." ["सौदा करने वाले पक्ष मूल्य को निर्धारित नहीं करते ; वह तो सौदा होने के पहले से ही निर्धारित होता है।"] (Le Trosne, उप. पु., पृ०९०६।) ३ “Dove degualita non e lucrd."["जहां समानता होती है, वहां लाभ नहीं हो सकता।"] (Galiani "Della Moneta", Custodi tre o Parte Moderna, sier X, TO PPI) . 1