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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१८५

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१८२ पूंजीवादी : उत्पादन मानों को उनके मूल्यों से भिन्न दामों पर बेचना सम्भव हो सकता है, लेकिन इन प्रकार के विचलन को मालों के वितिमय के नियमों का व्यतिक्रमण. समझा जाना चाहिए, क्योंकि मालों का विनिमय अपनी सामान्य अवस्था में सम-मूल्यों का विनिमय होता है और इसलिए वह मूल्य में वृद्धि करने का तरीका नहीं हो सकता।' प्रतएव, मालों के परिचलन को अतिरिक्त मूल्य का जोत बताने की तमाम कोशिशों के पीछे quld pro. quo (गड़बड़) का भाव, उपयोग-मूल्य और विनिमय-मूल्य को प्रापत में गड़बड़ा देने का भाव छिपा रहता है। उदाहरण के लिए, काँक्लिक ने लिखा है: नहीं है कि मालों का विनिमय करने पर हम मूल्य के बदले में मूल्य देते हैं। इसके विपरीत, सौदा करने वाले दो पक्षों में से प्रत्येक हर वरंत में अधिक मूल्य के बदले में कम मूल्य देता है:... परि हम सचमुच समान मूल्यों का विनिमय करने लगें, तो किसी पन का लाभ न होगा। परन्तु, वास्तव में, तो दोनों पक्षों को लाभ होता है, या होना चाहिए। क्यों? किसी भी बीच का मूल्य केवल हमारी पावश्यकतामों के सम्बंध में होता है। जो एक के लिए अधिक है, वह दूसरे के लिए कम होता है, और इसके विपरीत बात भी सच है... यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि हम विकी के लिए उन बीचों को पेश करते हैं, जिनकी हमें खुद अपने उपयोग के लिए मावश्यकता होती है...हम तो एक उपयोगहीन. बस्तु देकर कोई ऐसी वस्तु पाना चाहते हैं, जिसकी हमें प्रावश्यकता होती है। हम तो अधिक के बदले में कम देना चाहते हैं... पब कमी विनिमय की जाने वाली प्रत्येक वस्तु मूल्य में सोने की एक समान मात्रा के बराबर होती है, सब स्वाभाविक रूप से यह समझा जाता है कि विनिमय में मूल्य के बदले में मूल्य दिया जाता है... लेकिन अपना हिसाब लगाते हुए हमें एक और बात भी ध्यान में रखनी चाहिए। सवाल यह है कि क्या हम दोनों ही किसी अनावश्यक वस्तु का किसी पावश्यक वस्तु के साथ विनिमय नहीं कर रहे हैं ?" इस अंश से. स्पष्ट है कि काँदिलैक न केवल उपयोग-मूल्य को विनिमय-मूल्य के साप गड़बड़ा देते हैं, बल्कि सचमुच बड़े पथकाने इंग-से. यह मानकर चलते हैं कि एक 1 "L'échange devient désavantageux pour l'une des parties, lorsque quelque chose étrangère vient diminuer ou exagérer le prix; alors l'égalité est blessée, mais la lésion procède de cette cause et non de l'échange." ["o fareit amet कारण से दाम घट या बढ़ जाते हैंतब विनिमय से किसी एक पक्ष को हानि हो सकती है; तब समानता का व्यतिक्रमण हो जाता है, लेकिन यह व्यतिक्रमण विनिमय का नहीं, उपरोक्त बाहरी कारण का फल होता है।"] (Le Trosne, उप० पु०, पृ. ६०४ ।) 3 "L'échange est de sa nature un contrat d'égalité qui se fait de valeur pour valeur égale. Il n'est donc pas un moyen de s'enrichir, puisque l'on donne autant que I'on recoit." ["विनिमय अपने स्वभाव से ही एक ऐसा करार होता है, जो समानता के प्राधार पर होता है और जिसमें एक मूल्य का समान मूल्य के साप विनिमय किया जाता है। चुनाचे, वह ऐसा तरीका नहीं है, जिसके जरिये कोई धनी बन सकता हो, क्योंकि उसे जितना मिलता है, उतनी ही देना भी पड़ जाता है।"] (Le Trosne, उप० पु०, पु. ९०३।) • Condillac, "Le commerce et le Gouvernement” (1776). Daire et Molinari का संस्करण, 'Melanges dEcon. Polit:' में, Paris, 1847, पृ. २६७, २९१ ।