पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रम-प्रक्रिया और अतिरिक्त मूल्य पैदा करने की प्रक्रिया २२३ में विचार किया जाता है, तब वह उत्पादन की पूंजीवादी प्रक्रिया, अपना मालों का पूंजीवादी उत्पादन, होती है। पीछे किसी पृष्ठ पर हमने कहा था कि अतिरिक्त मूल्य के सृजन में इस बात से तनिक भी फर्क नहीं पड़ता कि पूंजीपति ने बो बम खरीदा है, वह मौसत वर्षे का साधारण पनिपुण मम है, या प्रषिक संश्लिष्ट निपुण भम है। प्रोसत दर्जे के श्रम से अधिक ऊंचे या अधिक संश्लिष्ट स्वरूप के हर प्रकार के श्रम में क्यावा महंगी प्रम-शक्ति खर्च की जाती है, ऐसी मम-शक्ति, जिसके उत्पादन में अधिक समय और प्रषिक श्रम खर्च हुआ है और इसलिए जिसका अनिपुण अथवा साधारण मम-शक्ति की अपेक्षा अधिक मूल्य होता है। यह भम-शक्ति चूंकि प्रषिक मूल्यवान होती है, इसलिए उसका उपयोग ऊंचे वर्षे का मन होता है, ऐसा मम, बो समान समय में मनिपुण श्रम की तुलना में अनुपात की दृष्टि से अधिक मूल्य पैदा करेगा। एक कातने वाले और एक सुनार के श्रम के बीच निपुणता का बो भी अन्तर हो, सुनार के प्रम का वह हिस्सा, जिससे वह केवल अपनी मम-शक्ति के मूल्य की पूर्ति करता है, गुणात्मक दृष्टि से उस अतिरिक्त हिस्से से बरा भी भिन्न नहीं होता, जिससे वह अतिरिक्त मूल्य पैदा करता है। जिस तरह कताई में, उसी तरह गहने बनाने में अतिरिक्त मूल्य श्रम के केवल परिमाणात्मक प्राधिक्य से उत्पन्न होता है। दूसरे शबों में, अतिरिक्त मूल्य एक ही मम-प्रक्रिया के विलम्बित हो जाने के फलस्वरूप पैदा होता है। एक उदाहरण में गहने बनाने की प्रक्रिया विलम्बित होती है, दूसरे में सूत बनाने की प्रक्रिया।' . . . . निपुण (skilled) और अनिपुण (unskilled) श्रम का अन्तर आंशिक रूप से केवल भ्रम पर, या कम से कम ऐसे भेदों पर आधारित है, जो बहुत समय पहले वास्तविक नहीं रह गये थे और जो केवल एक परम्परागत रूढ़ि के कारण ही अभी तक जीवित हैं, और प्रांशिक रूप से यह अन्तर मजदूर-वर्ग के कुछ स्तरों की निस्सहाय अवस्था पर आधारित है, जिसके कारण वे बाक़ी मजदूरों की तरह ही अपनी श्रम-शक्ति का मूल्य वसूल नहीं कर पाते । इस मामले में पाकस्मिक कारण इतनी बड़ी भूमिका अदा करते हैं कि कभी-कभी श्रम के ये दो रूप एक-दूसरे का स्थान ग्रहण कर लेते हैं। मिसाल के लिए, जिन देशों में मजदूर-वर्ग का स्वास्थ्य बिगड़ गया है और तुलनात्मक दृष्टि से एकदम चौपट हो गया है, और उन सभी पूंजीवादी देशों में, जहां पूंजीवादी उत्पादन का ख़ासा विकास हो गया है, मजदूरों की यही हालत है, वहां श्रम के निम्न रूपों को, जिनमें मांस-पेशियों के बहुत अधिक व्यय की पावश्यकता पड़ती है, श्रम के उनसे कहीं अधिक सूक्ष्म रूपों की तुलना में, पाम तौर पर, निपुण श्रम समझा जाता है और श्रम के अधिक सूक्ष्म रूप पनिपुण श्रम के दर्जे पर उतर पाते हैं। मिसाल के लिए , bricklayer (राजगीर) के श्रम को लीजिये, जिसका दर्जा इंगलैण्ड में जामदानी बुनने वाले कारीगर के दर्जे से बहुत ऊंचा होता है। Fustian cutter (फ़स्टियन काटने वाले) के श्रम में सख़्त शारीरिक मेहनत की जरूरत पड़ती है और उसका स्वास्थ्य पर भी कुप्रभाव पड़ता है, परन्तु उसे फिर भी महज मनिपुण श्रम ही समझा जाता है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्रीय श्रम के क्षेत्र में तथाकषित skilled labour (निपुण श्रम) का बहुत बड़ा भाग नहीं है। लैंग का अनुमान है कि इंगलैण्ड (और वेल्स) में १,१३,००,००० लोगों की जीविका प्रनिपुण श्रम पर निर्भर करती थी। जिस समय लैंग ने अपनी पुस्तक लिखी थी, उस समय कुल पावादी १,८०,००,००० थी। उसमें से यदि अभिजात वर्ग के १०,००,०००,