२४० पूंजीवादी उत्पादन - - . है, या यह मूल्य, बो पैवाहमा है और जिसमें १० पौड का अतिरिक्त मूल्य शामिल है, तब भी उतना ही बड़ा रहता, जितना बड़ा यह उस समय होता, अब 'स्थि' बड़े से बड़े कल्पनातीत मूल्य का प्रतिनिधित्व करता। इस हालत में पूं-(+पस्थि) =पस्थि, या विस्तारित पूंजी पूं-प्रस्थि+म, और इसलिए पहले की तरह ही पूं-पूं-मापूसरी तरफ, पवि म-०, या, दूसरे शब्दों में, पविभम शक्ति से, जिसका मूल्य अस्थिर पूंजी के रूप में लगाया जाता है, केवल उसका सम-मूल्य ही पैरा हो, तो पूं-स्थि+ अस्थि, या पैरावार का मूल्य ' (स्थि+पस्थि)+०, या पूं-पूं।इस हालत में मून पूंची के मूल्य का विस्तार नहीं हो पायेगा। ऊपर जो कुछ कहा जा चुका है, उससे हमें यह बात मालूम हो गयी है कि अतिरिक्त मूल्य केवल 'पस्थि' के मूल्य में, या पूंजी के केवल उस भाग के मूल्य में परिवर्तन होने का फल होता है, जो मम-शक्ति में स्पान्तरित कर दिया जाता है। चुनाचे, मस्थि+प्र-पस्थि+ अस्थि', या 'पस्थि' मा 'पस्थि' की वृद्धि। लेकिन इस तव्य पर कि केवल 'पस्थि' में ही परिवर्तन होता है, और उन परिस्थितियों पर, जिनमें यह परिवर्तन होता है, इस बात से पर्वा पड़ जाता है कि पूंजी के मस्थिर अंश में वृद्धि हो जाने के फलस्वरूप मूल पूंजी के कुल जोड़ में भी वृद्धि हो जाती है। यह मोड़ शुरू में ५०० पौन वा और बाद में ५९० पौड हो जाता है। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारी खोज से कुछ ठीक-ठीक नतीजे निकलें, तो हमें चाहिए कि हम पैदावार के मूल्य के उस भाग को अलग कर दें, जिसमें केवल स्थिर पूंजी प्रकट होती है, और पुनाचे स्थिर पूंजी को शून्य मानकर चलें, या यह मानकर चलें कि स्थि- । इस प्रकार, हम गणित के केवल उस नियम का ही उपयोग करेंगे, सबा उस बात इस्तेमाल किया जाता है, जब हमें ऐसी स्थिर तथा अस्थिर मात्रामों से काम लेना पड़ता है, वो केवल बोड़ और बढ़ाने के प्रतीकों के द्वारा एक दूसरे से सम्बंधित होती है। एक और कठिनाई मस्थिर पूंजी के मूल रूम से पैरा होती है। हमारे उदाहरण में 'पू'- ४१० पौष पिर पूंची+९० पौष मस्थिर पूंची+९० पोल मतिरिक्त मूल्य, परन्तु यहाँ १० पोज पहले से निश्चित और इसलिए एक स्थिर मात्रा है। इसलिए उसे पस्विर मानकर चलना बेतुकी बात मालूम होती है। परन्तु असल में तो १० पौण अस्थिर पूंनी नामक पर केवल इसी बात का प्रतीक है कि यह मूल्य एक प्रक्रिया में से गुखरता है। श्रम-शक्ति की गरीब में लगाया गया पूंगी का हिस्सा भौतिक प प्राप्त मम की एक निश्चित मात्रा होता है, और इसलिए गरीबी हुई मम-शक्ति के मूल्य की भांति यह भी स्थिर मूल्य होता है। लेकिन उत्पादन की प्रक्रिया में १० पौण का स्थान कार्यरत भम-शक्ति ले लेती है, मृत श्रम की जगह पर बीवित मम मा जाता है, एक निष्प्रवाह के स्थान पर प्रवाहमान और एक स्थिर वस्तु की जगह पर एक परिपर बस्तु मा जाती है। परिणाम यह होता है कि 'पस्थि' का पुनरुत्पादन होने के साथ-साथ 'पस्थि' में वृद्धि भी हो जाती है। प्रतएव, पूंजीवादी उत्पादन के दृष्टिकोण से, पूरी प्रक्रिया ऐसी प्रतीत होती है, जैसे कि वो कुछ शुरू में स्थिर मूल्य पा, वह भम- शक्ति में स्पान्तरित हो जाने पर अपने पाप बबलने लगता है। यह प्रक्रिया और उसका परिणाम दोनों उस मूल्य का फल प्रतीत होते हैं। इसलिए यदि इस प्रकार के कवन, जैसे १० पोज अस्थिर पूंजी" या "पात्म-विस्तार करने वाला इतना मूल्य", स्वतःविरोधी प्रतीत होते है, तो उसका कारण केवल यही है कि वे पूंजीवादी उत्पादन में अन्तर्निहित एक. विरोष.को सतह पर ले पाते हैं। -
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