२३० पूंजीवादी उत्पादन शक्ति बराबर कम होती जाती है। इस प्रकार, यह प्रकट होता है कि अम-प्रक्रिया का एक उपकरण, उत्पादन का कोई साधन, जहाँ मूल्य के निर्माण की क्रिया में केवल प्रांशिक रूप से भाग लेता है, वहां वह भम-प्रक्रिया में अपने सम्पूर्ण रूप में लगातार भाग लेता रहता है। इन से क्रियाओं का भेद यहां उनके भौतिक उपकरणों में इस तरह प्रतिविम्बित होता है कि उत्पादन का वही प्रोबार अम-प्रक्रिया में अपने सम्पूर्ण रूप में भाग लेता है और साथ ही मूल्य के निर्माण के एक तत्व की तरह वह केवल प्रांशिक रूप में प्रवेश करता है।' दूसरी ओर, यह भी मुमकिन है कि उत्पादन का कोई साधन मूल्य के निर्माण में अपने सम्पूर्ण रूप में भाग ले और मम-प्रक्रिया में केवल बोग-पोड़ा करके समाविष्ट हो। मान लीजिये कि कपास की कटाई में हर ११५ पौड कपास में से १५ पौस खाया हो जाती है, और वह १५ पौण कपास मृत में न बदलकर कूड़ा (devil's dust ) बन जाती है। अब, - 41 श्रम के प्रोजारों की मरम्मत के विषय से हमारा यहां कोई सम्बन्ध नहीं है। जिस मशीन की मरम्मत हो रही है, वह मौजार की भूमिका अदा करना बन्द कर देती है और श्रम की विषय-वस्तु की भूमिका अदा करने लगती है। तब उससे काम नहीं लिया जाता , बल्कि उसपर काम किया जाता है। यहां हमारा यह मानकर चलना सर्वथा उचित होगा कि मौजारों की मरम्मत में खर्च किया गया श्रम उनके मूल उत्पादन के लिए आवश्यक श्रम में शामिल होता है। परन्तु मूल पाठ में हम इस घिसाई का जिक्र कर रहे हैं, जिसका कोई डाक्टर इलाज नहीं कर सकता और जो थोड़ा-थोड़ा करके प्रौजार को मौत के मुंह पर ला खड़ा करती है। मूल पाठ में 'उस किस्म की घिसाई" का जिक्र कर रहे हैं, "जिसे समय-समय पर मरम्मत करके दूर नहीं किया जा सकता और जो यदि औजार चाकू है, तो उसे इस हालत में पहुंचा देगी कि चाकू बनाने वाला कहेगा कि अब वह इस लायक नहीं है कि उस पर नयी धार चढ़ायी जाये।" मूल पाठ में हम यह बता चुके हैं कि मशीन प्रत्येक श्रम-प्रक्रिया में सम्पूर्ण मशीन के रूप में भाग लेती है, किन्तु उसके साथ-साथ चलने वाली मूल्य पैदा करने की प्रक्रिया में वह केवल थोड़ा-थोड़ा करके समाविष्ट होती है। अतः जरा सोचिये कि निम्नलिखित उद्धरण में विचारों की कैसी गड़बड़ी प्रकट होती है। "मि० रिकार्डों कहते हैं कि (जुर्राबें बनाने वाली) मशीन के तैयार करने में इंजीनियर का जो श्रम बर्च हुआ है, उसका एक भाग", उदाहरण के लिए, जुर्राबों की एक जोड़ी में निहित होता है। “फिर भी उस कुल श्रम में, जिससे कि जुर्राबों की हर जोड़ी तैयार हुई है,.. इंजीनियर के श्रम का एक भाग नहीं, बल्कि उसका पूरा श्रम शामिल है; कारण कि एक मशीन बहुत सी जोड़ियों को तैयार करती है, और इनमें से कोई जोड़ी मशीन के किसी भी एक हिस्से के बिना तैयार नहीं की जा सकती थी।" ("Obs. on Certain Verbal Disputes in Pol. Econ., Particularly Relating to Value" [अर्थशास्त्र के, खास कर मूल्य से सम्बन्ध रखने वाले, कुछ शाब्दिक विवादों के विषय में विचार'], पृ० ५४।) इस पुस्तक का लेखक एक असाधारण ढंग का पात्म-संतुष्ट "wiseacre" ("लाल-बुझक्कर") है। उसकी विचारों की गड़बड़ी और इसलिए उसका तर्क केवल इसी हद सही है कि तो रिकारों ने और ही उनके पहले या बाद के किसी और अर्थशास्त्री ने श्रम के दो पहलुओं के भेद को ठीक-ठीक समझा है और इसलिए ने इस बात को तो और भी कम समझ पाये है कि इन दो पहलुओं के मातहत श्रम मूल्य के निर्माण में क्या भूमिका अदा करता है।
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