२१४ पूंजीवादी उत्पादन . . कारण मिन्न बा, क्योंकि उसका विशिष्ट उद्देश्य कताई करना पा; और, दूसरे, वह इसलिए उनसे भिन्न था कि उसकी क्रियाएं एक खास उंग की थीं, उसके उत्पादन के साधन एक विशिष्ट प्रकार के थे और उसकी पैदावार का एक विशेष उपयोग-मूल्य था। कताई की क्रिया के लिए कपास और तकुए बिल्कुल बरी हैं, मगर पेचवार नली वाली तोप बनाने के लिए भी काम नहीं पायेंगे। लेकिन यहां पर चूंकि हम कातने वाले के श्रम की पोर केवल उसी हद तक ध्यान देते हैं, जिस हर तक कि वह मूल्य पैरा करने वाला श्रम है, अर्थात् जिस हद तक कि वह मूल्य का बोत है, इसलिए यहां पर कातने वाले का श्रम तोप में पेचदार नली बनाने वाले भादमी के भम से या (जिससे हमारा ज्यादा नजदीक का सम्बंध है) सूत के उत्पादन के साधनों में निहित कपास की खेती करने वाले के भम और तकुए बनाने वाले के बम से किसी तरह भी भिन्न नहीं है। केवल इस एकरूपता के कारण ही कपास की खेती करना, तकुए बनाना और कातना एक सम्पूर्ण इकाई के-प्रर्थात् सूत के मूल्य के-ऐसे संघटक भाग हो सकते हैं, जो केवल परिमाणात्मक दृष्टि से ही एक दूसरे से भिन्न होते हैं। यहां हमारा श्रम के गुण, स्वभाव और विशिष्ट स्वरूप से कोई सम्बंध नहीं रहता, केवल उसकी मात्रा से सम्बंध होता है। इसका महब हिसाब लगाना होता है। हम यह मानकर चलते हैं कि कताई साधारण, प्रनिपुग श्रम है, कि वह समाज को एक निश्चित अवस्था का मौसत मम है। माने हम देखेंगे कि अगर हम इसकी उल्टी बात मानकर चलें, तब भी कोई अन्तर नहीं पड़ेगा। जब मजदूर काम करता है, तब उसका श्रम लगातार रूपान्तरित होता जाता है। वह गतिवान से एक गतिहीन बस्तु में बदलता जाता है, वह कार्यरत मजदूर के बजाय उत्पादित वस्तु बन जाता है। एक घन्टे की कताई समाप्त होने पर उस कार्य का प्रतिनिधित्व सूत की एक निश्चित मात्रा करती है। दूसरे शब्दों में, श्रम की एक निश्चित मात्रा, यानी एक घन्टे का भम कपास में समाविष्ट हो जाता है। यहां हम कहते हैं "भम" यानी "कातने वाले का अपनी जीवन-शक्ति को सर्च करना"। यहां हम "कताई का धम" नहीं कहते, -कारण कि यहां कताई के विशेष काम का केवल उसी हर तक महत्त्व है, जिस हद तक कि उसमें पाम तौर पर मम-शक्ति खर्च होती है, और उसका महत्त्व इस बात में नहीं है कि वह कातने वाले का एक विशिष्ट प्रकार का कार्य है। जिस प्रक्रिया पर हम इस समय विचार कर रहे हैं, उसमें इस बात का अत्यधिक महत्त्व होता है कि कपास को सूत में रूपान्तरित करने के काम में जितना समय किन्हीं खास सामाजिक परिस्थितियों में लगना चाहिए, उससे अधिक न लगने पाये। यदि उत्पादन की सामान्य-प्रथवा पोसत - सामाजिक परिस्थितियों में 'क' पोण कपास को 'ख' पौण सूत में बदलने में एक घन्टे का मम लगता है, तो एक दिन का मन उस वक्त तक १२ घण्टे का मन नहीं माना जा सकता जब तक कि वह १२'क' पौग कपास को १२'ख' पौन सूत में न बदल है। कारण कि मूल्य के सृजन में केवल सामाजिक दृष्टि से पावश्यक बम-काल का ही महत्व होता है। अब न केवल भम, बल्कि कच्चा माल और पैदावार भी एक नये रूप में हमारे सामने पाते हैं। वह नया प उस प से बहुत भिन्न है, जिसमें वे विशुद्ध और मात्र मन-प्रक्रिया के बौरान में हमारे सामने पाये थे। अब कच्चा माल केवल मम की एक निश्चित मात्रा के अवशोषक का काम करता है। इस अवशोषण के द्वारा वह, वास्तव में, सूत में बदल जाता है, क्योंकि वह कात दिया जाता है, क्योंकि कताई केस में उसके साथ मन-शक्ति जोड़ी जाती -
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२१७
दिखावट