श्रम-प्रक्रिया और अतिरिक्त मूल्य पैदा करने की प्रक्रिया २१३ लिए और बाद में कपास और तकुंए से सूत कातने के लिए अलग-अलग समय पर और अलग- अलग स्थानों पर जितने प्रकार की विशिष्ट प्रक्रियाओं को सम्पन्न करना मावश्यक होता है, उन सब को कुल मिलाकर एक ही प्रक्रिया की क्रमानुसार सामने पाने वाली भिन्न-भिन्न अवस्याएं समझना चाहिए। सूत में लगा हुमा सारा श्रम भूतपूर्व श्रम है। और इस बात का कोई महत्व नहीं है कि भूत के संघटक तत्वों के उत्पादन के लिए प्रावश्यक प्रक्रियाएं ऐसे समय पर हुई थी, बो.कातने की अन्तिम प्रक्रिया की अपेक्षा वर्तमान समय की तुलना में बहुत पहले की बात है। यदि एक मकान बनाने के लिए मन की एक निश्चित मात्रा, मान लीजिये, तीस दिन पावश्यक होते है, तो मकान में लगे मम की कुल मात्रा में इससे कोई फर्क नहीं पाता कि अन्तिम दिन का काम पहले दिन के काम के उनतीस दिन बाद किया जाता है। इसलिए कच्चे माल तथा मम के प्राचारों में लगे मम के बारे में यह सममा जा सकता है कि यह मम सचमुच कताई का श्रम प्रारम्भ होने के पहले कातने की प्रक्रिया की एक प्रारम्भिक अवस्था में हुआ था। इसलिए, उत्पादन के साधनों के मूल्य, अर्थात् कपास और तकुए के मूल्य, को १२ शिलिंग के दाम में अभिव्यक्त होते हैं, सूत के मूल्य के-या, दूसरे शब्दों में, पैदावार के मूल्य के-संघटक अंग होते हैं। लेकिन इस सब के बावजूद दो शत्तों का पूरा होना बरी है। एक तो यह बरी है कि कपास और कुए ने मिलकर कोई उपयोग मूल्य पैदा किया हो। हमारी मिसाल में उनका सूत पैदा करना सबरी है। मूल्य इस बात से स्वतंत्र है कि उसका भन्सार कौनसा विशिष्ट उपयोग मूल्य है, लेकिन उसका किसी न किसी उपयोग मूल्य में साकार होना जरूरी है। दूसरे, यह बरूरी है कि हम जिन सामाजिक परिस्थितियों को मानकर चल रहे हों, उनके अन्तर्गत जितना समय सचमुच मावश्यक हो, उत्पादन के मन में उससे ज्यादा समय न लगने पाये। चुनाव, प्रगर १ पौग सूत कातने के लिए १ पास से ज्यादा कपास की बरत नहीं होती, तो हमें इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा १ पौड पूत के उत्पादन में इससे ज्यादा कपास खर्च न होने पाये। और यही बात तकुए के बारे में भी है। हो सकता है कि हमारे पूंजीपति को इस्पात के कुए की जगह पर सोने का तकुमा इस्तेमाल करने का शौक परया हो, मगर फिर भी सूत के मूल्य के लिए केवल उसी श्रम का कोई महत्व होगा, मो इस्पात का तकुमा तैयार करने के लिए बरी होगा, क्योंकि हम जिन सामाजिक परिस्थितियों को मानकर चल रहे हैं, उनमें इससे अधिक मन मावश्यक नहीं है। अब हम यह जान गये कि सूत के मूल्य का कितना हिस्सा कपास और तकुए के कारण है। यह बारह शिलिंग या दो दिन के काम के मूल्य के बराबर बैठता है। अब मागे हमें इस बात पर विचार करना है कि कातने वाले का मन कपास में सूत के मूल्य का कितना भाग बोड़ता है। मम-प्रक्रिया के दौरान में इस मम का नो पहलू सामने पाया पा, अब हमें उससे एक बहुत भिन्न पहलू पर विचार करना है। तब हमने उसपर केवल उस खास उंग की मानव- पियाशीलता के रूप में विचार किया था, जो कपास को सूत में बदल देती है। तब, अन्य बातों के समान रहते हुए, मन काम के जितना अधिक उपयुक्त होता था, उतना ही अच्छा सूत तैयार होता था। तब हमने कातने वाले के श्रम को उत्पादक भन के अन्य तमाम मों से मिल एक विशिष्ट प्रकार का मम मानापा। वह उनसे एक तो अपने विशेष गव्य के
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