श्रम-शक्ति का क्रय और विक्रय १९५ . इसलिए इस विशेष वस्तु के पुनरुत्पादन के लिए प्रावश्यक मम-काल द्वारा निर्धारित होता है। वहाँ तक श्रम-पाक्ति में मूल्य होता है, वहां तक वह अपने में निहित समाज के प्रोसत मम की एक निश्चित मात्रा से अधिक और किसी चीन का प्रतिनिधित्व नहीं करती। केवल एक बीवित व्यक्ति की सामयं प्रयवा शक्ति के रूप में ही श्रम-शक्ति का अस्तित्व होता है। इसलिए भम-शक्ति का अस्तित्व जीवित व्यक्ति के अस्तित्व पर ही निर्भर है। व्यक्ति पहले से मौजूर हो, तो श्रम-शक्ति के उत्पादन का पर्व है उस व्यक्ति के द्वारा खुब अपना पुनरुत्पादन, या यूं कहिये कि अपना जीवन-निर्वाह । अपने जीवन-निर्वाह के लिए उसे जीवन-निर्वाह के साधनों की एक निश्चित मात्रा की पावश्यकता होती है। इसलिए श्रम शक्ति के उत्पादन के लिए प्रावश्यक भम-काल जीवन-निर्वाह के इन साधनों के उत्पादन के लिए प्रावश्यक श्रम-काल में परिणत हो जाता है। दूसरे शब्दों में, भम-शक्ति का मूल्य मजदूर के बीवन-निर्वाह के लिए प्रावश्यक बीवन- निर्वाह के साधनों का मूल्य होता है। लेकिन भम-शक्ति केवल अपने प्रयोग से ही वास्तविकता बनती है। काम के द्वारा ही वह सक्रिय होती है। किन्तु उसमें मानव-मांस-पेशियों, स्नायुओं और मस्तिष्क प्रावि की एक निश्चित मात्रा खर्च हो जाती है, और इसका फिर से वापिस लाया जाना जरूरी होता है। इस बढ़े हुए वर्ष के लिए बढ़ी हुई प्राय की मावश्यकता होती है।' यदि धम-शक्ति का मालिक मान काम करता है, तो उसमें कल फिर से वही क्रिया पहले जैसे स्वास्थ्य और बल के साथ दोहराने की क्षमता होनी चाहिए। प्रतः उसके जीवन-निर्वाह के साधन इतने होने चाहिए कि वे उसे श्रम करने वाले व्यक्ति के रूप में उसकी सामान्य अवस्था में चिन्दा रख सकें। उसकी प्राकृतिक प्रावश्यकताएं, जैसे भोजन, कपड़ा, ईधन और रहने का घर प्रावि, जिस देश में वह रहता है, उसके जलवायु तथा अन्य प्राकृतिक परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग प्रकार की होती है। दूसरी ओर, उसकी तबाकषित बरी आवश्यकताओं की संख्या और विस्तार और उन्हें पूरा करने के ढंग भी खुद ऐतिहासिक विकास का फल होते हैं और इसलिए बहुत हद तक देश की सभ्यता के विकास पर निर्भर करते हैं। खास तौर पर इस बात पर निर्भर करते हैं कि स्वतंत्र मजदूरों के वर्ग का किन परिस्थितियों में और इसलिए किन पावतों के साथ तथा कितने पाराम की हालत में निर्माण हुमा है।' प्रतएव, अन्य मालों के विपरीत, भम-शक्ति के मूल्य-निर्धारण में एक ऐतिहासिक तथा नैतिक तत्व भी काम करता है। फिर भी किसी खास देश में और किसी निश्चित काल में हमें मजदूर के जीवन-निर्वाह के साधनों की बकरी प्रोसत मात्रा की व्यावहारिक जानकारी होती है। श्रम-शक्ति का मालिक नश्वर है। इसलिए अगर उसे लगातार मन्दी में प्राते रहना है, और मुद्रा के लगातार पूंची में बदलते रहने के लिए यह बात बरी है,-तो भम-शक्ति के पिता को अपने को उसी तह शाश्वत बनाना चाहिए, "जिस तरीके से हर जीवित प्राणी अपने को शाश्वत बनाता है, यानी सन्तान को जन्म देकर।"वो मम-शक्ति घिस जाने या मयूर , - 1 'चुनांचे बेतों काम करने वाले गुलामों के विलिकस (Villicus)-यावी. रोमन जमादार-को "काम करने वाले गुलामों की अपेक्षा कम भोजन मिलता था,-कारण कि 38197 FTA Terut # 2697 TI" (Th. Mommsen, “Röm. Geschichte”, 1856, पृ. ८१०) for W. Th. Thornton, "Over-population and its Remedy!" (Tasty टी. पोर्नटन, 'जनाधिक्य और उसे दूर करने का उपाय'], London, 1846। . पेटी। 13°
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