अतिरिक्त मूल्य की दर २३६ . यदि हम अपने उदाहरण को ही लें, वहां स्थि=४१० पोख, तो हम यह मानकर चल सकते है कि इस क्रम में ३१२ पौड कच्चे माल का, १ पौड सहायक सामग्री का और ५४ पौण उत्पावन-प्रमिया में घिस गयी मशीनों का मूल्य है। और मान लीजिये कि उत्पादन- प्रनिया में जो मशीनें इस्तेमाल की गयी है, उनका कुल मूल्य १,०५४ पौड है। तब इस १,०५४ पौण की रकम में से केवल ५४ पौड की कम ही पैदावार को तैयार करने में लगायी जाती है, यानी मशीनें उत्पादन प्रक्रिया के दौरान में घिस जाने के फलस्वरूप इस रकम के बराबर मूल्य तो देती हैं। कारण कि मशीनें केवल इतना ही मूल्य पैदावार में स्थानांतरित करती हैं। अब यदि हम यह मानकर चलते हैं कि बाकी १,००० पौण भी, जो कि फिलहाल मशीनों में ही मौजूद हैं, पैदावार में स्थानांतरित हो गये हैं, तो हमें इस रकम को मूल पूंजी का ही एक हिस्सा समझना पड़ेगा और अपने हिसाब में दोनों तरफ यह जोड़ देनी पड़ेगी।' इस तरह, एक तरफ हमारे पास १,५०० पान की रकम होगी और दूसरी तरफ १,५६० पौण्ड की। इन दो रामों का अन्तर, या अतिरिक्त मूल्य, फिर भी ६० पौण ही होगा। इसलिए इस पुस्तक में हमने जहाँ कहीं मूल्य के उत्पादन में लगायी गयी स्थिर पूंजी का जिक्र किया है, वहां यदि संदर्भ इसके बिल्कुल विपरीत नहीं है, तो हमारा मतलब सदा उत्पादन के साधनों के उस मूल्य से और केवल उसी मूल्य से होता है, जो सचमुच उत्पादन-प्रक्रिया में खर्च हो गया है। यह स्पष्ट कर चुकने के बाद पाइये, हम फिर अपने उस सूत्र पूं-स्थि+अस्थि की मोर लौट चलें, जो हमारी प्रांतों के सामने पूं'- (स्थि+ अस्थि)+म में बदल गया था और जिसमें पूं पूं' बन गया था। यह हमें मालूम है कि स्थिर पूंजी का मूल्य पैदावार में स्थानांतरित हो जाता है और उसमें केवल पुनः प्रकट होता है। इसलिए उत्पादन प्रक्रिया में जिस नये मूल्य का सचमुच सृजन होता है, जो मूल्य पैदा होता है, वह, या यूं कहिये कि उसको मूल्य- पैदावार, पैदावार के मूल्य से भिन्न होती है। जैसा कि पहली दृष्टि से लगेगा, यह नया मूल्य (स्थि+पस्थि)+म, या ४१० पौण स्थिर पूंजी+९० पोज अस्थिर पूंजी+९० पौन अतिरिक्त मूल्य, के बराबर नहीं होता, बल्कि वह केवल प्रस्थि+म, या १० पौण अस्थिर पूंजी+९० पौण अतिरिक्त मूल्य, के बराबर होता है, या यूं कहिये कि यह नया मूल्य ५६० पौड नहीं, बल्कि केवल १८० पौड के बराबर होता है। यदि स्थि-0, या, दूसरे शब्दों में, यदि उद्योग की कुछ ऐसी शालाएं होती, जिनमें पूंजीपति को कच्चा माल, सहायक सामग्री या भम के प्राचारों के रूप में उत्पादन के ऐसे साधन न इस्तेमाल करने पड़ते, जिनमें पहले ही से कुछ श्रम लग चुका है, और केवल श्रम-शक्ति तथा प्रकृति की दी हुई सामग्री से ही उसका काम चल जाता, तो उस हालत में न तो कोई स्थिर पूंजी उत्पादन की प्रक्रिया में भाग लेती और न ही उसका मूल्य पैदावार में स्थानांतरित होता। तब पैदावार के मूल्य का यह संघटक, यानी, हमारे उदाहरण में, ४१० पौण्ड की राम हमारे हिसाब से गायब हो जाती, लेकिन १८० पौम की रकम, यानी वह नया मूल्य, जो कि उत्पावन-प्रक्रिया में तैयार हुमा 1 . 1"यदि हम अचल पूंजी के मूल्य को मूल पूंजी का ही एक भाग मानकर चलते हैं, तो हमें वर्ष के अन्त में इस प्रकार की पूंजी के बचे हुए मूल्य को वार्षिक पाय का एक भाग समझना पड़ेगा।" (Malthus, "Princ. of Pol. Econ." [माल्यूस , 'अर्थशास्त्र के सिद्धान्त'], दूसरा संस्करण, London, 1836, पृ. २६६।)
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