पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२३२

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स्थिर पूंजी और अस्थिर पूंजी २२९ तक कि उनका मूल म कायम रहता है और जिस बात तक किये हर रोज सुबह को अपनी पहले जैसी साल में ही प्रक्रिया को फिर से प्रारम्भ करने के लिये तैयार रहते हैं। और जिस तरह से अपने जीवन-काल में, यानी उस मन-प्रमिया के दौरान में, जिसमें भाग लेते रहते है, अपनी शकल को पैदावार से स्वतंत्र ज्यों की त्यों बनाये रहते हैं, उसी तरह मृत्यु के बाद भी वे अपनी शकल को कायम रखते हैं। मुर्वा मशीनों, पौवारों, वर्कशापों प्रादि की लाशें उस पैदावार से बिल्कुल भिन्न और अलग होती है जिसके उत्पादन में उन्होंने मदद दी है। भम का कोई प्राचार जिस दिन पर्कशाप में प्रवेश करता है, उस दिन से लगाकर उस दिन तक, बब कि वह कवार-माने में भेज दिया जाता है, यदि हम उसके सम्पूर्ण कार्यकाल पर विचार करें, तो हम पाते हैं कि इस काल में उसका उपयोग-मूल्य पूरी तरह सर्च हो गया है और इसलिये उसका विनिमय-मूल्य पूरी तरह पैदावार में स्थानांतरित हो गया है। मिसाल के लिये, यदि कोई कताई की मशीन १० साल तक चलती है, तो यह बात साफ है कि इस कार्यकाल में उसका कुल मूल्य धीरे-धीरे १० वर्ष की पैदावार में स्थानांतरित होता है। इसलिये, मम के किसी भी प्रचार का जीवन-काल एक ही प्रकार की पियानों की एक छोटी या बड़ी संख्या को बार-बार दोहराने में खर्च होता है। उसके बीवन की मनुष्य के जीवन के साथ तुलना की जा सकती है। हर दिन का अन्त मनुष्य की मृत्यु को २४ घण्टे और नजदीक ने पाता है। लेकिन महब उसे देखकर कोई प्रादमी मेक-ठीक नहीं कह सकता किन की मोर ले जाने वाली सड़क पर भी उसे कितने दिन पार सफर करना है। किन्तु इस कठिनाई के कारण बीवन-बीमा करने वाले कार्यालयों द्वारा पोसत निकालने के सिद्धान्त का प्रयोग करते हए बहुत क और साथ ही बहुत उपयोगी निष्कर्ष निकालने में कोई रुकावट नहीं पड़ती। मम के प्राचारों के साथ भी यही बात है। अनुभव से मालूम हो जाता है कि कोई खास तरह की मशीन पीसतन कितने समय तक चल पायेगी। मान लीजिये कि अम-प्रक्रिया में उसका उपयोग-मूल्य केवल दिन तक चल सकता है। तब वह हर रोज अपने उपयोग-मूल्य का मौसतन छा भाग खो देती है और इसलिये रोग की पैदावार में अपने मूल्य का छा भाग स्थानान्तरित कर देती है। पांच, इस मापार पर हिसाब लगा लिया जाता है कि विभिन्न पौधार किस गति से घिसते हैं, ये रोष कितना उपयोग मूल्य को देते हैं और उसके अनुरूप मूल्य की कितनी मात्रा हर दिन पैदावार को सौंप देते हैं। इस प्रकार यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि उत्पादन के साधन मन-प्रक्रिया के दौरान में अपने उपयोग-मूल्य के नष्ट हो जाने के परिणामस्वम्म पुर जितना मूल्य को देते है, में उससे ज्यादा मूल्य कमी पैदावार में स्थानान्तरित नहीं करते। यदि किसी प्रोबार में सोने के लिये मूल्य है ही नहीं, प्रांत, दूसरे शब्दों में, यदि कोई पोबार मानव-मन की पैदावार नहीं है, तो वह पैदावार में कोई मूल्य स्थानान्तरित नहीं करता। वह विनिमय-मूल्य के निर्माण में कोई योग दिये बिना ही उपयोग मूल्य पैदा करने में मदद करता है। मानव-सहायता के बिना ही प्रकृति ने उत्पादन के जितने साधनो से है,-से भूमि, वायु, बल, पृथ्वी के गर्न में पड़ी हुई पातुएं और माकूले बंगलों में मिलने वाली लकड़ी-सब इसी मब में पाते हैं। यहां पर एक और दिलचस्प बीच हमारे सामने पाती है। मान लीजिये कि किसी मशीन की कीमत १,००० पौड है, और यह १,००० दिन में पिस जाती है। ऐसी हालत में रोजाना इस मशीन के मूल्य का हजारो भाग निक पैदावार में स्थानान्तरित होता जायेगा। पर इसके साच-साथ पूरी मशीन लगातार मन-प्रक्रिया में भाग लेती रहती है, हालांकि उसकी बीवना .