श्रम-प्रक्रिया और अतिरिक्त मूल्य पैदा करने की प्रक्रिया २१६ . . पूंजीपति के सामने वा। अम-शक्ति में बो उपयोगी गुण होते हैं और जिनके द्वारा बह सूत या जूते तैयार करती है, वे पूंजीपति की दृष्टि में एक "conditio sine qua non" ("सरी शर्त") से अधिक और कुछ नहीं थे; कारण कि मूल्य पैदा करने के लिए भम का किसी उपयोगी ढंग से सर्च किया जाना बरी होता है। पूंजीपति पर असल में जिस चीन का प्रभाव पड़ा था, वह इस माल का यह विशिष्ट उपयोग-मूल्य है कि वह न केवल मूल्य कामोत है, बल्कि खुद उसमें जितना मूल्य होता है, वह उससे अधिक मूल्य पैदा कर सकता है। पूंजीपति श्रम-शक्ति से इस विशेष प्रकार की सेवा की प्राशा करता है, और इस सौदे में वह मालों के विनिमय के "शाश्वत नियमों" का ही पालन करता है। अन्य किसी भी तरह का माल बेचने वाले की तरह भम-शक्ति का विकता भी उसका विनिमय-मूल्य वसूलता है और उसका उपयोग-मूल्य दूसरे को सौंप देता है। उपयोग मूल्य बिये बिना वह विनिमय-मूल्य नहीं प्राप्त कर सकता। श्रम-शक्ति के उपयोग मूल्य पर-या, दूसरे शब्दों में, भम पर- उसके बेचने वाले का उतना ही अधिकार होता है, जितना तेल के उपयोग-मूल्य पर उसे बेच देने के बाद तेल के दुकानदार का होता है। मुद्रा के मालिक ने एक दिन की श्रम-शक्ति का मूल्य दिया है। इसलिए एक दिन तक उसका उपयोग करने का उसे अधिकार है, एक दिन का मम उसकी सम्पत्ति है। इस स्थिति को कि एक तरफ तो भम-शक्ति के दैनिक पोषण में केवल भाषे दिन का मम सर्व होता है और दूसरी तरफ यही श्रम-शक्ति पूरे दिन भर काम कर सकती है और इसलिए एक दिन में उसके उपयोग से पैदा होने वाला मूल्य भम-शक्ति के खरीदार द्वारा उसके उपयोग के एवज में दिये गये मूल्य का दुगना होता है, इसे निस्सन्देह मम-शक्ति के जरीवार का सौभाग्य कहा जा सकता है, परन्तु वह श्रम-शक्ति के बेचने वाले के प्रति कोई अन्याय नहीं है। हमारे पूंजीपति ने पहले ही यह परिस्थिति समान ली थी, और यही उसके उठाकर हंसने का कारण पा। चुनांचे, मजदूर वर्कशाप में पहुंचता है, तो वहां उसे उत्पादन के इतने सापन तैयार मिलते हैं, जो केवल छः घण्टे तक नहीं, बल्कि बारह घन्टे तक काम करने के लिए काफी है। जिस प्रकार छः घन्टे की प्रक्रिया में हमारी १० पौण कपास ने छः घन्टे के भम का अवशोषण कर लिया था और वह १० पौण सूत बन गयी थी, गैक उसी प्रकार प्रब २० पौग कपास १२ घण्टे के भम का अवशोषण कर लेगी और २० पौड सूत में बदल जायेगी। पाइये, अब हम इस लम्बी की गयी प्रक्रिया की पैदावार पर विचार करें। अब इस २० पौन सूत में पांच दिन के मम ने भौतिक रूप धारण कर रखा है, जिसमें चार दिन का श्रम उसमें कपास और तकुए के विस गये इस्पात के रूप में लगा है और बाकी एक दिन के भम का कताई की प्रक्रिया के दौरान में कपास ने अवशोषण कर लिया है। यदि उसे सोने के रूप में व्यक्त किया जाये, तो पांच दिन का मम तीस शिलिंग होता है। प्रतः २० पौण का वाम ३० शिलिंग है, जिसके अनुसार एक पौण का वाम फिर मारह पेंस बैठता है। लेकिन प्रक्रिया में जितने मालों ने प्रवेश किया था, उनके मूल्यों कानोड़ २७ शिलिंग होता है। सूत का मूल्य ३० शिलिंग बैठता है। इसलिए पैरावार उत्पादन में जितना मूल्य लगाया गया था, पैराबार का मूल्य उससे १/९ अधिक होता है। २७ शिलिंग ३० शिलिंग में बदल दिये गये हैं। पानी ३ शिलिंग का अतिरिक्त मूल्य पैरा हो गया है। पाखिर बाल कामयाब रहती है,- मुद्रा पूंजी में बदल गयी है। समस्या की हर पतं पूरी कर दी गयी है, और मालों के विनिमय का नियमन करने वाले नियमों की भी किसी तरह अवहेलना नहीं हुई है। सम-मूल्य का सम मूल्य के साथ विनिमय . . -
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