२२२ पूंजीवादी उत्पादन अब हम यह देखते हैं कि बब, एक मोर, मन पर उपयोगी वस्तुएं पैदा करने वाले मन के रूप में विचार किया जाता है और, दूसरी ओर, उसपर मूल्य पैदा करने वाले भम के रूप में विचार किया जाता है, तब उनमें दो अन्तर नबर पाता है और जिसका पता हमने माल का विश्लेषण करके लगाया था, वह अब उत्पादन की प्रक्रिया के दो पहलुओं के अन्तर में परिणत हो जाता है। उत्पादन की प्रक्रिया पर अब एक मोर भम-प्रक्रिया तथा मूल्य पैरा करने की प्रक्रिया की एकता के रूप में विचार किया जाता है, तब वह मालों के उत्पादन की प्रक्रिया होती है। दूसरी मोर, बब उसपर भम-अभिया और अतिरिक्त मूल्य के उत्पादन की प्रक्रिया की एकता के रूप प्रणाली में सर्वत्र उपयोग किया जाता है -कि उत्पादन में सदा अधिक से अधिक अनगढ़ और भारी ऐसे पोजार इस्तेमाल करने चाहिए , जिनके भद्देपन के कारण उनको नुकसान पहुंचाना कठिन हो। मेक्सिको की बाड़ी के तट पर बसे गुलामों के राज्यों में गृह युद्ध के समय तक केवल ऐसे हल मिलते थे, जो पुराने चीनी नमूने के अनुसार बनाये गये थे और जो धरती में कूड़ नहीं बनाते थे, बल्कि छडूंदर या सुपर की तरह तरह मिट्टी पलटते थे। देखिये J. E. Cairnes की रचना "The Slave Power" ('दास-शक्ति'), London, 1862, पृ० ४६ और उसके मागे के पृष्ठ। अपनी रचना “Sea Board Slave States" ('समुद्र-तट के गुलामों के राज्य') में प्रोल्म्सटेड हमें बताते हैं : "मुझे यहां ऐसे पोजार देखने को मिले हैं, जिनका बोझा हम लोगों के यहां कोई भी प्रादमी, जिसके होश-हवास दुरुस्त हैं, उस मजदूर के ऊपर नहीं डालेगा, जिसे वह मजदूरी देता है। ये मौजार इतने ज्यादा भारी और भद्दे हैं कि हम लोगों के यहां साधारण तौर पर जो प्रौजार इस्तेमाल होते हैं, उनके मुकाबले में इन प्रौजारों को इस्तेमाल करने पर, मेरे विचार से , काम कम से कम दस प्रतिशत बढ़ जायेगा। मुझे यह भी बताया गया कि गुलाम लोग इतनी लापरवाही और इतने प्रनाड़ीपन के साथ मौजारों को इस्तेमाल करते हैं उनको इनसे हल्के या कम भद्दे मोजार देना हितकर नहीं होगा, और हम लोग अपने मजदूरों को सदा जिस तरह के प्रोजार देते हैं और जिस तरह के प्रोजार देने में हम अपना लाभ देखते हैं, उस तरह के प्रौजार यहां वर्जीनिया के अनाज के खेत में पूरे एक दिन भी नहीं चलेंगे, हालांकि यहां के खेतों की मिट्टी हमारे खेतों की मिट्टी से नरम होती है और उसमें कम मात्रा में कंकड़-पत्थर होते हैं। इसी तरह, जब मैंने यह पूछा कि यहां खेतों पर घोड़ों की जगह सर्वत्र बच्चर क्यों इस्तेमाल किये जाते है, तो इसकी पहली वजह मुझे यह बतायी गयी-पौर निस्सन्देह यही सबसे बड़ी वजह है कि हन्शी लोग जानवरों के साथ जैसा व्यवहार करते हैं, उसे घोड़े बरदाश्त नहीं कर सकते। हब्शी लोग घोड़ों को सदा बहुत जल्दी या तो पकाकर बेकार कर देते हैं और या लगंडा बना देते हैं। उधर बच्चर मासानी से मार खा सकते है और कभी-कभार एक-दो जून भूखे भी रह सकते हैं, और उससे उनको कोई खास नुकसान नहीं पहुंचता। उनके प्रति यदि लापरवाही बरती जाती है या उनसे बहुत ज्यादा काम लिया जाता है, तो वे न तो ठंड के शिकार होते हैं और न बीमार ही पड़ते हैं। लेकिन मुझे इसका प्रमाण पाने के लिए उस कमरे की बिड़की से ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं हैं, जिसमें बैठा मैं लिख रहा हूं। इस खिड़की से में किसी भी समय जानवरों के साथ ऐसा बरताव होते हुए देख सकता हूं, जो उत्तर में लगभग हर काश्तकार को फौरन अपने साईस को यकीनी तौर पर बरखास्त करने के लिए मजबूर कर देगा।" .
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२२५
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