२०८ पूंजीवादी उत्पादन - तत्व मात्र बन जाती है। सूत कातने वाला तकुमों को केवल कातने के प्राचार और सन को कातने की सामग्री समझता है। जाहिर है कि बिना सामग्री के और बिना तकुमों के कातना असम्भव है; और इसलिए हमें यह मानकर चलना पड़ता है कि कातने की प्रक्रिया के प्रारम्भ होने के समय ये चीजें पैदावार के रूप में पहले से मौजूद थीं। परन्तु अब कातने की प्रक्रिया में इस बात का तनिक भी महत्त्व नहीं है कि ये पीने पहले किये गये किसी मम की पैदावार है। यह उसी तरह की बात है, जैसे पाचन प्रक्रिया में इसका बरा भी महत्व नहीं होता कि रोटी काश्तकार, भाटा पीसने वाले और रोटी पकाने वाले के बम की पैदावार होती है। इसके विपरीत, किसी भी प्रक्रिया में जब उत्पादन के साधन पैदावार के रूप में अपनी याद दिलाते है। तब पाम तौर पर उसका कारण पैदावार के रूप में उनके दोष होते हैं। एक कुंर चाकू या कमजोर धागा हमें सर्वस्ती श्रीयुत 'क' नामक चाकू बनाने वाले या भीयुत 'ब' नामक कातने वाले की याद दिला देता है। तैयार पैदावार में वह भम दृष्टिगोचर नहीं होता, जिसके द्वारा उस पैदावार ने अपने उपयोगी गुण प्राप्त किये हैं। लगता है कि जैसे वह गायब हो गया हो। मन के काम में न माने वाली मशीन बेकार होती है। इसके अलावा, वह प्राकृतिक शक्तियों के विनाशकारी प्रभावों का शिकार हो जाती है। लोहे में जंग लग जाता है और लकड़ी सड़ जाती है। उस सूत में, जिससे हम न तो कपड़ा तैयार करते हैं और न बुनाई करते हैं, महब कपास बरवाद हुई है। जीवित बम को इन वस्तुओं को हाथ में लेकर उनको मृत्यु-निद्रा से जगाना चाहिए और मात्र संभावित उपयोग-मूल्यों से वास्तविक और प्रभावी उपयोग-मूल्यों में परिणत करना चाहिए। ये वस्तुएं जब श्रम की प्राग में तपती है, जब उनपर भम के संघटन के अभिन्न अंग के रूप में अधिकार कर लिया जाता है और जब उनमें इस उद्देश्य से किये मन-प्रक्रिया में अपनी भूमिका सम्पन्न कर सकें, मानो प्राणों का संचार कर दिया जाता है, तब ये वस्तुएं बर्ष तो होती है, पर वे एक उद्देश्य के लिए खर्च होती हैं पौर ऐसे नये उपयोग मूल्यों या नयी पैदावार के प्राथमिक संघटकों के रूप में खर्च होती है, जो व्यक्तिगत उपभोग के लिए बीवन-निर्वाह के साधनों के रूप में या किसी नयी मम-प्रक्रिया के लिए उत्पादन के साधनों के रूप में काम पाने के वास्ते सदा तैयार रहते हैं। पुनांचे, अगर एक तरफ तैयार पैदावार भम-प्रक्रिया का न सिर्फ फल होती है, बल्कि उसकी पावश्यक शर्त भी होती है, तो दूसरी तरफ, उपयोग-मूल्यों के उसके स्वरूप को कायम रखने और उसे सचमुच उपयोग में लाने का केवल यही एक तरीका होता है कि उसे श्रम- प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाये और उसका बीवित भम से सम्पर्क स्थापित किया जाये। मम अपने भौतिक उपकरणों का, अपनी विषय-वस्तु का और अपने प्राचारों का इस्तेमाल कर गलता है, उनका उपभोग करता है, और इसलिए वह उपभोग की प्रक्रिया होता है। इस प्रकार के उत्पादक उपभोग और व्यक्तिगत उपभोग में यह अन्तर होता है कि व्यक्तिगत उपभोग पैदावार को जीवित व्यक्तियों के जीवन-निर्वाह के साधनों के रूप में सर्च करता है और उत्पादक उपभोग उसको उस एकमात्र सापन के प में खर्च करता है। जिसके द्वारा ही भम के लिए-या बीवित व्यक्ति की मम-शक्ति के लिए-कार्य करना सम्भव होता है। प्रतः व्यक्तिगत उपभोग की पैदावार खुब उपभोगी होता है, और उत्पादक उपभोग का फल उपभोगी से अलग एक पैदावार होती है। इसलिए, विस हर तक भम के प्राचार और उसकी विषय-वस्तु र पैदावार होती है, उस हर तक मम पैदावार को जन्म देने के लिए पैदावार खर्च करता है, या, दूसरे शब्दों में, .
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