१९४ पूंजीवादी उत्पादन . एक बहुत खास उंग के उत्पादन में ही होती है, और वह है पूंजीवारी उत्पादन। परन्तु इस प्रकार की खोज मालों के विश्लेषण के क्षेत्र के बाहर चली जाती। मालों का उत्पावन और परिचलन उस वक्त भी हो सकता है, जब अधिकतर वस्तुओं का उत्पादन उनके उत्पादकों की तात्कालिक मावश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता हो, जब मालों में न बबली जाती हों और इसलिए अब सामाजिक उत्पादन के बहुत बड़े क्षेत्र में और बहुत हद तक विनिमय- मूल्य का प्रभुत्व कायम नहुमा हो। पैदावार की चीजों के मालों के रूप में सामने पाने के लिए यह बरी है कि सामाजिक सम-विभाजन का ऐसा विकास हो चुका हो, जिसमें विनिमय- मूल्य से उपयोग मूल्य का वह अलगाव, बो पहले-पहले पबला पाली से प्रारम्भ हुमा बा, भव मुकम्मिल हो गया हो। लेकिन इस प्रकार का विकास तो समाज के बहुत से मों में समान तौर पर पाया जाता है, जिनकी दूसरी बातों में बहुत अलग-अलग रंग की ऐतिहासिक विशेषताएं होती है। दूसरी पोर, यदि हम मुद्रा पर विचार करें, तो मुद्रा के अस्तित्व का पर्व यह होता है कि मालों का विनिमय एक खास अवस्था में पहुंच गया है। मुद्रा मालों के केवल सम-मूल्य के रूप में, या परिचलन के साधन के रूप में, या भुगतान के साधन के रूप में, या अपसंचित कोष की शकल में और या सार्वत्रिक मुद्रा के रूप में दो तरह-तरह के अलग- अलग काम करती है, उनमें से जब जिस जास काम का अधिक विस्तार हो जाता है और जब वो अपेक्षाकृत प्रधानता प्राप्त कर लेता है, तब उसके अनुसार यह पता चलता है कि सामाजिक उत्पादन को किया किस खास अवस्था में पहुंच गयी है। फिर भी हमें अनुभव से मालूम है कि मालों का अपेक्षाकृत माविम ढंग का परिचलन इन तमाम रूपों के लिए पर्याप्त होता है। पूंजी की बात दूसरी है। उसके अस्तित्व के लिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियां मावश्यक होती है, वे महब मुद्रा और मालों के परिवलन के साथ ही पैदा नहीं हो जाती। पूंजी केवल उसी समय जन्म ले सकती है, जब उत्पादन और बीवन-निर्वाह के साधनों के मालिक की अपनी पम-शक्ति बेचने वाले स्वतंत्र मजदूर से मन्दी में भेंट होती है। और इस एक ऐतिहासिक परिस्थिति में संसार का इतिहास अन्तर्निहित है। इसलिए पूंजी अपना प्रथम दर्शन देने के साथ ही यह घोषणा कर देती है कि सामाजिक उत्पावन की प्रक्रिया में एक नये युग का श्रीगणेश हो गया है।। अब हमें भम-शक्ति नामक इस विचित्र माल परपोड़ी और गहराई में जाकर विचार करना चाहिए। अन्य सब मालों की तरह इस माल का भी मूल्य होता है। वह मूल्य किस प्रकार निर्धारित किया जाता है? अन्य प्रत्येक माल की तरह भम-शक्ति का मूल्य भी उसके उत्पादन के लिए प्रावश्यक और 1 इसलिए पूंजीवादी युग की यह खास विशेषता होती है कि श्रम-शक्ति युद मजदूर की मांवों में एक ऐसे माल का रूप धारण कर लेती है, जो उसकी सम्पत्ति होता है। चुनांचे उसका श्रम मजदूरी के बदले में किया जाने वाला श्रम बन जाता है। दूसरी ओर, केवल इसी क्षण से बम की पैदावार सार्वत्रिक ढंग से माल बन जाती है। "दूसरी तमाम चीजों की तरह किसी मनुष्य का मूल्य या क्रीमत उसका दाम होती है; कहने का मतलब यह कि वह उतनी होती है, जितना उसकी शक्ति के उपयोग के लिए दिया पाता है।" (Th. Hobbes, “Levtathan" [टोमस होम्स, 'लेवियावन'], "Works" में, Molesworth का संस्करण, London, 1839-44, बन्ड ३, पृ० ७६।)
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