२१८ पूंजीवादी उत्पादन . - उपयोगी प्रभाव से अधिक और कुछ नहीं होती, वह उपयोग-मूल्य चाहे किसी माल का हो और चाहे बम का। लेकिन यहां पर हम विनिमय-मूल्य की पर्चा कर रहे हैं। पूंजीपति ने मजदूर को ३ शिलिंग का मूल्य दिया था, और मजदूर ने उसे कपास में ३ शिलिंग का मूल्य और जोड़कर उसका पूरा सम-मूल्य वापिस कर दिया है, उसने मूल्य के बदले में मूल्य दिया है। इसपर हमारा मित्र, बो ममी तक अपनी पैली के घमन्ड से फूला हुमा पा, यकायक खुद अपने मजदूर की सी विनय मुद्रा बनाकर कहता है: "पर क्या मैंने कुछ काम नहीं किया है? क्या मैंने निरीक्षण का तथा कातने वाले पर निगाह रखने का प्रम नहीं किया है ? और क्या इस श्रम से भी मूल्य उत्पन्न नहीं होता ? " पूंजीपति का निरीक्षक तथा उसका मैनेबर यह बात सुनकर अपनी मुस्कराहट को छिपाने की कोशिश करते हैं। इस बीच पूंजीपति खूब दिल खोलकर हंसने के बाद फिर पहले जैसी मुद्रा बना लेता है। यद्यपि उसने हमें प्रशास्त्रियों का पूरा पुराण पढ़ कर सुना दिया, पर वास्तव में उसका कहना है कि वह इस सब के लिए एक फूटी कौड़ी भी देने को तैयार नहीं है। इस तरह के हथकंडे और बाजीगरी के हाथ उसने प्रशास्त्र के उन प्रोफेसरों के लिए छोड़ रखे हैं, जिनको इस काम के पैसे मिलते हैं। वह खुद तो एक व्यावहारिक पावनी है। और यद्यपि अपने व्यवसाय के क्षेत्र के बाहर वह सदा बहुत सोच-समझकर बात नहीं करता, किन्तु अपने व्यवसाय से सम्बन्धित हर बीच वह बहुत समझ-धूमकर करता है। भाइये, इस मामले पर कुछ और गहराई में जाकर विचार करें। एक दिन की भम- शक्ति का मूल्य ३ शिलिंग होता है, क्योंकि हम जो कुछ मानकर चल रहे हैं, उसके अनुसार इतनी मम-शक्ति में पाये बिन का भम निहित होता है, अर्थात् क्योंकि मम-शक्ति के उत्पादन के लिए रोजाना जिन जीवन-निर्वाह के साधनों की पावश्यकता होती है, उनमें माघे दिन का श्रम खर्च होता है। लेकिन श्रम-शक्ति में निहित भूतपूर्व भम और वह जीवन्त बम, बो यह भम-शक्ति व्यवहार में ला सकती है, -या भम-शक्ति को बनाये रखने की रोवाना की लागत और काम की शकल में मम-शक्ति का दैनिक व्यय,-ये वो बिल्कुल अलग-अलग पोजें होती हैं। पहला श्रम-शक्ति का विनिमय-मूल्य निर्धारित करता है और दूसरा उसका उपयोग मूल्य है। इस बात से कि मजदूर को २४ घण्टे सिन्दा रखने के लिए केवल प्राधे दिन का श्रम पावश्यक होता है, उसके दिन भर काम करने में कोई रुकावट पैदा नहीं होती। इसलिए, मम शक्ति का मूल्य और वह मूल्य, जिसे यह भम-शक्ति श्रम-प्रक्रिया के दौरान में पैदा करती है, वो बिल्कुल भिन्न मानाएं होते हैं। और मम-शक्ति खरीदते समय, वास्तव में, दो मूल्यों का यह अन्तर - पोपवादी हमारे लोगों की यह बड़ी सेवा करते हैं कि वे सब को नहीं बोते, जलाते और कत्ल करते और न ही सब को जेल में सड़ने के लिए डाल देते हैं, बल्कि कुछ को जिन्दा रहने देते हैं और सिर्फ उनका सब कुछ छीन लेते हैं या उनको निर्वासित कर देते है। शैतान खुद अपने सेवकों की अमूल्य सेवा करता है . सारांश यह कि दुनिया बड़ी-बड़ी, उत्तम और दैनिक hant att ut et qet I" (Martin Luther, "An die Pfarrherrn wider den Wucher zu predigen", Wittenberg, 1540.) 1 "Zur Kritik der Pol. Oek." ('अर्थशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास') में पृ० १४ पर मैंने इस सम्बंध में यह कहा है : "यह समझना कठिन नहीं है कि “सेवा" ("service") के अन्तर्गत पाने वाली "सेवा " को ०बी० से और एफ० बास्तियात जैसे अर्थशास्त्रियों की क्या सेवा करनी चाहिए।" .
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